मिशन शक्ति अभियान: हाथरस से बलरामपुर तक यूपी सरकार के दामन पर लगे दाग छुड़ा पाएगा?
लखनऊ। महिलाओं, बेटियों की सुरक्षा पर केन्द्रित अभियान 'मिशन शक्ति' की शुरुआत शारदीय नवरात्रि के पहले दिन राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने लखनऊ तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बलरामपुर से की. इस बहु-प्रचारित-प्रसारित अभियान का समाज पर क्या असर पड़ेगा, यह आने वाला समय बताएगा, लेकिन इस अभियान ने एक सवाल जरूर छोड़ा है कि आखिर आए दिन ऐसे अभियानों की जरूरत क्यों है? क्या पहले से चल रहे अभियान, योजनाएँ कुंद पड़ गई हैं या यह केवल प्रचार पाने का सस्ता जरिया मात्र है? या फिर हाथरस से लेकर बलरामपुर, बुलंदशहर से लेकर बाराबंकी तक में फेल हुई नौकरशाही अपनी नाकामी छिपाने की कोशिश कर मुख्यमंत्री को खुश करना चाहती है? जवाब जो भी हो, लेकिन जब भी किसी नयी योजना की शुरुआत होगी तो पुरानी योजनाओं पर भी बात होगी, क्योंकि चर्चा जरूरी है. ये तथ्य किसी से छिपे नहीं हैं कि शोहदे सड़क पर, पार्कों में, बसों में, सड़कों पर, बाजारों में, स्कूल-कॉलेज के गेट पर अपनी गन्दी हरकतों से बाज नहीं आते. जिस भी घर में बेटियाँ हैं, उनके पैरेंट्स इसे बखूबी जानते-समझते हैं. क्यों नहीं इन्हें शोहदों को यहीं रोक दिया जाता? आखिर किसने रोक रखा है इनके खिलाफ कार्रवाई से? शायद किसी ने नहीं। केवल इच्छाशक्ति के अभाव में पहले इनका मनोबल बढ़ता है और बाद में बड़ी वारदातें होती हैं और फिर सरकार की बदनामी।
कैसे खुलेगी थानों में महिला हेल्प डेस्क?
राज्य सरकार ने एक और महत्वपूर्ण फैसला लिया है, जिसके तहत राज्य के हर पुलिस स्टेशन और तहसील में महिला हेल्प डेस्क की स्थापना की जानी है. यह योजना भी निश्चिय ही अच्छी है, पर क्रियान्वयन बहुत खराब, क्योंकि राज्य में डेढ़ हजार से अधिक पुलिस स्टेशन हैं। एक महिला हेल्प डेस्क पर तीन महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती होती है तो एक थाने पर तीन शिफ्टों कम से कम नौ महिला पुलिस कर्मियों की जरूरत पड़ेगी। यानि लगभग 13,500 महिला पुलिस बल की अतिरिक्त जरूरत पड़ने वाली है। कहाँ से आएगा, तुरंत यह पुलिस बल? भर्तियाँ इतनी आसान नहीं हैं? हैं तो इसमें कम से कम एक वर्ष का समय लगना है, फिर ट्रेनिंग आदि। इस तरह अगर तुरंत भर्ती करके यह डेस्क शुरू की जानी है तो मौजूदा कार्यकाल में यह सरकार हेल्प डेस्क नहीं शुरू कर पाएगी। अगर शुरू हुई तो इसका हस्र भी अनेक पुरानी योजनाओं की तरह होगा। कोई तर्क दे सकता है कि मौजूदा पुलिस बल से ही यह डेस्क चल जाएगी तो झूठ बोलेगा, क्योंकि अगर चल जानी थी तो सरकार को ऐसे फैसले लेने ही क्यों पड़ें? क्या जरूरत है किसी भी खास अभियान की? क्यों पुलिस थानों में आये दिन पीड़ित महिला का सामना तीखी नजरों से घूरते हुए पुरुष पुलिस वालों से ही होती है। महिला पुलिस बल लगभग हर थाने में मौजूद है, कहीं कम तो कहीं तनिक ज्यादा.
क्यों अपने काम में फेल है पुलिस तंत्र?
पुलिस का मूल काम अपराधों पर काबू करना और कानून-व्यवस्था ठीक रखना है. अगर पुलिस अपना यही काम ठीक से करने लगे तो किसी अभियान की जरूरत नहीं पड़ने वाली लेकिन मातहतों की नाकामी, अफसरों का कमजोर पर्यवेक्षण, पुलिस बल का लूट-खसोट, राजनेताओं-अपराधियों से रिश्ते निभाने में व्यस्त-मस्त होना, आए दिन नयी-नयी योजनाओं को जन्म देने और इनके असमय मृत्यु का प्रमुख कारण है. शासन-प्रशासन में बैठे बड़े अफसर इन्हीं झूठी-कागजी योजनाओं के जरिये मुख्यमंत्री की वाहवाही लूट लेने की कोशिश करते हैं और कई बार कामयाब भी हो जाते हैं.
कुछ उदहारण-हाथरस के बहुचर्चित केस अफसरों की वजह से बिगड़ा. सरकार की हर फ्रंट पर फजीहत हुई. अब जाँच सीबीआई के पास है. बलिया में खुली सभा में एक आदमी गजटेड अफसरों की मौजूदगी में अपने दुश्मन को गोलियों से भून देता है, पकड़ा जाता है फिर फरार होने में कामयाब हो जाता है. कैसे? इस मामले में सरकार ने मौके पर मौजूद सभी अफसरों, पुलिस कर्मियों को सस्पेंड कर दिया. ये बाद में बहाल हो जाएँगे लेकिन व्यवस्था के उस इकबाल का क्या होगा, जो बलिया की धरती पर समाप्त हो गया.
आरोपी आईपीएस की गिरफ्तारी न होने से उठते सवाल
महोबा में एसपी खुद मुंहमांगी रिश्वत न पाने पर धमकियाँ देते हैं और फिर उस व्यापारी की की हत्या हो जाती है. आज तक एक आईपीएस अफसर को यह नाकारा तंत्र गिरफ्तार नहीं कर पाता है. कोई तो मजबूरी होगी, जब अफसर अधिअक्र होने के बावजूद उचित एक्शन नहीं ले पाते? आखिर कौन बांधता है इनके हाथ? सरकार और अफसरों की बल्ले-बल्ले होती अगर रिश्वत मांगने और फिर हत्या में आरोपित एसपी की तुरंत गिरफ्तारी होती| पर, ऐसा न हो सका| सरकार की किरकिरी होती है तो हो, उन्हें परवाह नहीं है. आखिर हो भी क्यों? वे आज भी अफसर हैं, कल भी थे और कल भी रहेंगे. वे जानते हैं कि सरकारें तो आती-जाती रहेंगी.राज्य के अन्य जनपदों में रेप होते हैं. पुलिस पहले उन्हें छिपाने की भरपूर कोशिश करती है, जब नाकामयाब होती है तो अपराध को दर्ज करती है लेकिन धाराओं में हेरफेर करने से नहीं चूकती. आज का सच यही है कि कोई भी सामान्य आदमी पुलिस स्टेशन में बिना हील-हुज्जत एफ़आईआर नहीं दर्ज करवा सकता.
सुर्खियाँ बटोरती योजनाओं का हस्र
जिला स्तरीय, मंडल स्तरीय और राज्य मुख्यालयों पर लगने वाली फरियादियों की भीड़ इस बात को तस्दीक करने के लिए काफी है कि ब्लॉक, तहसील, पुलिस थाने अपना काम नहीं कर रहे हैं. अखिलेश यादव की सरकार में 1090 की शुरुआत हुई| मिशन शक्ति की तरह यह भी बहुप्रचारित योजना थी. जब तक उनकी सरकार थी, तब तक मीडिया सुर्खियाँ बटोरती रही. सरकार गई तो 1090 की पूरी टीम बदहाल सी हो गई. संगठन है लेकिन क्या कर रहा है, कहीं कुछ पता नहीं. योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जैसे ही काम संभाला-एक अभियान शुरू हुआ एंटी रोमियो तब अखिलेश समर्थकों ने कहा कि 1090 के रहते हुए इसकी क्या जरूरत? पर, सरकार और अफसर अडिग रहे, दो-तीन महीने योजना चली. सडकों पर भाई-बहन तक प्रेमी-प्रेमिका घोषित कर पीटे गये. सरकार की जब ज्यादा किरकिरी हुई तो एंटी रोमियो दस्ते किसी और काम में लग गये. अब फिर मिशन शक्ति की शुरुआत हुई है. कहा जा रहा है कि नवरात्रि पर शोहदों पर नजर रखी जाएगी. दशमी से इनका संहार शुरू हो जाएगा.