उत्तर प्रदेश: अखिलेश यादव के तोहफों की ‘बारिश’ और सियासत की ‘छतरी’!
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह देखने योग्य है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शिलान्यास दर शिलान्यास किए जा रहे हैं। क्या ये तोहफे चुनाव में काम आएंगे? पढ़ें यह चुनावी विश्लेषण।
आजकल
उत्तर
प्रदेश
में
तोहफों
की
बारिश
हो
रही
है
और
लोग
सियासत
की
छतरी
ओढ़े
हुए
हैं।
कुछ
भींग
रहे
हैं
तो
कुछ
बचने
की
कोशिश
कर
रहे
हैं।
यह
सियासत
होती
ही
एसी
है।
सूबे
में
जल्द
ही
विधानसभा
चुनाव
होने
वाले
हैं।
चुनावी
तारीखों
की
घोषणा
कुछ
ही
दिनों
में
होने
की
उम्मीद
है।
यह
सब
चुनावों
को
देखकर
किया
जा
रहा
है।
चुनाव
आयोग
को
पीछे
छोड़ते
हुए
मुख्यमंत्री
अखिलेश
यादव
फटाफट
योजनाओं
का
लोकार्पण
कर
रहे
हैं।
जानकारों
का
कहना
है
कि
इसी
माह
प्रदेश
में
चुनाव
आयोग
आचार
संहिता
लागू
कर
सकता
है,
इसलिए
मुख्यमंत्री
जनहितकारी
कामों
को
अंजाम
देने
में
लगे
हुए
हैं।
लखनऊ
शहर
के
अलग-अलग
हिस्सों
में
किए
गए
शिलान्यास
और
लोकार्पण
कार्यक्रमों
के
दौरान
मुख्यमंत्री
अखिलेश
यादव
नोटबंदी
पर
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
पर
खूब
ताने
मार
रहे
हैं।
कहते
हैं
कि
नोटबंदी
ने
देश
को
काफी
पीछे
धकेल
दिया
है।
उत्तर
प्रदेश
तेजी
से
तरक्की
कर
रहा
था,
लेकिन
नोटबंदी
से
सबकुछ
अचानक
रूक
गया।
यह
भी
कहते
हैं
कि
आगे-आगे
देखिए
होता
है
क्या।
लोगों
के
पास
पैसा
नहीं
है,
लोग
मर
रहे
हैं,
लेकिन
प्रधानमंत्री
तरक्की
की
बात
कर
रहे
हैं।
उत्तर
प्रदेश
में
जल्द
ही
विधानसभा
चुनाव
होने
जा
रहे
हैं।
चुनावी
तारीखों
की
घोषणा
कुछ
ही
दिनों
में
हो
जाएगी।
यूं
कहें
कि
दिसंबर
का
महीना
उत्तर
प्रदेश
के
लोगों
के
लिए
तोहफों
की
बरसात
लेकर
आया
है।
इससे
पहले
कि
चुनाव
आयोग
चुनावों
की
तारिखों
की
घोषणा
करते
हुए
आचार
संहिता
लागू
कर
दे,
मुख्यमंत्री
दोनों
हाथों
से
रोजाना
प्रदेश
की
जनता
के
लिए
कुछ
न
कुछ
सौगात
बांट
रहे
हैं।
उल्लेखनीय
है
कि
20
दिसम्बर
को
महज
4
घंटों
में
50
हज़ार
करोड़
से
अधिक
की
करीब
300
योजनाओं
को
लॉन्च
करने
के
बाद
21
दिसम्बर
को
शिक्षकों
व
राज्यकर्मियों
को
खुश
करने
की
कोशिश
की
गई।
सरकार
ने
राज्यकर्मियों
की
भांति
सहायता
प्राप्त
शैक्षिक
संस्थानों,
स्वायत्तशासी
संस्थाओं
व
निगमों
में
कार्यरत
शिक्षकों
और
कर्मियों
को
अब
पति-पत्नी
दोनों
को
मकान
किराया
भत्ता
देने
का
ऐलान
किया
है।
सौगातों की बारिश
मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यह फैसला लिया गया। जानकारी के मुताबिक अभी तक सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्थाओं, स्वायत्तशासी संस्थाओं और निगमों में यदि पति-पत्नी दोनों कार्यरत हैं, तो सिर्फ एक को ही एचआरए का लाभ मिलता था, जबकि राज्य कर्मचारी में पति-पत्नी दोनों को इसका लाभ दिया जा रहा है। राज्यकर्मियों की तरह सहायता प्राप्त शैक्षिक संस्थाओं, स्वायत्तशासी संस्थाओं और निगमों के कर्मचारी भी पति-पत्नी को एचआरए देने की मांग कर रहे थे। इसके अलावा सरकार ने कमजोर वर्ग के लिए ई-रिक्शा में राहत की सौगात दी। अखिलेश यादव ने ई-रिक्शा पर लगने वाला वैट को साढ़े 12 फीसदी से घटाकर चार फीसदी कर दिया है।
जूनियर इंजीनियरों का भी रखा ख्याल
बाजार में 60,000 रुपये से लेकर 80,000 रुपये के बीच ई-रिक्शा आ रहा है। सरकार के इस कदम से ई-रिक्शा 5 से लेकर 7 हज़ार रुपये तक सस्ता हो जाएगा। सरकार ने जूनियर इंजीनियरों का भी ख्याल रखा है। सरकारी, स्वायत्तशासी और निगमों में कार्यरत अवर अभियंताओं को हर महीने 400 रुपये विशेष भत्ता दिया जाएगा। अखिलेश सरकार ने सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गो की तरह अब भुर्तिया जाति को भी आरक्षण का लाभ देने की घोषणा की है। सरकार ने उत्तर प्रदेश लोकसेवा अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण में अहीर, यादव, यदुवंशी, ग्वाला के साथ भुर्तिया जाति को भी जोड़ने का फैसला किया है।
अलग छवि गढ़ने में जुटे अखिलेश
राजनीति के जानकार बताते हैं कि परिवार में भारी कलह, संगठन में दो फाड़ और प्रत्याशियों में भ्रम के बावजूद यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का आत्मविश्वास इन दिनों छलक रहा है। पार्टी पर पकड़ उनके विरोधी और चाचा शिवपाल सिंह यादव की है इसलिए वे अपनी अलग छवि गढ़ने में जुट गए हैं। उनके आत्मविश्वास का कारण पार्टी का सबसे विश्वसनीय चेहरा होना है। सूत्रों का कहना है कि चुनाव से पहले मुलायम सिंह यादव के कुनबे के गुटों की लड़ाई का एक निर्णायक दौर बाकी है। सबके बावजूद चुनाव अखिलेश के चेहरे पर लड़ा जाना है लेकिन टिकट पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते शिवपाल सिंह यादव बांट रहे हैं।
अखिलेश ने चुना अपना रास्ता
समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव की सारी उर्जा पार्टी को टूटने से बचाने में लग रही है जबकि उन्हें इस वक्त वोटरों से मुखातिब होना चाहिए था। उधर, अखिलेश जानते हैं कि संगठन पर उनका अख्तियार नहीं इसलिए उन्होंने अपना रास्ता चुन लिया है। दिक्कत यह है कि यूपी में चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं होता, अंतिम नतीजा जाति और मजहब की गोलबंदी से तय होता आया है इसलिए अखलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात भी कर रहे हैं। मुलायम के कुनबे में कलह के बावजूद यादव समाजवादी पार्टी को छोड़ने नहीं जा रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा पेंच मुसलमानों के रूख को लेकर फंसा हुआ है जो अस्पष्ट राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा को हराने की क्षमता वाले उम्मीदवार के पक्ष में टैक्टिकल वोटिंग करते हैं।
मायावती ने बढ़ाई मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या
इसे भांप कर बसपा नेता मायावती ने मुसलमान उम्मीदवारों की संख्या बढ़ा दी है और अखिलेश यादव के मामूली बयानों का भी जवाब मुस्तैदी से रिटर्न कर रही हैं ताकि अपने को मुख्य मुकाबले में दिखा सकें। वैसे अखिलेश यादव ने आशंका जाहिर की है कि नोटबंदी की मुश्किलों और कालाधन पकड़ने की विफलता से ध्यान हटाने के लिए भाजपा सांप्रदायिक उन्माद फैला सकती है ताकि हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण हो सके। इसमें कोई शक नहीं है कि यूपी में अखिलेश यादव की लोकप्रियता चरम पर है। लेकिन उनकी राह में रोड़े भी कम नहीं हैं। यदि सपा का कांग्रेस से तालमेल हो जाता है तो उनकी राह कुछ आसान हो सकती है, फिर भी एक नई पार्टी लेकर सियासी बाजार में उतरने चर्चित अभिनेता राजपाल यादव भी थोड़ा-बहुत मुश्किल पैदा कर सकते हैं।
राजपाल यादव भी मैदान में!
कहा जा रहा है कि पूरे सूबे में राजपाल यादव अपनी पार्टी का प्रचार-प्रसार करने की रणनीति बना रहे हैं। जानकारों का कहना है कि जनवरी के पहले हफ्ते से वे यूपी के पूर्वांचल इलाके में अपने प्रचार अभियान की शुरूआत करेंगे। खैर, अब देखना यह है कि यूपी में बसपा, भाजपा और अन्य छोटे-छोटे दलों का मुकाबला अखिलेश यादव कैसे कर पाते हैं। हालांकि उनके में रणनीतिक कौशल की कमी नहीं है। अखिलेश यादव को नजदीक से जानने वाले प्रो. राज यादव कहते हैं- ‘अखिलेश बहुत सुलझे हुए और शार्प माइंड के इंसान हैं। उनमें मानवता कूट-कूट कर भरी हुई है। यही वजह है कि वे पब्लिक से तुरंत कनेक्ट हो जाते हैं।'
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