Gorakhpur ByPoll: योगी के 'कट्टर दुश्मन' को साथ लाकर आखिलेश ने यूं ढहाया 30 साल पुराना किला
लखनऊ। गोरखपुर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने बीजेपी को 21, 881 वोटों से हरा दिया है। गोरखपुर से लगातार 5 बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले सीएम योगी आदित्यनाथ के गढ़ में सपा ने निषाद-मुस्लिम प्लान के सहारे यह जीत हासिल की है। यह वही निषाद समुदाय है, जिसे योगी के किले में उनका कट्टर दुश्मन जाता है। इन्हीं निषाद वोटरों के चलते योगी आदित्यनाथ 1999 में हार का मुंह देखने से बाल-बाल बचे थे। हालांकि, एक बार तो योगी की हार ऐलान हो ही गया था, लेकिन वोटों दोबारा गिनती के चलते योगी आदित्यनाथ बच गए और करीब साढ़े सात हजार वोटों से जीतने में कामयाब रहे थे।
गोरखपुर में 3 से 4 लाख निषाद वोटर
यूं तो गोरक्ष क्षेत्र में आने वाली 62 विधानसभा सीटों में से 46 पर बीजेपी का कब्जा है। गोरखपुर लोकसभा सीट की बात करें तो यहां 5 बार योगी जीते, लेकिन इसी गोरखपुर सीट पर यहां निषाद मतदाताओं की संख्या करीब 3-4 लाख है। निषाद वोटर योगी आदित्यनाथ को कभी पसंद नहीं करते हैं। इसके अलावा गोरखपुर में करीब दो लाख ब्राह्मण वोटर हैं। यही कारण रहा कि सपा ने निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद पर ही दांव लगा दिया। बीजेपी की बात करें तो उसने भी गोरखपुर में उधर, ब्राह्मण उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ल पर दांव लगाया, लेकिन करीब 22000 वोटों से हार गए।
बसपा ने अंतिम समय पर चली चाल
गोरखपुर में बीते पांच लोकसभा चुनाव पर गौर करें तो योगी को घेरने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने समय-समय पर ब्राह्मण और निषाद प्रत्याशी को खड़ा किया था, लेकिन योगी हमेशा जीत दर्ज करने में सफल रहे। दरअसल, बीएसपी उपचुनाव लड़ती नहीं है। इस बार तो उसने सपा के प्रत्याशी को ही समर्थन देने का ऐलान कर दिया। अगर इस उपचुनाव में बसपा का उम्मीदवार खड़ा होता तो शायद सपा के उम्मीदवार को करीब 22000 वोटों से जीत नसीब नहीं होती। बसपा के इन्हीं वोटों का सपा प्रत्याशी के पक्ष में ट्रांसफर होना बीजेपी का दुर्भाग्य बन गया और उसे हार का सामना करना पड़ा।
ब्राह्मण बनाम ठाकुर भी रहा हार का कारण
गोरखपुर में भाजपा की हार के पीछे यहां पर सालों से चली आ रही ब्राह्मण बनाम ठाकुर को भी जिम्मेदार बताया जाता है। गोरखपुर की राजनीति पर नजर रखने वालों की माने तो गोरखनाथ 'मंदिर' कभी भी गोरखपुर से ब्राह्मण उम्मीदवार के पक्ष में नहीं था। ऐसे में योगी के सामने अपनी सीट बचाने से ज्यादा अहम था गोरखपुर में अपने 'मठ' की ताकत को बचाना और वो ताकत उपेंद्र शुक्ल के हारने से ही बच सकती थी।