Shabnam case story:आजाद भारत की पहली महिला, जिसके परिजनों को है उसकी फांसी का इंतजार
लखनऊ: अमरोहा की कुख्यात शबनम के परिजनों के लिए अब इंतजार का वक्त लंबा होता जा रहा है। वो जल्द से जल्द उसकी फांसी की तामील की खबर सुनने को बेकरार हो रहे हैं। 1947 में भारत की आजादी के बाद का यह पहला मामला तो ही, जिसमें एक महिला को फांसी लगने वाली है, शायद यह पहला ऐसा केस भी है, जिसमें दोषी के परिजनों को भी उसे मिलने वाली सजा पर दुख नहीं हो रहा है। उनका साफ कहना है कि उसने जो गुनाह किया है, उसकी माफी कहीं नहीं है। हालांकि, हत्यारों की ओर से अभी भी फांसी की सजा को कम करने की कानूनी तिकड़म जारी है, लेकिन जानकारी के मुताबिक पवन जल्लाद ने भी अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं।
किसी भी वक्त जारी हो सकता है डेथ वॉरंट
शबनम और उसके प्रेमी सलीम का डेथ वॉरंट किसी भी वक्त जारी हो सकता है। राष्ट्रपति उसकी दया याचिका खारिज कर चुके हैं। शबनम अभी उत्तर प्रदेश के रामपुर जेल में कैद है और उसकी फांसी की तैयारी 150 साल पुरानी मथुरा जेल में की जा रही है। क्योंकि, महिलाओं को फांसी पर लटकाने की व्यवस्था देश के सिर्फ इसी जेल में है। जैसे ही जल्लाद शबनम को मथुराा जेल में फांसी के फंदे पर लटकाएगा, वह आजाद भारत में ऐसी सजा पाने वाली पहली महिला बन जाएगी। लेकिन, शबनम के चाचा सत्तार अली और चाची फातिमा को अपनी भतीजी से कोई सहानुभूति नहीं है। वो बीते 13 वर्षों से उसे ऐसी ही कठोर सजा दिलवाने के लिए दिन गिन रहे हैं। उनका मानना है कि सिर्फ फांसी से ही उनके परिजनों को न्याय मिल सकती है। सत्तार अली उस नरसंहार के बाद से अपने भाई शौकत अली के घर में ही रहते हैं। वो साल में एक बार जब परिवार के उन सातों सदस्यों की कब्र की सफाई करते हैं तो आज भी इनका कलेजा मुंह को आ जाता है।
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उनके गुनाहों की सजा सिर्फ फांसी-शबनम के परिजन
शबनम की चाची फातिमा ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा है कि शबनम और सलीम ने जो गुनाह किए हैं, उसकी सजा सिर्फ फांसी है। उन्होंने कहा है, 'ये दोनों उसी तरह की सजा के हकदार हैं, जो सऊदी अरब में ऐसे गुनाहों के लिए दिया जाता है।' अमरोहा के बावनखेड़ी गांव के लिए शबनम नाम इतना 'बदनाम' हो चुका है कि उस नरसंहार के बाद यहां कोई अपनी बेटियों का यह नाम नहीं रखता। वहीं सलीम की मां चमन जहां दिन-रात ऊपर वाले से दुआ करती रहती है। वो कहती है- 'अल्लाह अब जो भी करेंगे, हम उसे कबूल कर लेंगे।' उसके गरीब पिता तो अपने बेटे के बारे में दो लफ्ज भी कहने को तैयार नहीं होते।
शबनम ने की थी परिवार के 7 सदस्यों की बेरहमी से हत्या
शबनम को उसके प्रेमी सलीम के साथ अपने परिवार के सात सदस्यों की बेरहमी से हत्या का दोषी करार दिया गया है। अमरोहा जिला अदालत ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। पहले इन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की, फिर सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की गुहार लगाई। लेकिन, दोनों अदालतों ने इनकी सजा बरकरार रखी। आखिरकार राष्ट्रपति से भी दया की भीख नहीं मिली तो फांसी की सजा का रास्ता साफ हो चुका है। शबनम ने 14 अप्रैल, 2008 को अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने माता-पिता, दो भाइयों और उनकी पत्नियों के साथ ही 10 महीने के दुधमुहें भतीजे का कत्ल कर दिया था। उसने ऐसा कदम सिर्फ इसलिए उठाया क्योंकि, उसके परिवार वाले उन दोनों के रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे।
दो विषयों में एमए है शबनम
अंग्रेजी और भूगोल दो विषयों में एमए (मास्टर ऑफ आर्ट्स) शबनम अपने गांव के प्राइमरी स्कूल में टीचर थी। इतने बड़े नरसंहार को अंजाम देने के बाद भी उसने यह साबित करने की भरपूर कोशिश की थी कि अज्ञात हमलावरों ने उसके घर पर हमला किया था। हालंकि, बाद में शबनम टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर लिया कि उसने सलीम को इस अपराध के लिए उकसाया था। उसने परिवार वालों को हत्या से पहले उनके दूध में नशीली दवा मिलाकर पिला दिया था और उसके बाद अपने छोटे से भतीजे का गला घोंट दिया।
रिश्ते का विरोध करने पर किया था रिश्तों का कत्ल
छठी क्लास फेल सलीम शबनम के घर के बाहर ही लकड़ी कटाई का काम करता था। यहीं पर शबनम के दिमाग पर प्यार का ऐसा खून सवार हुआ कि उसने अपने पूरे परिवार को उजाड़ डालने जैसा घिनौना कदम उठा लिया। अमरोहा कोर्ट में यह केस दो साल तक चला, फिर 2015 में ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकार रखने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने इन दोनों को सजा-ए-मौत सुनाया था। अब शबनम का 12 साल का मासूम बेटा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तक से अपनी मां के लिए रहम की भीख मांग रहा है। लेकिन, शबनम ने अपने अधिकतर कानूनी विकल्पों पर अमल कर लिया है। अगर कोई कानूनी पेंच नहीं फंसा तो जानकारी के मुताबिक दिल्ली के निर्भया गैंगरेप के गुनाहगारों को फांसी देने वाला पवन जल्लाद अब शबनम और सलीम को भी फांसी के तख्त पर लटकाने की तैयारी शुरू कर चुका है।