BSP छोड़कर सपा में आए इन दिग्गजन नेताओं को Akhilesh Yadav ने दिया बड़ा इनाम, सौंपी ये बड़ी जिम्मेदारी
लखनऊ, 01 अक्टूबर : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Lucknow) में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद अब समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों में जुटने के लिए तैयार है। सपा के नेताओं की माने तो 2024 का चुनाव पार्टी के लिए 'अभी नहीं तो कभी नहीं' वाली स्थिति है। सपा के रणनीतिकारों की माने तो पार्टी का फोकस गैर जाटव और गैर यादव ओबीसी समुदाय को पार्टी के पाले में लाने पर रहेगा। इसके लिए सपा के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने बसपा (Bahujan Samaj Party) छोड़कर सपा में आए चार नेताओं की एक टीम बनाई है जो इस एजेंडे को लागू करने को लेकर एक ब्लूप्रिंट तैयार करेगी।
बसपा के पुराने महारथियों को सौंपी ब्लूप्रिंट की जिम्मेदारी
पार्टी ने गुरुवार को संपन्न हुए अपने राष्ट्रीय अधिवेशन में बीजेपी का मुकाबला करने के लिए दलितों और ओबीसी के बीच एकता को मजबूत करने का आह्वान किया है। इसके लिए पार्टी ने सपा ने तीन वरिष्ठ ओबीसी नेताओं, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य को एक ब्लूप्रिंट तैयार करने का जिम्माद सौंपा है। ये तीनों नेता 2021 में सपा में शामिल होने से पहले तीन दशक से अधिक समय तक बहुजन समाज पार्टी में मायावती के साथ काम कर चुके हैं। इस टीम में बसपा के पूर्व नेता और अब सपा विधायक इंद्रजीत सरोज को भी शामिल किया गया है।
दीपावली के बाद सड़क पर संघर्ष करती दिखेगी सपा
ओबीसी नेताओं को ओबीसी और गैर-जाटव दलितों को एसपी के साथ जोड़न के लिए एक राजनीतिक ब्लूप्रिंट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी इस टीम को सौंपी गई है। सपा के सूत्रों ने कहा कि पार्टी ने जमीनी स्तर पर राजनीतिक लामबंदी के लिए दिवाली के तुरंत बाद सड़क पर उतरने की योजना बनाई है। पार्टी ने अपने वोट बैंक जुटाने के लिए तहसील से लेकर राज्य मुख्यालय स्तर तक आंदोलन का रास्ता चुना है। पार्टी के नेता और प्रवक्ता राजीव राय कहते हैं, '' पार्टी जल्द ही अपने चुनावी तैयारियों में जुटेगी। आने वाले समय में पार्टी की विचारधारा को यूपी के अलावा अन्य राज्यों में भी फैलाया जाएगा।''
2024 के चुनाव को निर्णायक लड़ाई मान रही सपा
सपा के नेताओं के मुताबिक 2024 की चुनावी लड़ाई को अपने इतिहास की सबसे निर्णायक लड़ाई मानकर सपा अब बड़ा लक्ष्य बना रही है। अखिलेश यादव अपने नए कार्यकाल में 2024 के लोकसभा चुनावों और 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करेंगे। उन्होंने राष्ट्रीय अधिवेशन में कहा था कि उनके पिता और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव हमेशा चाहते थे कि सपा एक राष्ट्रीय पार्टी बने। अखिलेश ने कहा कि, "हमने इसके लिए संघर्ष किया और बहुत कोशिश की। इस दिन, जब आप मुझे पांच साल का एक और कार्यकाल दे रहे हैं, तो हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि अगली बार जब हम सपा से मिलेंगे तो एक राष्ट्रीय पार्टी होगी।"
आठ वर्षों में बीजेपी से चार चुनाव हार चुकी है सपा
सपा को पिछले आठ वर्षों में बीजेपी के हाथों लगातार चार हार का सामना कर चुकी है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 और 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाया। अगला लोकसभा चुनाव 2024 में है। सपा के लिए अस्तित्व की लड़ाई होगी। लड़ाई कठिन है क्योंकि भाजपा ने यूपी में ओबीसी बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण पैठ बना ली है। सपा ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में खोए हुए निर्वाचन क्षेत्रों को वापस जीतने के लिए एक दृढ़ प्रयास किया और उसे आंशिक सफलता मिली।
सपा को राष्ट्रीय पार्टी बनाना अखिलेश का लक्ष्य
तीसरे कार्यकाल के लिए सपा अध्यक्ष चुने गए अखिलेश यादव ने पार्टी कार्यकर्ताओं से दलित नेता डॉ भीमराव अंबेडकर और समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के अनुयायियों को एक साथ लाने और सपा को एक राष्ट्रीय पार्टी बनाने का आह्वन किया था। बसपा प्रमुख मायावती ने हालांकि अखिलेश यादव के इस अभियान की यह कहकर हवा निकालने की कोशिश कि, "अखिलेश यादव का खुद को अंबेडकरवादी के रूप में पेश करने का प्रयास वोटों के लालच से प्रेरित एक चश्मदीद (छलावा) है।'' उन्होंने आरोप लगाया कि यूपी में सपा शासन के दौरान दलितों की उपेक्षा की गई थी।