श्रीकृष्ण के चक्र और शिव के त्रिशूल के टकराने पर निकली रोशनी से बना शिवलिंग
भदोही। काशी और प्रयाग के मध्य गंगा तट पर स्थित सेमराध नाथ भगवान के नाम से बना यह शिव मंदिर कुएं की गहराई में स्थित है। वैसे तो बारह माह लोगों का आना जाना लगा रहता है। लेकिन श्रावण माह में यहां भक्तों की भारी भीड़ लगती है। मान्यता यह है कि कि भगवान श्रीकृष्ण के चक्र और शिव के त्रिशुल के टकराने पर निकली रोशनी से शिवलिंग की उत्पत्ति हुई थी।
राक्षस पुण्डरीकको मारने के लिए चलाया था सुदर्शन चक्र
मंदिर के बारे में मान्यता है कि द्वापर युग में पुण्डरीक नाम का एक राक्षस राजा हुआ करता था। वह अपने आप को भगवान श्रीकृष्ण कहा करता था। उसका कहना था की पूरी प्रजा उसे कृष्ण मान कर पूजा करें। इस बात का पता जब भगवान श्रीकृष्ण को चला तो वे बहुत क्रोशित हुए और उन्होंने पुण्डरीक को समझाया। लेकिन पुण्डरीक ने उनकी एक न सुनी और भगवान श्रीकृष्ण को युद्घ के लिए ललकारने लगा। उस समय भगवान् श्री कृष्ण इलाहाबाद के शूल व्यंकटेश्वर मंदिर में थे। दोनों तरफ से युद्घ शुरू हो गया। भगवान श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र काशी की तरफ चला दिया और चारों तरफ हाहाकार मच गया। पुण्डरीक इस युद्घ में मारा गया।
चक्र व त्रिशूल के टकराने पर निकली रोशन धरती में समाई
राक्षस राजा के मारे जाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के चलाये गए सुदर्शन चक्त्र से पूरी काशी धू-धूकर जलने लगी। जिसके बाद भगवान शिव ने श्रीकृष्ण से विनय किया कि प्रभु आपके चक्र से पूरी काशी जल रही है। ऐसे में अब काशी वासी कहा जाए। जिसके बाद देवताओं ने प्रस्ताव रखा कि एक तरफ से भगवान श्रीकृष्ण अपना सुदर्शन चलाये और दुसरे तरफ से भोले भंडारी शिव अपना त्रिशूल चलाया। ये दोनों शस्त्रों के टकराने से एक अलौकिक रौशनी उत्पन्न हुई और वो धरती में समां गई। यहीं स्थान पर भोले भंडारी का वास है।
व्यापारी को आया स्वपन फिर ऐसे बना सेमराध का मंदिर
ऐसा कथा है कि एक व्यापारी नाव से अपना सामन ले कर जा रहा था कि अचानक उसकी नाव यही गंगा नदी में फंस गई। काफी प्रयास के बाद भी जब नहीं निकली तो उसने इसी स्थान पर रात्री विश्राम करने की सोची और सो गया। रात में उसे स्वपन में भगवान शिव का दर्शन हुआ और भोले ने उससे कहा तुम इस स्थान पर खुदाई करवाओ यहां शिवलिंग है। व्यापारी ने ऐसा ही किया और उसने अगले दिन खुदाई कराई तो उसे एक शिवलिंग दिखा। जिसके बाद उसने शिवलिंग को अपने साथ ले जाने के बारे में सोचा और जितना पास जाता शिवलिंग उतना ही अंदर चला जाता। जिसके बाद उसने यहीं पर भोले का मंदिर बनवा दिया। जिस कारण आज भी वो मंदिर एक कुंए में स्थापित है।