PICS: नागपंचमी में यहां 100 फीट नीचे जाकर होते हैं भगवान शिव के दर्शन
जिसके कारण इसे नागकुआं के नाम से जाना जाता है। कालांतर में राजा इस कूप को बनवाया था, कहा जाता है कि ये कूप 2074 साल पुराना है।
वाराणसी। धर्मं और अध्यात्म की नगरी काशी में तो वैसे कई रहस्य छुपे हुए हैं। जिसकी खोज आज तक दुनिया के अलग-अलग देशों से आए हुए लोग करते आ रहे हैं पर आज आप को OneIndia काशी के एक ऐसे शिवलिंग के दर्शन कराने जा रहा है जो करीब 100 फीट गहराई में है। इस शिवलिंग के दर्शन नागपंचमी के करीब 1 हफ्ते पहले से होने लगता है।
पुराणों की मान्यता के मुताबिक इस शिवलिंग की स्थापना शेषनाग के अवतार महर्षि पतंजलि ने किया था और उन्होंने ने इस कूप का निर्माण भी खुद अपने ही हाथों से किया था। जिसके कारण इसे नागकुआं के नाम से जाना जाता है। कालांतर में राजा इस कूप को बनवाया था, कहा जाता है कि ये कूप 2074 साल पुराना है।
यहीं महर्षि पतंजलि देते थे शिष्यों को शिक्षा
महर्षि पतंजलि शेषावतार थे। इसलिए वो पर्दे की आड़ से अपने सभी शिष्यों को एक साथ सभी विषय पढ़ाते थे। किसी को भी पर्दा हटाने का आदेश नहीं था। इस कूप में पानी कहां से आता है ये रहस्य है। अंदर कूप की दीवारों से पानी आता रहता है। सफाई के लिए दो-दो पम्पों का सहारा लेना पड़ता है। इसके चारों तरफ सीढ़िया हैं। नीचे कूप के चबूतरे तक पहुंचने के लिए दक्षिण से 40 सीढ़ियां, पश्चिम से 37, उत्तर और पूरब की ओर दीवार से लगी 60-60 सीढ़ियां हैं। इसके आलावा कूप में शिवलिंग तक उतरने लिए 15 सीढ़ियां हैं। कूप में दक्षिण दिशा ऊंची है, जिसमें 40 सीढ़ियां हैं, जो प्रमाणित करती है कि ये कूप पूरी तरह वास्तुविधि से बना है। आचार्य कुंदन पांडेय ने बताया कि नाग पंचमी पर इस कूप पर श्रद्धालुओं की भीड़ आती है। लोग दूध, लावा और तुलसी की माला से पूजा करते हैं, क्योंकि शेषनाग को तुलसी बहुत प्रिय है। यही नहीं इस कूप को लेकर ऐसी भी मान्यता हैं कि नागपंचमी के दिन जो यहां आकर पूजन करता है उसे कुंडली के कालसर्प योग के दोषों से मुक्ति मिलती है।
इस शिवलिंग के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं भक्त
OneIndia से बात करते हुए आचार्य कुंदन पांडेय ने बताया कि ये शेषावतार महर्षि पतंजलि के द्वारा स्थापित इस विशाल शिवलिंग के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त नागपंचमी से हफ्ते पहले से आना शुरू हो जाते हैं, यही नहीं आचार्य ने बताया कि जो भी इस शिवलिंग के दर्शन कर लेता है उसे कालसर्प योग के दोष से मुक्ति मिलती है और उसे अकाल मृत्यु का भय भी खत्म हो जाता है। आचार्य कुंदन ने हमे बताया की राहु और केतु की महादशा से भी राहत लेने के लिए आज भी कई भक्त यहां पूजन करने हैं। यही नहीं जिन घरों में बार-बार सांपों के निकलने का भय बना रहता है तो लोग यहां से जल लेकर जाते हैं और अपने घरों में छिड़कते है।
100 फीट पानी में पूरे साल रहते है भगवान शिव
मंदिर के महंत पंडित तुलसी पांडेय ने बताया, महर्षि पतंजलि ने अपने तप के लिए इस कूप का निर्माण करवाया था। इसकी सतह में उनके द्वारा स्थापित एक विशाल शिवलिंग है, जो जमीन तल से 100 फीट नीचे है। पूजा और दर्शन साल में एक बार नागपंचमी से 7 दिन पहले कूप की सफाई के दौरान कर पाते हैं। इसके बाद साल भर ये शिवलिंग पानी में डूबा रहता है। यहीं पर उन्होंने अपने गुरु पाणिनि के साथ कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिसमें महाभाष्य, चरक संहिता, पतंजलि योग दर्शन प्रमुख हैं।