सावन विशेष: यहां सावन मास में जलाभिषेक करने से मिलता है गंगा सागर यात्रा का फल
वाराणसी। शिव की नगरी काशी में महादेव साक्षात वास करते हैं। यहां बाबा विश्वनाथ के दो मंदिर बेहद खास हैं। पहला विश्वनाथ मंदिर जो 12 ज्योतिर्लिंगों में नौवां स्थान रखता है, वहीं दूसरा जिसे नया विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर काशी विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित है। कहा जाता है कि सावन मास में जो भी बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करता है, उसे गंगा सागर यात्रा का फल मिलता है।
काशी नगरी पतित पावनी गंगा के तट पर बसी हुई है। यह भी कहा जाता है कि काशी नगरी देवादिदेव महादेव की त्रिशूल पर बसी है। धर्मग्रन्थों और पुराणों में जिसे मोक्ष की नगरी कहा गया है जो अनंतकाल से बाबा विश्वनाथ के भक्तों के जयकारों से गूंजती आयी है, शिव भक्तों की वो मंजिल है जो सदियों से यहां मोक्ष की तलाश में आते रहे हैं।
यहां
लगती
हैं
बाबा
विश्वनाथ
की
कचहरी
आज
हम
इंसानों
की
नहीं
बल्कि
देवताओं
की
कचहरी
के
बारे
में
आपकों
बताने
जा
रहे
है।
दरसअल
वाराणसी
के
श्री
काशी
विश्वनाथ
मंदिर
परिसर
में
बाबा
विश्वनाथ
की
कचहरी
लगती
है।
बता
दें
कि
कचहरी
में
भगवान
विश्वनाथ
की
शिवलिंग
नहीं,
बल्कि
हिंदू
धर्म
के
सभी
देवता
यहां
शिवलिंग
के
रूप
में
विराजमान
है।
यही
नहीं
महाभारत
के
पांच
पांडव
और
कपिल
मुनि
की
एक
मूर्ति
ही
इस
मंदिर
की
शोभा
बढ़ाती
है।
शिव
पुराण
के
मुताबिक
इस
मंदिर
में
भगवान
विश्वनाथ
अपनी
एक
कचहरी
लगाकर
भक्तों
की
फरियाद
सुनते
है
और
उनकी
समस्या
के
समाधान
के
लिए
फ़रियाद
के
मुताबिक
देवताओं
को
आदेश
देते
है।
एक
हजार
साल
पुराना
हैं
मंदिर
धर्मशास्त्रों
की
माने
तो
यह
मंदिर
करीब
1
हजार
साल
पुराना
है।
काशी
विश्वनाथ
मंदिर
परिसर
कूप
के
पास
होने
के
कारण
सुरक्षा
की
दृष्टि
से
अब
यहां
तक
श्रद्धालुओं
का
पहुंचना
नामुमकिन
होता
है।
इसके
लिए
भक्तों
को
लम्बी
परिक्रमा
करनी
पड़ती
है।
यह
है
मान्यताएं
इस
मंदिर
की
ऐसी
भी
मान्यता
है
कि
श्रावण
मास
के
महीने
में
जो
भी
भक्त
बाबा
विश्वनाथ
का
जलाभिषेक
करता
है
उसे
गंगासागर
यात्रा
का
फल
मिलता
है।
इस
पूरे
मामले
पर
मंदिर
के
महंत
बच्चा
पाठक
ने
बताया
की
मंदिर
विश्वनाथ
से
अर्जी
लगाने
के
लिए
भारी
संख्या
में
कांवड़िए
और
भक्तों
का
हुजूम
जलाभिषेक
के
लिए
आता
है।
सभी
भक्त
अपनी
मनोकामनाओं
की
पूर्ति
के
लिए
जलाभिषेक
कर
अपनी
फरियाद
लगाता
है
और
भोलेनाथ
उसकी
सभी
मनोकामनाओं
को
पूर्ण
करते
हैं।
यही
वजह
है
कि
इस
शिवलिंग
को
धर्मराज
महादेव
के
नाम
से
भी
जाना
जाता
है।