यूपी का गोहत्या विरोधी क़ानून क्या है और हाई कोर्ट ने क्यों की इस पर टिप्पणी
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश में गोहत्या विरोधी क़ानून के इस्तेमाल पर सवाल उठाए थे.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस सप्ताह एक मामले की सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश में गोहत्या विरोधी क़ानून के इस्तेमाल पर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने कहा है कि इस क़ानून का इस्तेमाल बेगुनाहों के ख़िलाफ़ किया जा रहा है जबकि क़ानून का इस्तेमाल उसमें निहित भावना से होना चाहिए.
गोहत्या क़ानून के तहत गिरफ़्तार किए गए एक अभियुक्त की ज़मानत अर्ज़ी पर सुनवाई के दौरान जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा, "क़ानून का इस्तेमाल बेगुनाहों के ख़िलाफ़ किया जा रहा है. जहां भी मांस मिलता है उसे बिना फ़ॉरेंसिक लैब में टेस्ट कराए गाय का मांस बता दिया जाता है. अधिकतर मामलों में मांस को परीक्षण के लिए भेजा तक नहीं जाता. अभियुक्त उस अपराध के लिए जेल में रहते हैं जो हो सकता है, हुआ ही न हो."
ज़मानत आदेश में कहा गया है कि जब गायों को ज़ब्त किया हुआ दिखाया जाता है तो रिकवरी का कोई मेमो तैयार नहीं किया जाता और किसी को नहीं पता कि रिकवरी के बाद गायें कहां चली जाती हैं.
हाई कोर्ट ने गोवंश की ख़राब स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि गोशालाएं दूध न देने वाली गायों और बूढ़ी गायों को स्वीकार नहीं करतीं. उन्हें सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है. सड़क पर गायों और मवेशियों से वहां से गुज़रने वालों के लिए भी ख़तरा होता है.
कोर्ट का कहना था, "स्थानीय लोगों और पुलिस के डर से उन्हें राज्य के बाहर भी नहीं ले जाया जा सकता. चारागाह अब कोई है नहीं. ऐसे में ये जानवर यहां-वहां भटकते हैं और फसलें नष्ट करते हैं."
याचिकाकर्ता रहमुद्दीन ने इस मामले में कोर्ट में अपील की थी कि उन्हें बिना किसी ख़ास आरोप के गिरफ़्तार कर लिया गया था. याचिकाकर्ता के मुताबिक़, उनकी गिरफ़्तारी भी घटनास्थल से नहीं हुई थी और गिरफ़्तारी के बाद भी पुलिस ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि जिसकी वजह से गिरफ़्तार किया गया है, वह गोमांस है भी या नहीं.
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गाय की हत्या पर 10 साल की सज़ा
उत्तर प्रदेश सरकार ने गोहत्या निवारण क़ानून को और अधिक मज़बूत बनाने के मक़सद से लॉकडाउन के दौरान जून महीने में इसमें संशोधन के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी थी और इससे संबंधित अध्यादेश जारी कर दिया गया था. बाद में 22 अगस्त को विधान सभा के संक्षिप्त सत्र के दौरान इस अध्यादेश को दोनों सदनों से पारित भी कर दिया गया.
इसके तहत यूपी में गाय की हत्या पर 10 साल तक की सज़ा और 3 से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. इसके अलावा गोवंश के अंग भंग करने पर 7 साल की जेल और 3 लाख तक जुर्माना लगेगा.
अध्यादेश जारी करते वक़्त राज्य के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने कहा था कि अध्यादेश का मक़सद उत्तर प्रदेश गोवध निवारण क़ानून, 1955 को और अधिक संगठित और प्रभावी बनाना तथा गोवंशीय पशुओं की रक्षा और गोकशी की घटनाओं से संबंधित अपराधों पर पूरी तरह से लगाम लगाना है.
उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955, साल 1956 में छह जनवरी को लागू हुआ था और उसी साल इसकी नियमावली बनी थी. इस क़ानून में अब तक चार बार और नियमावली में दो बार संशोधन हो चुका है. सरकार का कहना है कि नए संशोधन से गोवंशीय पशुओं का संरक्षण एवं परिरक्षण प्रभावी ढंग से हो सकेगा और गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन पर अंकुश लगाने में भी मदद मिलेगी.
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गैंगस्टर एक्ट के तहत भी कार्रवाई
यूपी में बीजेपी सरकार राज्य में गोकशी को रोकने के लिए शुरू से ही तमाम कोशिशें करती रही है और गायों के खुले में घूमने को लेकर भी काफ़ी सख़्त रही है. सरकार ने हर ज़िले में गोशालाएं बनवाने के भी आदेश दिए हैं. बावजूद इसके बड़ी संख्या में गाय और अन्य पशु सड़कों पर न सिर्फ़ घूमते मिलते हैं बल्कि गोशालाओं में भी आए दिन गायों के भूख और बीमारी से मरने की ख़बरें आती रहती हैं.
गोकशी रोकने के लिए सरकार ने नियमों को भी सख़्त किया है और संशोधित क़ानून में इसे लेकर काफ़ी सख़्ती बरती गई है. पहली बार गो हत्या के आरोप साबित होने पर 3 से 10 साल की सज़ा और 3 लाख से लेकर 5 लाख रुपये तक के जुर्माने का ही प्रावधान है जबकि दूसरी बार ऐसा होने पर जुर्माना और सज़ा दोनों भुगतना पड़ेगा. यही नहीं, दूसरी बार यह अपराध करने पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई और संपत्ति ज़ब्त करने का भी प्रावधान किया गया है.
गोकशी के आरोप में सरकार ने बड़ी संख्या में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत भी कार्रवाई की है. पिछले महीने सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा गोकशी के मामलों में हुआ है.
एक साल में 1700 से अधिक मामले
राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी के मुताबिक़, इस साल अगस्त तक यूपी पुलिस ने राज्य में 139 लोगों के ख़िलाफ़ एनएसए लगाया है, जिनमें से 76 मामले गोहत्या से जुड़े हैं.
गोहत्या के मामलों में इतनी बड़ी संख्या में एनएसए के तहत कार्रवाई के बारे में अवनीश कुमार अवस्थी कहते हैं कि गोहत्या क़ानून में सख़्ती की वजह से ऐसा हुआ है और ज़्यादातर मामलों को हाई कोर्ट ने भी अपनी स्वीकृति दे दी है.
बीबीसी से बातचीत में अवनीश अवस्थी कहते हैं, "गोहत्या का मामला बेहद संवेदनशील होता है. इसकी वजह से तमाम परेशानियां खड़ी होती हैं. इसलिए सरकार ने बहुत ही सख़्त क़दम उठाया है. क़ानून भी सख़्त किया है और ऐसे मामलों में सख़्त कार्रवाई भी की गई है. आज कहीं भी दंगे नहीं हो रहे हैं. ये सब उसी का नतीजा है."
गोकशी के मामलों में एनएसए के अलावा इस साल अब तक उत्तर प्रदेश गोहत्या निवारण अधिनियम के तहत भी 1700 से ज़्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं और चार हज़ार से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. हालांकि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ सबूत इकट्ठा न कर पाने के कारण पुलिस 32 मामलों में क्लोज़र रिपोर्ट भी दाखिल कर चुकी है.