कौन हैं केरल में जन्मीं IAS Roshan Jacob, लखनऊ में कोरोना कंट्रोल के लिए हो रही है वाहवाही
लखनऊ, 8 जून: बीते करीब एक महीने में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सूरत ही बदल गई है। मंगवार को जिन बचे हुए चार जिलों से भी कोरोना कर्फ्यू हटाने का ऐलान हुआ है, उनमें यूपी की राजधान लखनऊ भी शामिल है। जब दूसरी लहर में यूपी समेत पूरे देश कोरोना कहर बरपा रहा था, तब नवाबों की नगरी लखनऊ भी बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहा था। उस वक्त लखनऊ को संभालने की जिम्मेदारी महिला आईएएस अधिकारी रोशन जैकब को दी गई, क्योंकि जिले के डीएम अभिषेक प्रकाश खुद भी कोविड संक्रमित हो गए थे। जैकब को 17 अप्रैल को लखनऊ का प्रभारी डीएम नियुक्त किया गया था।
रोशन जैकब- लखनऊ में कोविड को कंट्रोल किया
अगर कोई प्रशासनिक अधिकारी किसी आपात स्थिति में अपनी टीम को आगे बढ़कर लीड करता है तो नजीते कितने सकारात्मक हो सकते हैं, लखनऊ उसका बेहतरीन नमूना है। रोशन जैकब को जब लखनऊ में कोरोना कंट्रोल करने के लिए जिले का प्रभार मिला उस दौरान प्रदेश की राजधानी में रोजाना लगभग 6,000 नए पॉजिटिव केस आ रहे थे। लेकिन, 4 जून को डेली आने वाले मामलों की संख्या घटकर सिर्फ 40 रह गई थी। खुद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी लखनऊ को इस मुश्किल महामारी की चुनौती से उबारने के लिए इस आईएएस अफसर की सराहना की है। एक सिविल सर्वेंट के तौर पर जैकब ने यूपी में 15 साल से ज्यादा गुजारे हैं, इस दौरान उन्होंने अपनी प्रशासनिक दक्षता के एक से बढ़कर एक उदाहरण पेश किए हैं और दिखाया है कि केरल जैसे गैर-हिंदी भाषी राज्य से यूपी जैसे हिंदी हार्टलैंड में आकर भी एक महिला अफसर चाहे तो किस तरह से बेहतरीन लोक सेवक की भूमिका अदा कर सकता है। लखनऊ में कोरोना को काबू में करने में उनकी भूमिका के बारे में प्रशासन के एक स्थानीय अधिकारी ने मनी कंट्रोल से बातचीत में कहा है, 'वह लोगों से मिलने में भरोसा करती हैं। शुरू में हम लोग हिचकिचा रहे थे, जब वो घरों में और अस्पतालों में जाती थीं। लेकिन, पता चला कि यही उनकी ताकत है और वही काम कर गया।'
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यूपी की पहली महिला माइनिंग डायरेक्टर हैं
43 साल की रोशन जैकब 2004 बैच की यूपी कैडर की आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने 17 अप्रैल से लेकर 2 जून तक लखनऊ में कोविड-19 के नियंत्रण के लिए स्पेशल एसाइमेंट पूरा किया है। उन्हें यह जिम्मेदारी इसलिए देनी पड़ी, क्योंकि लखनऊ के डीएम खुद ही कोरोना पीड़ित हो गए थे। बाद में जब उन्होंने अपनी ड्यूटी दोबारा ज्वाइन कर ली तो भी कोविड नियंत्रण का जिम्मा जैकब के पास ही प्रभारी अधिकारी बनाकर रहने दिया गया। यूपी में इससे पहले भी उनका नाम 2013 में गोंडा जैसे जिले में एलपीजी वितरण के काम को सुचारू करने और 2014 में कानुपर नगर जैसे शहरी इलाके में लोगों की समस्या सुलझाने के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लोकप्रिय बनाने के लिए लिया जाता था। तीन साल पहले वो यूपी माइनिंग डिपार्टमेंट की पहली महिला डायरेक्टर बनीं, जिस पद पर तैनाती से बढ़िया से बढ़िया अफसर भी आम तौर पर कन्नी काटते नजर आते थे। पिछले साल उन्हीं की निगरानी में लॉकडाउन के दौरान राज्य में माइनिंग का काम शुरू करने वाला उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य बना। वो अभी भी माइनिंग विभाग में डायरेक्टर और सचिव हैं साथ ही स्टांप और रजिस्ट्रेशन के आईजी का अतिरिक्त प्रभार भी उनके पास है।
तिरुवनंतपुरम में हुआ है जन्म
रोशन जैकब का जन्म केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में हुआ है। उनकी मां एलेयाम्मा वर्गीज और पिता टीके जैकब केरल सरकार के कर्मचारी थे। अपने माता-पिता की अकेली संतान जैकब की शुरुआती पढ़ाई तिरुवनंतपुरम के सर्वोदय विद्यालय में हुई और फिर उन्होंने गवर्मेंट कॉलेज फॉर वीमेन से बैचलर की डिग्री हासिल की। उन्होंने केरल यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में मास्टर्स किया है। उन्होंने आईएएस रहते हुए ही पीएचडी भी पूरी की है। उन्होंने अपने बैचमेट और इंडियन फॉरन सर्विस के अधिकारी डॉक्टर अरिंदम भट्टाचार्य से शादी की है और दोनों की दो संतानें हैं (एक बेटा और एक बेटी)। खाली समय में रोशन कविता लिखने की शौकीन हैं और उनके अंग्रेजी में लिखे काव्य संग्रह- 'ए हैंडफुल ऑफ स्टारडस्ट' का विमोचन 2012 में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने किया था।
लखनऊ आई तो लगा कि लोगों में घबराहट थी- जैकब
उत्तर प्रदेश में जैकब की पहली पोस्टिंग झांसी में हुई थी। उसके बाद वो बस्ती, गोंडा, कानपुर नगर, राय बरेली और बुलंदशहर की जिलाधिकारी भी रह चुकी हैं। इतने दिनों की सेवा में उन्होंने हिंदी में बोलना, लिखना और पढ़ना भी सीख लिया है, जो कि यहां की आधिकारिक भाषा है। वो कहती हैं कि, 'जब मैंने लखनऊ में ज्वाइन किया तो मुझे लगा कि शहर में घबराहट थी। हर पॉजिटिव मरीज अस्पताल में बेड चाह रहा था, जबकि 85 फीसदी का इलाज घर पर ही हुआ। हालांकि, 10-15 फीसदी लोगों के लिए बेड सुनिश्चित करना हमारे लिए एक मुद्दा था। ......जब वायरस अपने पीक पर था, तब हमने एक रणनीति तैयार की....हम लोगों तक पहुंचे और संक्रमितों को मेडिसीन किट दिए।....मूलरूप से रैपिड रेस्पॉन्स टीम, होम आइएसोलेशन वालों का बेहतर फॉलोअप और अस्पतालों में दाखिल मरीजों पर ध्यान देने से हमें मदद मिली। हमनें सुनिश्चित किया कि हॉस्पिटल एडिमिशन की निगरानी करने वाले कमांड कंट्रोल सेंटर पर ज्यादा दबाव न पड़े। पिछले हफ्ते हमारे पास अस्पताल में भर्ती के लिए वेटिंग में कोई मरीज नहीं था।' उन्होंने ऑक्सीजन से लेकर तमाम जरूरतों को पूरा करने में वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर सभी डॉक्टरों और पुलिस-प्रशासन के लोगों की टीम की तरह मिलकर काम करना इस कामयाबी का मूलमंत्र बताया है।
'यूपी के लोग दूसरों का स्वागत करते हैं'
वो कहती हैं कि इस बात में कोई शक नहीं कि केरल से आकर यूपी में बड़ी जिम्मेदारी निभाना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती है। लेकिन, वो यह भी कहती हैं कि यूपी में अफसरों के लिए आगे बढ़ने और डिलिवर करने के लिए एक मौका भी है। खुद के महिला होने के बारे में वो कहती हैं कि यूपी के लिए अच्छा ये है कि देश के दिल में रहने वाले लोग दूसरों का स्वागत करते हैं। अलबत्ता उन्होंने माना है कि शुरुआत में उन्हें हिंदी को लेकर थोड़ी दिक्कत महसूस होती थी।