अयोध्या-सभा पर आजम का कटाक्ष- तो फिर दिखा दें 1992 जैसी बहादुरी, कहना कि हिंदू दूसरा शौर्य दिवस मना रहे हैं
रामपुर। धर्मनगरी अयोध्या में विहिप और शिवसेना की अगुवाई में साधु संतों के साथ जुटी भीड़ पर आजम खान ने फिर तंज कसा है। आजम ने कहा है कि 'जो लाखों लोग इन्होंने जुटाए हैं, वे सबसे बहादुर लोग हैं। 6 दिसंबर 1992 को यही बहादुर अकेली पुरानी इमारत को गिरा दिए थे, वह बहुत बहादुरी का काम हुआ था।''
आजम ने आगे कहा कि तब एक तरफा बहादुरी दूसरी फिर कर लें। दोनों बहादुरी इतिहास में लिखी जायेंगी। फौज पहले भी लगी थी। इसमें फौज पीएसी से मतलब नहीं होता। आदेश और हाकिम की नीयत से मतलब होता है। हाकिम खामोश तमाशाई बना हुआ है। बहुत बहादुरी की बात है दूसरा शौर्य दिवस मनायेंगे। चुनाव है न इसी से वोट मिलेगा।''
यह
बातें
भी
कहीं
चार
पढ़े
लिखे
नौजवान
बेरोजगारी
से
तंग
आकर
ट्रेन
के
आगे
कूद
गये।
जिनमें
से
तीन
हलाक
हो
गये।
एक
जिन्दगी
मौत
की
लड़ाई
लड़
रहा
है।
कोई
और
देश
होता
तो
लोग
सड़कों
से
वापिस
नहीं
जाते
जबतक
उतना
ही
खून
सत्ता
का
न
बह
जाता।
अब
हमारे
यहां
इतिहास
में
सबसे
बड़ा
कारनामा
छह
दिसम्बर
को
हुआ।
बाकी
तो
बाहर
से
हुक्मरां
आते
रहे
और
हम
पर
हुकूमते
करते
रहे।
अब
हो
सकता
है
दूसरा
बड़ा
बहादुरी
का
काम।
कोर्ट
को
खुली
चुनौती
नहीं
बल्कि
अधिकार
है।
जाहिर
है
पांच
साल
कुछ
तो
किया
नहीं
है
पांच
दिन
में
कुछ
तो
कर
के
दिखाना
है।
भूख
से
मरते
बिलखते
लोगों
को
कुछ
तो
दिखाना
है।
'एक
बार
फिर
हमारी
यूएनओ
से
अपील
है'
यूएनओ
के
सवाल
पर
आजम
खां
ने
कहा
कि
ऐसे
में
एक
बार
फिर
हमारी
यूएनओ
से
अपील
है।
क्योंकि
हमारा
देश
पूरी
दुनिया
का
जवाबदेह
है
कि
वो
कौन
सा
काम
गैर
इंसानी
कर
रहा
है।
दोबारा
हम
उनसे
अपील
करना
चाहते
हैं
कि
इन
हालात
पर
वो
नजर
रखे
और
कहीं
ऐसा
न
हो
छह
दिसम्बर
92
जैसा
कि
जब
रामजानकी
रथ
चला
था
उस
जैसा
माहौल
देश
में
बने।
क्योंकि
संग्राम,
महासंग्राम,
संघर्ष,
टकराव
में
मुसलमान
कहीं
नहीं
है।
क्योंकि
मुसलमान
अपने
आप
से
अपनी
व्यवस्था
से
देश
के
लोकतंत्र
से
बहुत
मायूस
है।
कोई
उसको
रास्ता
भी
सुझाई
नहीं
देता।
बहुत
नाउम्मीदी
और
मायूसी
के
दौर
से
मुसलमान
गुजर
रहा
है।
बहुत
अपमानजनक
और
जुल्म
से
भरी
जिन्दगी
गुजार
रहें
हैं।