गौरी केदारेश्वर: दो भागों में बंटा है ये अदभुत शिवलिंग, भोलेनाथ खुद आते हैं यहां खिचड़ी खाने
वाराणसी। मन्दिरों के शहर बनारस में कई रहस्य छुपे हुए हैं। इन्हीं में से एक है काशी के केदार खण्ड का गौरी केदारेश्वर मंदिर। वैसे तो आपने कई शिवलिंग देखे होने लेकिन काशी के इस शिवलिंग की एक नहीं बल्कि कई महिमा है। यह शिवलिंग आमतौर पर दिखने वाले बाकी शिवलिंग की तरह ना होकर दो भागों में बंटा हुआ है। एक भाग में भगवान शिव माता पार्वती के साथ वास करते ही वही दूसरे भाग में भगवान नारायण अपनी अर्धनगिनी माता लक्ष्मी के साथ। यही नहीं इस मंदिर की पूजन विधि भी बाकी मंदिरों की तुलना में अलग है। यहां बिना सिला हुआ वस्त्र पहनकर ही ब्राह्मण चार पहर की आरती करते हैं वही इस स्वंभू शिवलिंग पर बेलपत्र, दूध गंगाजल के साथ ही भोग में खिचड़ी जरूर लगाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं यहां भोग ग्रहण करने आते हैं।
ऋषि मान्धाता की तपस्या से खुश होकर काशी आये गौरी केदारेश्वर
मंदिर के महंत श्री पंडित शिव प्रसाद पांडेय ने बताया कि जिस स्थान पर गौरी केदारेश्वर का मंदिर है जब ये काशी भगवान विष्णु का होता था तब यह मान्धाता ऋषि कुटिया बना कर रहते थे। कहा जाता है कि मान्धाता जाति से बंगाली थे जिसके कारण वो चावल का सामान ही बनाते थे। ऋषि मान्धाता भगवान शिव के परम भक्त थे और वो रोज तपस्या करने के बाद इसी स्थान पर खिचड़ी बना कर पत्तल पर निकाल देते और फिर उस खिचड़ी के दो भाग कर दिया करते थे। शिवपुराण में वर्णन है कि ऋषि मान्धाता अपने हाथों से बनाई खिचड़ी के एक हिस्से को लेकर रोजाना पहले गौरी केदारेश्वर को खिलाने हिमालय जाते और फिर वापस आने पर आधी खिचड़ी के दो भाग कर एक हिस्सा अतिथि को देते और एक स्वयं खाते।
ऋषि मान्धाता के बीमार होने पर प्रकट हुए गौरी केदारेश्वर
कई वर्षो तक ऐसे ही सेवा देने के बाद एक दिन ऋषि मान्धाता की अवस्था ज्यादा होने पर तबीयत खराब हो गयी। बहुत प्रयास के बाद भी जब वो खिचड़ी बनाने के बाद हिमालय जाने में असमर्थ महसूस करने लगे तो दुखी होकर कहा कि आज मैं अपने प्रभु और माता को खिचड़ी नही खिला पाया मेरी सेवा व्यस्त हो गयी और बेहोश हो गए। तब हिमालय से गौरी केदारेश्वर इस स्थान पर प्रकट हुए और खुद ही अपने हिस्से की खिचड़ी लेकर भोग लगाया।आधे हिस्से में से वहां मौजद मान्धाता ऋषि के अतिथियों को खुद शिव और पार्वती ने अपने हाथों से खिलाया। जिसके बाद ऋषि मान्धाता को जगा कर उन्हें खिचड़ी खिलाई और आशिर्वाद किया कि आज के बाद मेरा एक स्वरूप काशी में वास करेगा।
अहिल्याबाई होल्कर ने कराया मन्दिर का जीर्णोद्वार
यह मंदिर वाराणसी के श्री काशी विश्वनाथ से भी प्राचीन मंदिर है लेकिन शिव और गौरा के साथ ऋषि मान्धाता के कैलाश चले जाने के बाद यहां की व्यवस्था ठीक नही थी कई वर्ष बीत जाने के बाद इस मंदिर में काशी आने पर रानी अहिल्याबाई होल्कर ने जब दर्शन किया तो मंदिर की व्यवस्था को सुधीरण करने के लिए और गौरी केदारेश्वर के पूजा पाठ के लिए साल के 365 दिन के हिसाब से 365 करने का धर्मशाला बनवाया और वही मद्रास में 53 ख़िता का खेत भी खरीब चावल की खेती के आदेश दिए।
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