उत्तर प्रदेश न्यूज़ के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
Oneindia App Download

Navratri 2017: 1767 से कोई नहीं हिला पाया है मां की मूर्ति, मुखर्जी परिवार की आस्था का प्रतीक

'विसर्जन के वक्त जब इस प्रतिमा को उठाने कि कोशिश की तो ये देवी दुर्गा टस से मस नहीं हुईं और रात में सपना दिया कि मैं काशी में ही वास करूंगी।'

By Gaurav Dwivedi
Google Oneindia News

Recommended Video

Navratri 2017: Varanasi में 1767 से कोई नहीं हिला पाया है मां की मूर्ति, Know Why । वनइंडिया हिंदी

वाराणसी। नवरात्र यानि मां दुर्गा की आराधना का पर्व, इस श्रद्धा के दिनों में देशभर में हर तरफ जय माता दी की ही गूंज सुनाई देती है और देश के सभी हिस्से में शारदीय नवरात्र में सप्तमी से लेकर नवमी तक मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर उनकी आराधना की जाती है और विजयादशमी के दिन विसर्जन कर माता को फिर जल्दी आने की प्रार्थना कर देवी दुर्गा की विदाई की जाती है। काशी में एक ऐसा भी स्थान है जहां माता पिछले 250 सालों से विराजमान हैं और उन्होंने काशी वास करने की इच्छा खुद अपने भक्त के सपने में आकर प्रकट की थी।

<strong>Read more: PICs: अहमदनगर में तालाब ने ले लिया रात को विकराल रूप, बाढ़ जैसी स्थिति में बचाए गए लोग</strong>Read more: PICs: अहमदनगर में तालाब ने ले लिया रात को विकराल रूप, बाढ़ जैसी स्थिति में बचाए गए लोग

बंगाल से काशी आया मुखर्जी परिवार और की स्थापना

बंगाल से काशी आया मुखर्जी परिवार और की स्थापना

ये है काशी का पुरानी दुर्गा बाड़ी यानि माता दुर्गा के निवास का स्थान। जिस दुर्गा की प्रतिमा आप देख रहे हैं इसकी बनावट की शैली माता की दूसरी प्रतिमा की तरह ही मिटटी, सुटली और बांस से बनी है पर इसका धार्मिक महत्व बड़ा ही रोचक है। ये मूर्ति सन् 1767 में बंगाल से आए एक मुखर्जी परिवार ने वाराणसी आने के बाद शारदीय नवरात्र में स्थापित की थी। तब से लेकर आज तक देवी दुर्गा और उनके साथ के अन्य देवता आज भी 250 साल के बाद यहीं विराजमान हैं।

कोई नहीं हिला पाया मां दुर्गा की प्रतिमा

कोई नहीं हिला पाया मां दुर्गा की प्रतिमा

इस परिवार के अशोक मुखजी ने OneIndia को बताया कि इस प्रतिमा के पीछे एक धार्मिक घटना है। जब उनके पूर्वज बंगाल से काशी आए तो उन्होंने नवरात्र में माता की पूजा के लिए अपने घर में इस प्रतिमा को स्थापित कर तीन दिनों के बाद विजयादशमी की मान्यता के अनुसार विसर्जन के लिए इस प्रतिमा को उठाने कि कोशिश की तो ये देवी दुर्गा टस से मस नहीं हुईं और रात में सपना दिया कि मैं काशी में ही वास करूंगी। अपनी सेवा के लिए भी उन्होंने सपने में ही बताया कि कुछ ना हो सके तो मुझे चने की दाल और गुड़ का भोग लगाकर मेरी सेवा करना। तब से लेकर आज तक इस मूर्ति में कोई भी परिवतन नहीं किया गया है और आज भी इसे विसर्जन ना कर इनकी सेवा की जाती है।

नवरात्रि में होती है विशेष आरती

नवरात्रि में होती है विशेष आरती

पुरानी दुर्गा बाड़ी के इस 250 साल प्राचीन प्रतिमा को सजाने को लेकर मंदिर परिसर में रंगोली बनाने वाले ऋतुन डे ने हमे बताया कि आज भी इस परिवार के लोग अपने पूर्वजों के परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं। वैसे तो नवरात्रि में मां को कई तरह के भोग और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं पर आरती में चने की दाल और गुड़ भोग लगाया जाता है। साथ ही साथ विशेष आरती के अलावा नवरात्र में मां की प्रतिमा के सामने मां महिषासुर मर्दिनी की कथा भी समाज के लोग मिल कर प्रस्तुत करते हैं।

क्या कहते हैं श्रद्धालु ?

क्या कहते हैं श्रद्धालु ?

इस मंदिर में कई वर्षों से आने वाली विमला ने बताया कि वैसे तो इस घर में विराजमान देवी दुर्गा की आराधना और पूजा करने के लिए पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है पर जब नवरात्र का पर्व आता है तो इस स्थान पर आकर सभी अपना शीश झुकाते हैं और हजारों भक्त यहां इस पावन अवसर पर आते हैं। वहीं कीर्ति की माने तो जरूर माता की इस देवी लीला के पीछे अपने भक्तों को मां का प्यार देने की इच्छा है और वो यही काशी में बैठे भक्तों की सभी मुराद पूरी करती हैं।

<strong>Read more: लव जिहाद: बीजेपी की महिला नेता ने प्रेमी जोड़ों को समझाया, नहीं मानी लड़की तो जड़े थप्पड़</strong>Read more: लव जिहाद: बीजेपी की महिला नेता ने प्रेमी जोड़ों को समझाया, नहीं मानी लड़की तो जड़े थप्पड़

Comments
English summary
Navratra very very Special Story from Varanasi
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X