यूपी विधानसभा चुनाव 2017: चुनावी बिसात पर क्या सोच रहा यूपी का मुस्लिम वोटर?
प्रदेश में मुस्लिम आबादी 19.3 फीसदी है। 73 विधानसभा सीटों पर 30 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में इन 73 सीटों पर 35 में सपा ने जीत हासिल की थी।
नई दिल्ली। यूपी चुनाव की बिसात पर इस बार कौन सा फैक्टर काम करेगा ये तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा। हालांकि सभी सियासी दल अपना नफा-नुकसान देखते हुए रणनीति बना रहे हैं। यूपी की सत्ता तक पहुंचने में मुस्लिम वोटरों का अहम रोल होता है, ऐसे में सभी सेक्युलर पार्टियों की नजरें इस वोटबैंक पर रहती हैं। चाहे सपा हो या बसपा, दोनों ही दल अपनी सियासी रणनीति को इन्हीं के इर्द-गिर्द बुनते नजर आते हैं। अल्पसंख्यक वोटरों को अपनी ओर मिलाने के लिए बीएसपी ने अपना पत्ता चल दिया है। ये भी पढ़ें- यूपी विधानसभा चुनाव 2017: 'जीत की चाबी, डिंपल भाभी'...यूपी चुनाव में गूंजेंगे ऐसे नारे
मुस्लिम मतदाताओं पर सपा और बसपा दोनों की नजरें
यूपी चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है, इतना ही नहीं पार्टी ने प्रदेश में मुस्लिम समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए खास रणनीति बनाई है। बसपा के नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने प्रदेश के दर्जनभर से ज्यादा मौलवियों से संपर्क करके उन्हें बीएसपी के समर्थन में वोट मांगने की अपील की है। दूसरी ओर सपा और कांग्रेस के गठबंधन की नजर भी इस वोट बैंक पर होगी। इस गठबंधन की रणनीति यही होगी कि बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए मुस्लिम वोट को बंटने से रोका जाए। हालांकि अब ये अल्पसंख्यकों को तय करना है कि उनका वोट किस पार्टी को जाएगा?
यूपी में मुस्लिम वोट कितने हैं?
-
प्रदेश
में
मुस्लिम
आबादी
19.3
फीसदी
है।
-
73
विधानसभा
सीटों
पर
30
फीसदी
मतदाता
मुस्लिम
हैं।
2012
के
विधानसभा
चुनाव
में
इन
73
सीटों
पर
35
में
सपा
ने
जीत
हासिल
की
थी।
बीजेपी
को
17
सीटें
मिली
थी।
बीएसपी
को
13,
आरएलडी
और
कांग्रेस
ने
मिलकर
चुनाव
लड़ा
और
6
सीटें
हासिल
की।
अन्य
छोटी
मुस्लिम
पार्टियों
ने
दो
सीटें
हासिल
की।
-
70
सीटों
पर
मुस्लिम
वोटरों
की
संख्या
20
से
30
फीसदी
के
करीब
है।
2012
में
यहां
से
सपा
को
37
सीटें
मिली,
बसपा
को
13
पर
जीत
मिली,
बीजेपी
को
9
और
कांग्रेस-आरएलडी
गठबंधन
को
8
सीटें
मिली।
इसके
अलावा
मुस्लिम
पार्टियों
ने
3
सीटों
पर
जीत
हासिल
की।
कहीं अखिलेश का समर्थन तो कोई माया के साथ
बरेली के मोहनपुर गांव में रहने वाले महताब एसी रिपेयर वर्कर हैं, उनसे जब यूपी चुनाव में वोट को लेकर सवाल किया तो उनका सीधा जवाब था कि वो अखिलेश यादव को ही वोट करेंगे। महताब का कहना है कि अखिलेश युवा मुख्यमंत्री हैं विकास ही उनका मुद्दा रहा है। ऐसे ही आजमगढ़ के लालगंज स्थित मदरसा के मौलाना मोहम्मद शरवर ने बताया कि यूपी चुनाव में वो समाजवादी पार्टी को ही वोट करते, लेकिन जिस तरह से सपा में कलह की बात सामने आई और अखिलेश यादव पार्टी के मुखिया बनकर सामने आए, इसके बाद अब वो मायावती की बहुजन समाज पार्टी को वोट करेंगे।
तो इसलिए मुस्लिम वोटर नहीं देंगे बीजेपी को वोट
अलीगढ़ के मुफ्ती शहर में रहने वाले मोहम्मद खालिद हमीद की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही दिल्ली पहुंच चुके हैं। अगर वो लखनऊ भी जीत जाएंगे तो और भी ज्यादा घमंडी हो जाएंगे। अगर लोकतंत्र को बचाना है तो मजबूत विपक्ष खड़ा करना जरूरी है। जब उनसे पूछ गया कि क्या आपकी मोदी से निजी दुश्मनी है तो उन्होंने कहा कि हमारी कोई निजी दुश्मनी नहीं है, लेकिन जिस तरह से बीजेपी के लोग इस्लाम के बारे में बात करते हैं, मुस्लिमों को लेकर टिप्पणी की जाती है, ये बिल्कुल भी स्वीकार नहीं हैं। अगर वो जीत गए तो उनका हौंसला और ज्यादा बढ़ जाएगा।
नोटबंदी का दिखेगा चुनाव पर असर
चुनावी इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से एक भी मुस्लिम सांसद संसद नहीं पहुंचा। हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव में जरुर मुस्लिम उम्मीदवारों की अच्छी संख्या विधानसभा पहुंची। विधानसभा में 63 मुस्लिम उम्मीदवार जीत कर पहुंचे। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले एक छात्र के मुताबिक बीजेपी को हमारे वोट की जरूरत नहीं है, ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी रणनीति ही सभी को हमारे खिलाफ खड़ा करने की है। मुस्लिम वोटरों से बातचीत में एक और बात जो बीजेपी के खिलाफ जाती दिख रही है वो है नोटबंदी का मुद्दा। जानकारी के मुताबिक नोटबंदी से सभी लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। चाहे मजदूर हों या फिर किसान या फिर छोटी-छोटी दुकान चलाने वाले दुकानदार सभी ने नोटबंदी के फैसले की आलोचना की है।
क्या मुस्लिम वोट में भी होगा बंटवारा?
मुजफ्फरनगर और आस-पास के जिलों में मुस्लिम समुदाय में 2013 के दंगों का असर साफ नजर आ रहा है। इस इलाके के मुस्लिम वोटरों से बातचीत में पता चला कि वो इस बार सपा की जगह बसपा को वोट देना पसंद करेंगे। उनका साफ कहना था कि सपा में झगड़े की वजह से उन्होंने ये फैसला लिया है। वहीं दारुल उलूम देवबंद से जुड़े वरिष्ठ मौलवी ने बताया कि इस बार मुस्लिम वोट में बंटवारा नजर आएगा। बीजेपी को हराना जरूर बड़ा मुद्दा है लेकिन सभी मुस्लिम चुनाव में अपने लिए खास पार्टी को चुनने की स्थिति में नहीं होते हैं। इसमें उम्मीदवार, पार्टी और पुराना इतिहास भी मायने रखता है। ये भी पढ़ें- इलाहाबाद: भाजपा ने दलबदलू नेताओं को सर आंखों पर बिठाया, पढ़िए प्रत्याशियों के बारे में सबुकछ