भक्तवत्सल महादेव मंदिर: नेपाल से आए इस पवित्र शिवलिंग का बदलता रहता है रंग
इलाहाबाद। प्रयागराज के शिवकुटी इलाके में भगवान शिव का एक अनुपम मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को भक्तवत्सल महादेव के नाम से जाना जाता है। लेकिन, बाबा भक्तवत्सल महादेव की स्थापना को लेकर एक बेहद ही दिलचस्प व धार्मिक घटनाक्रम जुड़ा हुआ है, जो इनकी ख्याति और महात्म्य को बहुत अधिक बढ़ा देता है। दरअसल बाबा भक्तवत्सल महादेव नेपाल से आए हुए हैं और उनकी स्थापना भी विशेष प्रयोजन से हुई थी। इस मंदिर पर नेपाली स्थापत्य कला का स्वरूप देखने को मिलता है। हालांकि कई बार जीर्णोद्धार क्रम से गुजर चुके इस मंदिर में काफी कुछ परिवर्तन हो गया है लेकिन नेपाल में बने तमाम शिवालयों की तरह ही बाबा भक्तवत्सल महादेव का यह मंदिर दिखाई पड़ता है। इस मंदिर की बाहरी दीवारों पर कोई अलंकरण नहीं है। लेकिन, ज्यामितीय आकारों से तिकोने शिखर पर खींची गई मोटी और मजबूत दीवारों भूकंपरोधी हैं।
नेपाल से कैसे आए महादेव
प्रयागराज में लगने वाले कुंभ और महाकुंभ में देश दुनिया के सैलानियों के आने का क्रम सदियों से चलता आ रहा है। जिसके क्रम में नेपाल के राजा भी यहां कल्पवास के लिए आया करते थे। मंदिर की पुजारिन टिंकू शर्मा बताती हैं कि प्रयाग में एक माह के कल्पवास के दौरान नेपाल नरेश को भगवान पशुपति नाथ की अत्यधिक दर्शन की इच्छा होती थी। वह उनके लिए व्याकुल हो उठते थे। ऐसे में उनका प्रयाग क्षेत्र को छोड़कर जाना संभव नहीं होता था। इसलिए निर्णय लिया गया कि नेपाल से ही भगवान महादेव को प्रयाग ले आया जाएगा। ताकि कल्पवास के दौरान शिव के दर्शन प्रतिदिन सुलभ होते रहे। राजा के इस निर्णय के बाद नेपाल से ही शिवलिंग लाकर प्रयाग के शिवकुटी इलाके में स्थापित किया गया और 108 विद्वान पंडितों ने यहां भगवान शिव की प्राण प्रतिष्ठा करा कर शिवलिंग का नामाकरण भक्तवत्सल महादेव कर दिया।
नेपालियों द्वारा ही होती है देखरेख
इस मंदिर की खासियत यह भी है कि यहां पर पुजारी भी नेपाली हैं तथा इसका जीर्णोद्धार भी जितनी बार हुआ नेपाली श्रद्धालुओं द्वारा नेपाली राज परिवार के द्वारा ही किया गया है। आज भी जब कभी प्रयाग में नेपाल का राजपरिवार या वहां लोग प्रयाग आते है। वह यहां दर्शन करने के लिए जरूर आते हैं। नेपाल के लोगों का ऐसा विश्वास है कि बाबा भक्तवत्सल थे, जो नेपाल के लोगों को प्रयाग में भी दर्शन देने के लिए यहां चले आए और यहां आकर रहना स्वीकार किया।
रंग बदलता है शिवलिंग
मंदिर की पुजारिन टिंकू शर्मा बताती हैं कि यह शिवलिंग बेहद ही दुर्लभ है। इस शिवलिंग का रंग थोड़े थोड़े समय पर स्वयं ही परिवर्तित होने लगता है। यह कभी लाल रंग, कभी नीला, कभी काले रंग में परिवर्तित हो जाता है। रंग बदलने की इस खासियत की वजह से यह शिवलिंग स्थानीय प्रयागवासियों में भी बेहद चर्चित है और लोग बाबा का चमत्कार से मानकर यहां दर्शन के लिए आते हैं। फिलहाल रंग बदलने वाला यह शिवलिंग दुनिया के दुर्लभ शिवलिंग में से एक है। इसके रंग बदलने का राज आज तक रहस्य बना हुआ है। हालांकि रंग बदलने के पीछे वैज्ञानिक कारण प्रकाश का मंदिर के अंदर विशेष तरह पहुंचना व शिवलिंग पर पड़ना बताया जाता है। साथ ही पत्थर की विशेषता भी इसे खास बनाती है। पत्थर पर चढ़ी हुई सामग्री के मिलन से रंगों का अचानक भेद करना आंखों के लिए मुश्किल हो जाता है। हालांकि कुछ देर ध्यान से देखने पर रंग पुनः बदला नजर आता है।
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