सावन विशेष: अर्जुन ने इस जगह की थी भगवान शिव की तपस्या, खुश होकर मिला था ये वरदान
उत्तर प्रदेश, सोनभद्र, Sonbhadra, uttar pradesh, saawan, sawan, सावन
सोनभद्र। राबर्ट्सगंज नगर से दक्षिण चुर्क के समीप सहजन कला गांव की पहाड़ी पर स्थित पंचमुखी मंदिर मार्कण्डेय ऋषि की तपोस्थली रही है। यह स्थल दक्षिण मध्य काशी के मध्य श्मशान तंत्रपीठ भी है। मंदिर के पुजारी लक्ष्मण द्विवेदी बताते है कि पांच मुख के भगवान भोलेनाथ स्वयंभू है।
अर्जुन
ने
की
थी
तपस्या
पुजारी
लक्ष्मण
द्विवेदी
की
माने
तो
मूर्ति
की
स्थापना
नहीं
की
गई
थी।
द्वापर
युग
में
पांडवों
को
वनवास
होने
पर
अर्जुन
द्वारा
यहीं
पर
भगवान
शिव
की
तपस्या
की
गयी
थी।
यहीं
पर
भगवान
भोलेनाथ
ने
प्रसन्न
होकर
अर्जुन
को
पशुपत
अस्त्र
प्रदान
किया
था।
स्वयंभू
है
पंचमुखी
शिव
पंचमुखी
भगवान
शिव
मंदिर
में
मूर्ति
की
स्थापना
नहीं
की
गई
थी।
यहां
पर
भगवान
का
शिवलिंग
स्वयं
जमीन
से
निकला
है।
इसलिए
इसे
स्वयंभू
कहते
है।
जमीन
के
अंदर
से
शिवलिंग
के
प्रकट
होने
के
कारण
लोग
इसे
चमत्कार
मानते
है।
ताप
के
शांति
के
लिए
होता
है
जलाभिषेक
ऐसी
धार्मिक
मान्यता
है
कि
सावन
महीने
में
भगवान
भोलेनाथ
पर
जलाभिषेक
उनके
शरीर
के
ताप
को
कम
करने
के
लिए
किया
जाता
है।
डा.एसएन
त्रिपाठी
ने
बताया
कि
देव
और
दानवों
ने
मिलकर
समुद्र
मंथन
किया
था।
मंथन
के
दौरान
चौदह
रत्न
निकले
थे।
इसमें
हलाहल
(विष)
भी
निकला
था।
सृष्टि
की
रक्षा
हेतु
विष
का
पान
भगवान
भोलेनाथ
ने
किया।
विष
के
ताप
को
कम
करने
के
लिए
भोलेनाथ
पर
देव
और
दानवों
ने
मिलकर
जल
से,
दूध
अभिषेक
किया।
ताप
के
शांति
के
लिए
चंद्रमा
को
भगवान
भोलेनाथ
ने
धारण
किया।
कहा
जाता
है
कि
समुद्र
मंथन
सावन
महीने
में
हुआ
था
इसलिए
सावन
महीने
में
शिवलिंग
पर
जलाभिषेक
किया
जाता
है।
सावन
में
रुद्राभिषेक
भी
किया
जाता
है।