तिलभांडेश्वर मंदिर: रोज तिलभर बढ़ता है इस चमत्कारी शिवलिंग का आकार, शिवपुराण में है जिक्र
वाराणसी। भले ही हम सब भगवान की पूजा करते हों लेकिन उनके अस्तित्व को मानने से कतराते हैं शायद इसीलिए भगवान इस कलयुग में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा ही देते हैं। काशी के केदार खंड में स्थित है बाबा तिलभांडेश्वर का मंदिर। किवदंतियों के मुताबिक भगवान शिव का ये लिंग हर रोज एक तिल के आकार में बढ़ता है जिसकी तस्दीक़ शिव पुराण नामक धर्म ग्रन्थ भी करता है। वर्त्तमान में इस लिंग का आधार कहाँ है ये तो पता नहीं लग पाया हैं लेकिन ज़मीन से सौ मीटर ऊँचाई पर भी यह विशाल शिवलिंग अपनी कहानी खुद हीं बयां कर रहां है। सावन में इस जागृत शिवलिंग की आराधना का विशेष महत्व है।
मकर संक्राति पर बढ़ता है और सावन में एक तिल घटता है
अति प्राचीन ये शिवलिंग स्वयम्भू है लेकिन इसके मंदिर का निर्माण सैकड़ों वर्ष पहले हुआ था। सतयुग ये लेकर द्वापर युग तक यह लिंग हर रोज एक तिल के बराबर बढ़ता रहा। लेकिन कलयुग के आगाज़ के साथ लोगों को यह चिंता सताने लगी की यदि भगवान शिव ऐसे ही हर रोज बढ़ते रहे तो एक दिन पूरी दुनिया इस लिंग में समाहित हो जाएगी। तब लोगों ने सावन में यहाँ शिव की आराधना की,शिव ने प्रसन्न होकर सावन के सोमवार को दर्शन दिया और साथ ही यह वरदान भी की हर साल मकर संक्रांति में मैं एक तिल बढ़कर भक्तों का कल्याण करूँगा। सावन के सोमवार पर इस दिव्य धाम में दर्शन का विशेष महात्म है। यहाँ दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
विभाण्ड ऋषि की तपस्या से खुश होकर शिव हुए थे प्रकट
इस मंदिर में रोज दर्शन करने आने वाली नीता ने बताया कि वैसे तो बाबा तिलभांडेश्वर को लेकर अनेक मान्यताये जुड़ी हैं। वर्षों पहले इसी स्थान पर विभाण्ड ऋषि ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। इसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में बाबा ने उन्हें दर्शन दिया था, कहा ये भी जाता है कि शिव ने दर्शन उपरांत विभाण्ड ऋषि से कहा था कलियुग में ये रोज तिल के सामान बढ़ेगा और इसके दर्शन मात्र से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा। आज भी शिव भक्त यहाँ सावन में विशेष तौर पर पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर का नाम तिलभांडेश्वर पड़ा, यहाँ सावन में दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचाते हैं और विशेष आरती करते हैं। इस आरती के तौर तरीके ठीक बाबा विश्वनाथ की तर्ज पर होता है। यहाँ की भव्यता शिवपुराण में भी वर्णित है और सावन का विशेष श्रृंगार तो बस देखते ही बनता है। इतना विशाल शिवलिंग और उस पर जल अर्पण के साथ बेलपत्र और फूलों का श्रृंगार का महत्व है।
कण-कण में शंकर
भोले शंकर की नगरी काशी के बारे में कहा जाता है कि यहाँ के कण-कण में शंकर हैं। ये मंदिर भी इसी बात को दर्शाता है। वाराणसी के भेलूपुर में ये मंदिर स्थित है जो स्टेशन से 2.5 किलोमीटर की दूरी पर है। शिव पुराण मैं कहा भी गया है " कश्याम मर्न्याम मुक्ति " यानि काशी मैं मृत्यु होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है ऐसे मैं शिव का ये दिव्य रूप भक्तों के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है।