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मिसाल: लकवाग्रस्त प्रिंसिपल उमा शर्मा की कहानी जो 10 साल से बेड पर लेटे-लेटे चला रही हैं स्कूल

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सहारनपुर। अक्सर जरा सी दिक्कत होने पर हम काफी परेशान हो जाते हैं। इतना ही नहीं परेशानियों से लड़ने के बजाय हम खुद की किस्मत को कोसने लग जाते हैं। लेकिन दुनिया में ऐसे कम ही लोग हैं, जो जीवन की बड़ी से बड़ी अड़चन को हंसते-खेलते पार कर जाते हैं और लोगों के सामने एक मिसाल खड़ी करते हैं। परेशानियों से लड़कर खिलखिला रही ऐसी ही एक महिला हैं उमा शर्मा, जिनके गले से नीचे का पूरा शरीर बेजान हैं लेकिन उन्होंने 10साल से बेजान अपने शरीर से उम्मीदें नहीं छोड़ी। उनकी हालत ऐसी है कि वो अपना बिस्तर छोड़कर कहीं नहीं जा पाती हैं, लेकिन आपको ये जानकार हैरानी होगी कि वो अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी के साथ पिछले दस सालों से निभा रही हैं। उमा शर्मा पिछले 10 सालों से बतौर प्रधानाचार्य अपने स्कूल का न केवल कामकाज देख रही है, बल्कि बच्चों की वर्चुअल क्लास भी ले रही हैं।

नेशनल पब्लिक स्कूल में प्रधानाचार्य हैं उमा शर्मा

नेशनल पब्लिक स्कूल में प्रधानाचार्य हैं उमा शर्मा

सहारनपुर शहर के नुमाईश कैंप इलाके में रहने वाली श्रीमती उमा शर्मा पूरी तरह से अकेली हैं और जिस तरह से जीवन यापन कर रही है, उससे दूसरों को भी प्रेरणा दे रही है। आज 64 साल की उमा शर्मा की दस साल पहले तबीयत खराब हो गई थी। बिस्तर पर ऐसी लेटी कि आज तक नहीं उठ सकी। उन्हें पैरालाइसिस हो गया और शरीर ने पूरी तरह से काम करने से जवाब दे दिया। उमा शर्मा ज्वाला नगर स्थित नेशनल पब्लिक स्कूल में प्रधानाचार्य हैं। उनके घर और स्कूल के बीच करीब पांच किलोमीटर की दूरी है। उन्होंने विगत 27 साल के दौरान अपने परिवार के हर सदस्य को दुनिया से विदा होते देखा है लेकिन दुखों के पहाड़ को उमा शर्मा कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया और अपने ज्ञान से ऐसे बच्चों को सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड टॉपर बना रही है, जिन्हें शैक्षिक रूप से कमजोर होने का अहसास कराया गया।

27 साल पहले निधन हो गया था पति का निधन

27 साल पहले निधन हो गया था पति का निधन

उमा शर्मा के पति अशोक शर्मा का आज से करीब 27 साल पहले निधन हो गया था। पति की मौत का गहरा सदमा उमा शर्मा को लगा, लेकिन उन्होंने खुद को इस सदमे से बाहर निकाला और सहारनपुर शहर से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित गंगोह कस्बे में गरीब बच्चों के लिए चार साल तक स्कूल का संचालन किया। एक पुत्र और तीन पुत्रियों का भरण-पोषण किया। जवान होने पर सभी की शादी की, लेकिन बेटे और एक बेटी की असमय मौत हो गई। यह सदमा भी उन्हें आघात पहुंचाने वाला था, लेकिन उमा शर्मा हिम्मत नहीं हारी और खुद को व्यस्त रखने के लिए उन्होंने शिक्षण कार्य में ही जुटे रहने का मन बनाए रखा। बाद में ऐसे बच्चों की तलाश की, जिनके भीतर ऐसी भावनाएं पैदा हो गई थी कि वें पढ़ लिख नहीं सकते। उन्होंने नेशनल पब्लिक स्कूल ज्वाइन किया और यहां पर बतौर प्रधानाचार्य अपनी सेवाएं देनी शुरू कर दी। यहां पर प्रिंसिपल के पद पर रहते हुए उन्होंने कई साल गुजारे। दस साल पहले वर्ष 2007 में उनकी तबीयत खराब हो गई और उमा शर्मा पैरालाइसिस का शिकार हो गई।

सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं उमा शर्मा

सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं उमा शर्मा

नेशनल पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य सुरेंद्र चैहान बताते हैं कि शरीर के बेजान होने पर भी उमा शर्मा ने हिम्मत नहीं हारी और वह टैब के जरिए ही प्रधानाचार्य की जिम्मेदारी निभाने के साथ साथ शिक्षण कार्य जारी रखा। टैब के जरिए उमा शर्मा ने बिस्तर पर लेटे-लेटे हर क्लास से लेकर स्टाफरूम और प्ले ग्राउंड तक के दृश्य पर नजर रखना शुरू किया और आज भी यही कार्य कर रही हैं। सुरेंद्र चैहान ने बताया कि हमे उनके स्कूल में उपस्थित न होने का कभी अहसास नहीं हुआ, क्योंकि उमा शर्मा की वर्चुअल उपस्थित और सक्रियता किसी सशरीर उपस्थित से कहीं ज्यादा है। उमा शर्मा की कहानी पढ़कर ऐसा लगता है कि उनके सामने हमारी परेशानियां कितनी छोटी हैं फिर भी हम लोग जीवन में आने वाली छोटी-छोटी परेशानियों से घबरा कर अपना मनोबल कम कर लेते हैं। ऐसे में उमा शर्मा की कहानी हमें ऊर्जा से भर देती है।

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English summary
motivational story of uma sharma principal of national public school whose serving her duty although half of her body is paralysed in saharanpur uttar pradesh
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