मोदी की काशी में नाव पर चलता हाईटेक स्कूल, नहीं देनी पड़ती कोई फीस
एक नाव में चलने वाले इस स्कूल में बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा के साथ ही कंप्यूटर जैसी आधुनिक शिक्षा भी दी जाती है। इन्हें कार्टून दिखाया जाता हैं, जिसे चलाने के लिए सोलर सिस्टम भी लगाया गया है...
वाराणसी। काशी में गंगा के घाटों के किनारे तमाम ऐसे लोग रहते हैं जिनके बच्चों के लिए शिक्षा दुर्लभ है। गरीब परिवारों के ऐसे बच्चों के लिए लोग शिक्षा का ज्यादा महत्व भी नहीं समझते। लेकिन इन्हीं बच्चों को शिक्षा की सही अहमियत समझाने के लिए एक संस्था नाव पर ही एक छोटा सा स्कूल चलाती है जहां बच्चे खेल-खेल में शिक्षा के महत्व को समझते हैं और सबसे खास बात ये कि गंगा की लहरों के बीच चलने वाला ये स्कूल पूरी तरह से हाईटेक है।
क्यों चलता है ये स्कूल?
कमरे नुमा ये नाव जिसे बजड़ा भी कहते हैं गंगा की लहरों पर तैरता एक अनूठा स्कूल है। रोज शाम शहर के मानसरोवर घाट पर इस स्कूल में आस-पास के रहने वाले ऐसे बच्चे जुटते हैं जिनकी जिंदगी घाट से शुरू होकर यहीं खत्म हो जाती है। संस्था के संस्थापक अजित कुमार बताते हैं की इन बच्चों के लिए जिंदगी का मतलब घाट किनारे घूमना, खेलना और काम करना ही है। लेकिन बच्चों के स्कूल न जा पाने के चलते शिक्षा देने की ये योजना बनाई गई जो सफल हुई। अब ये बच्चे खेल-खेल में पढ़ाई के महत्व को समझ रहे हैं। इनमें से कुछ बच्चे ऐसे हैं जो किसी दूसरे स्कूल में नहीं पढ़ते और जो पढ़ते भी हैं वो सिर्फ नाम मात्र। इसलिए इन बच्चों की जिंदगी में शिक्षा के महत्व को बताने के लिए ये पहल शुरू की गई है।
सभी सुविधाओं से लैस है ये बोट स्कूल
गंगा के ऊपर एक नाव में चलने वाले इस स्कूल में बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा के साथ ही कंप्यूटर जैसी आधुनिक शिक्षा भी दी जाती है। मकसद साफ है, सिर्फ इन्हें पढ़ाना नहीं बल्कि पढ़ाई के प्रति इनमें रुचि जगाना। साथ ही इनके परिवार वालों को भी ये समझाने की कोशिश की जाती है कि वो बच्चों को पढ़ाएं। जिससे इनकी जिंदगी बन सके। इसके अलावा इन बच्चों को पढ़ाने के लिए दो अध्यापक भी हैं, शिक्षा देने के बाद इनके मनोरंजन के लिए इस नाव में टीवी भी लगी हुई है। जिसमे इन्हें कार्टून दिखाया जाता हैं, जिसे चलाने के लिए नाव के छत पर सोलर सिस्टम भी लगाया गया है। इसके साथ ही कैरम बोर्ड, कला की प्रतियोगिता भी होती हैं। जिससे इन्हें यहां रहने में मन लगा रहे।
इस स्कूल के बारे में क्या सोचते हैं लोग
क्या कहते हैं अध्यापक?
यहां शिक्षा देने वाली अध्यापिका मंजू कहती हैं कि शुरुआत में काफी मुश्किलें हुई थी। बच्चे आना ही नहीं चाहते थे लेकिन जब बोट में पढ़ाई के साथ-साथ मनोरंजन के साधन हुए तो बच्चों का मन यहां लगने लगा और अब बच्चे खुद यहां आते हैं।
क्या कहते हैं बच्चे?
मनोरंजन के साथ पढ़ाई का ये मेल इन बच्चों को भी खूब भाता है और धीरे-धीरे वो अब शिक्षा के महत्व को समझने लगे हैं। अब तक यहां 40 बच्चे पढ़ने आने लगे हैं। घाट पर ही रहने वाले 14 वर्षीय छात्र मनीष निषाद और रिंकी बताती हैं कि अब यहां आकर पढ़ने में अच्छा लगता है। हम पहले स्कूल नहीं जाते थे लेकिन जब से यहां आना शुरू किया तब से स्कूल का मतलब समझ में आया। अब हम सुबह स्कूल भी जाते हैं और शाम को यहां आते हैं।
मिसाल बना हुआ है ये अनोखा स्कूल
इस अनोखे स्कूल में अभी करीब 40 बच्चे पढ़ते हैं। पढ़ाई से संबंधित इनकी सभी जरुरतों को संस्था ही पूरा करती है और वो भी निशुल्क। पिछले चार साल से ये विद्यालय निरंतर चलता आ रहा है जो हर शाम 4 बजे से शुरू होता है और शाम 7 बजे तक चलता है। अब ये अनोखा स्कूल यहां के लोगों के लिए मिशाल बन चुका है जिसके खुलने के बाद यहां के लोग भी शिक्षा का महत्त्व समझ चुके हैं।
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