फिर हो सकता था रेल हादसा, इतनी बड़ी लापरवाही पर कैसे चुप रहता है प्रशासन?
अब छोटी-छोटी लापरवाही से होने वाली खामियों ने बड़ा रूप ले लिया है। इन खामियों को दूर करने के लिए बाहर से अनट्रेंड श्रमिक आयात करने पड़ रहे हैं और रेल कर्मचारी आराम फरमा रहे हैं।
उन्नाव। रेल हादसों की खबरें आए दिन मिलती हैं, लापरवाही से होने वाली ये घटनाएं ज्यादातर देखी-सुनी जा रही हैं। ऐसे में प्रशासन जिसे और चुस्त होना चाहिए उसकी लापरवाही का आलम बड़ा विचित्र है। जिन हालातों से रेल पटरियां गुजर रही हैं उससे तो यही लगता है कि प्रशासन खुद ही किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है! भारी भरकम रेलवे स्टाफ अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीर नहीं है। जवाबदेही के अभाव में रेल अधिकारियों की मनमानी सर चढ़कर बोल रही है। जबकि मंडल स्तरीय अधिकारी का दौरा, निरीक्षण सब होता है, बावजूद इसके भ्रष्ट अधिकारियों के ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
बुलाए जा रहे हैं अनट्रेंड श्रमिक, रेलवे कर्मचारी फरमा रहे हैं आराम
अब छोटी-छोटी लापरवाही से होने वाली खामियों ने बड़ा रूप ले लिया है। इन खामियों को दूर करने के लिए बाहर से श्रमिक आयात करने पड़ रहे हैं। अनट्रेंड श्रमिक किस तरीके से रेल पटरियों को दुरुस्त करेंगे और इसका कितना लाभ रेलवे को मिलेगा ये भविष्य बताएगा लेकिन विभागीय लापरवाही खुलकर सामने आ रही है जो एक जांच का विषय है। किन कारणों से पिंडाल पूरी तरह जाम हो चुके हैं? किन हालातों में पिंडाल ने पटरियों को पूरी तरीके से जकड़ लिया? पटरी निरीक्षक ने मरमरी कंपनी और अजगैन के बीच के सेक्शन में रेल पटरियों को दुरुस्त करने का काम शुरू किया है, जिसमें ठेकेदारों के द्वारा लगाए गए श्रमिक घरेलू गैस का इस्तेमाल कर जाम हो चुके पिंडाल को गरम करके बाहर निकालते हैं। जबकि रेल कर्मचारी पेड़ के नीचे आराम फरमाते देखे गए। जिसकी तकलीफ ठेकेदार के द्वारा लगाए गए श्रमिकों को है। उनका कहना है कि वो हाड़तोड़ मेहनत करके रेल पटरियों को दुरुस्त कर रहे हैं तब जाकर कहीं शाम को ₹250/- मिलते हैं। वहीं रेलवे कर्मचारी चार-पांच घंटे काम करके कई गुना रकम वसूल कर रहे हैं।
6 महीने में होना चाहिए ओवरहॉलिंग जो नहीं हुआ
चाबी मैन की ड्यूटी है कि वो रोज चाबी या पिंडाल पर हथौड़े से चोट करें, जिससे पिंडाल अगर बाहर निकल रही हो तो फिर वापस अपनी जगह पहुंच जाए। इसका एक और फायदा मिलता है कि पिंडाल जाम नहीं हो पाता और पटरियां मौसम के हिसाब से घटती और बढ़ती रहती है। रेलवे मानक के मुताबिक 6 महीने में पिंडाल की ग्रीसिंग भी होनी चाहिए जबकि सूत्र बताते हैं कि कई सालों से पिंडाल की ग्रीसिंग या ओवरहॉलिंग नहीं हुई। जिससे पिंडॉल के साथ लोहे की रेल पटरी भी जाम हो गई और मौसम के असर से पटरियों की ये दुर्दशा हो गई है। नतीजा ये होता कि इस लापरवाही का खामियाजा यात्रियों को उठाना पड़ता।
अति व्यस्त रेल मार्ग में से एक लखनऊ-कानपुर-दिल्ली मार्ग
लखनऊ-कानपुर-दिल्ली को अति व्यस्ततम मार्गों में से एक कहा जाए तो कोई गलत नही होगा। जिस पर शताब्दी जैसी ट्रेनें रोजाना अपनी स्पीड में दौड़ती हैं। इसके अतिरिक्त कई अन्य महत्वपूर्ण गाड़ियां भी उन्नाव स्टेशन पर दस्तक देती हैं। इसके बाद भी पटरियों के रखरखाव के प्रति रेलवे विभाग गंभीर नहीं है। लगभग चार सालों से तैनात उन्नाव में में पटरी निरीक्षक मो. इरशाद के काम पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। उनकी लापरवाही का खामियाजा आज विभाग उठा रहा है और साथ में यात्री भी उठा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक 3 किलोमीटर की रेंज में एक चाबी मैन और एक गैंग काम करती है। चाबी मैन अप और डाउन लाइन दोनों तरफ के पिंडाल और चाबी पर पैनी नजर रखता है। पिंडाल पर पड़ते हथोड़े की आवाज अब कहां सुनाई दे रही है। सूत्रों की माने तो 3 सालों से स्थानीय अधिकारी ने पिंडाल की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दिया और ना ही निश्चित अवधि में पिंडाल की ओवरहॉलिंग हुई। ओवरहॉलिंग न होने के चलते पटरियां जाम हो गईं और पटरियों के जाम होने के चलते पटरियां दाएं-बाएं भागती हैं और नतीजा क्या हो सकता है ये आप खुद सोच सकते हैं।
पुराने ढर्रे पर क्यों टिकी है रेल पटरियों की मरम्मत?
पुराने अधिकारी के ट्रांसफर के बाद नए अधिकारी ने पट्टियों की देखरेख के प्रति गंभीरता के साथ काम शुरू किया लेकिन चाबी मैन व गैंग के आदमी अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं जबकि ठेकेदार के द्वारा रखे गए अनट्रेंड श्रमिक गैस सिलेंडर के माध्यम से जाम हो चुकी पिंडाल को गर्म करके निकालने का प्रयास कर रहे हैं। इस दौरान कई पिंडाल या चाबी टूट भी जाती हैं, आप साफ देख सकते हैं कि किस तरह ठेकेदार के कर्मचारी गैस सिलेंडर से पिंडाल को गर्म कर रहे हैं, वहीं रेलवे के कर्मचारी पेड़ के नीचे आराम फरमा रहे हैं।
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