चुनाव आयोग में दस्तावेज देकर प्रोफेसर ने उम्मीदों के ताबूत में ठोंकी आखिरी कील
शनिवार को दिनभर सुलह का रास्ता तलाशने के लिए बैठकें होती रहीं, पर कोई नतीजा नहीं निकल पाया। माना जा रहा है कि अखिलेश किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने को राजी नहीं हैं।
नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी में अखिलेश खेमे और मुलायम खेमे के बीच सुलह की कोशिशें लगभग नाकाम हो चुकी हैं। सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी में टूट अब तय है और रविवार को इसका औपचारिक ऐलान भी कर दिया जाएगा। माना जा रहा है कि मुलायम खेमा और अखिलेश खेमा अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे और ऐसे में अब सारी लड़ाई एक बार फिर साइकिल चुनाव चिन्ह पर आकर टिक गई है। शायद यही वजह है कि अखिलेश खेमे से रामगोपाल यादव शनिवार शाम चुनाव आयोग पहुंचे और आयोग को 1.5 लाख से ज्यादा पन्नों के रूप में अखिलेश के समर्थन में दस्तावेज सौंपे।
सात
कार्टन
में
भरकर
लाए
गए
दस्तावेज
रामगोपाल
ने
चुनाव
आयोग
को
जो
दस्तावेज
सौंपे
हैं,
उनमें
205
विधायकों
के
हलफनामे
शामिल
हैं।
रामगोपाल
का
दावा
है
कि
90
प्रतिशत
विधायक
और
एमएलसी
मुख्यमंत्री
अखिलेश
यादव
के
साथ
हैं।
रामगोपाल
ने
कहा,
'प्रथम
दृष्टया
असली
समाजवादी
पार्टी
अखिलेश
की
है
और
साइकल
चुनाव
चिह्न
पर
हमारा
अधिकार
है।'
उन्होंने
कहा,
'हमने
कुल
5731
प्रतिनिधियों
में
से
4716
प्रतिनिधियों
के
हलफनामे
सौंपे
हैं।
यह
भारी
बहुमत
है,
90
फीसदी
से
ज्यादा
लोग
अखिलेश
के
साथ
हैं।
चुनाव
आयोग
ने
हमें
9
जनवरी
तक
का
वक्त
दिया
था,
पर
हमने
सारे
आज
ही
दस्तावेज
जमा
करा
दिए
हैं।
1.5
लाख
के
ज्यादा
पन्नों
के
दस्तावेज
सात
कार्टन
में
भरकर
यहां
लाए
हैं।'
पढ़ें: रामगोपाल यादव बोले-अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी असली
जिद
पर
अड़े
अखिलेश
यादव
इसके
पहले
शनिवार
को
दिनभर
सुलह
का
रास्ता
तलाशने
के
लिए
बैठकें
होती
रहीं,
पर
कोई
नतीजा
नहीं
निकल
पाया।
माना
जा
रहा
है
कि
अखिलेश
किसी
भी
कीमत
पर
राष्ट्रीय
अध्यक्ष
का
पद
छोड़ने
को
राजी
नहीं
हैं,
वह
चुनाव
तक
सभी
अधिकार
अपने
पास
रखना
चाहते
हैं।
मुलायम
खेमे
को
इसी
बात
पर
आपत्ति
है।
सूत्रों
के
मुताबिक
अखिलेश
यह
भी
चाहते
हैं
कि
शिवपाल
यादव
को
प्रदेश
की
राजनीति
से
दूर
रखा
जाए।
इसके
अलावा
अखिलेश
ने
अमर
सिंह
को
पार्टी
से
बाहर
निकालने
की
मांग
भी
रखी
है।
अखिलेश
चाहते
हैं
कि
रामगोपाल
यादव
को
फिर
से
पार्टी
में
पद
और
अधिकार
दिए
जाएं।
मुलायम
खेमा
यह
तो
समझ
रहा
है
कि
पार्टी
में
टूट
का
नुकसान
चुनाव
में
भुगतना
पड़ेगा,
पर
वह
पूरी
तरह
अखिलेश
के
सामने
सरेंडर
करने
को
भी
राजी
नहीं
है।
उधर
अखिलेश
भी
अपने
रुख
पर
अड़े
हुए
हैं।
ऐसे
में
समाजवादी
पार्टी
टूट
की
तरफ
बढ़
चुकी
है।