VIDEO: मिलिए रामनाथ कोविंद के उन दोस्तों से जो हैं उनके स्कूल के साथी...
भाजपा की रणनीति थी कि अगर बिहार में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो कोविंद अपने कौशल का कमाल दिखा सकेंगे।
कानपुर। भाजपा के दलित नेता व बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने से उनके गृह जीले कानपुर में जश्न का माहौल है। रामनाथ कोविंद के तीन दोस्त विजय पाल सिंह, दीप सिंह गौर और गोविंद सिंह बताते हैं कि उनके बीच रामनाथ क्या-क्या शरारत करते थे...गांव के होनहार कोविंद उस समय से ही लोगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं थे।
विजय पाल ने तो रामनाथ के बचपन की न सिर्फ पढ़ाई बल्कि उनके हाजिर जवाबी के भी किस्से याद किए। तीनों पुराने साथी समेत रामनाथ का पूरा गांव अब बस उनके राष्ट्रपति बनने का इंतजार कर रहा है। गांव में जश्न तो ऐसे मन रहा है जैसे पूरे गांव को ही किसी ने देश के सिंहासन पर बैठा दिया हो। ये रामनाथ का सम्मान नहीं तो और क्या है कि पूरा गांव उनकी बारे में उनकी तारीफों के कसीदे पढ़ रहा है। शायद ही कोई गांव में ऐसा शख्स हो जिसे कोविंद कभी भी खराब लगे हों और वो उनकी कोई शरारत जानता हो। गांव में जो कोई जश्न का भागीदार है उसे शायद बहुत पहले से ही इस दिन का इंतजार था। तभी तो पूरा गांव उनकी बचपन की यादों को ऐसे संजोए बैठा है जैसे रामनाथ पर वाकई लोगों को सिर्फ गर्व नहीं प्रगति की उम्मीदे रहीं...
रामनाथ कोविंद के स्कूल वाले दोस्तों से मिलिए
पढ़ाकू कोविंद क्या-क्या करते थे?
दोस्तों ने जब बताया कोविंद का मजाक...
कोविंद के गांव में जश्न की है क्या तैयारी...
पहली अक्टूबर 1945 में कानपुर के परौख गांव में जन्मे कोविंद 1994 से 2006 तक राज्यसभा सदस्य रहे हैं। एक बार वे कानपुर की घाटमपुर लोकसभा सीट के लिए चुनाव भी लड़ चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस करने के कारण वे कभी-कभार ही कानपुर आते थे।
1998 से 2002 तक वे पार्टी के दलित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहे और सजातीय संगठन ऑल इंडिया कोरी समाज के प्रमुख रहे। कानपुर देहात जिले के जातीय राजनीति में लोकदल, दमकिपा और फिर समाजवादी पार्टी का वर्चस्व तोड़ने के लिए भाजपा ने कोरी समाज के वोट बैंक पर निगाह रखते हुए उन्हें कानपुर देहात की घाटमपुर सुरक्षित की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया था। लेकिन पराजय के बाद उन्हें राज्यसभा से संसद भेजा।
दो बार राज्यसभा सदस्य रहने के बाद उन्हें वापस क्षेत्र की राजनीति में लाया गया और उत्तर प्रदेश भाजपा का महामंत्री बनाया गया। खामोश लेकिन मर्यादित राजनीति के लिए पहचाने जाने वाले कोविंद को बिहार चुनाव से ठीक पहले वहां का राज्यपाल बनाया गया। तब भाजपा की रणनीति थी कि अगर बिहार में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो कोविंद अपने कौशल का कमाल दिखा सकेंगे। हालांकि इसकी नौबत नहीं आई लेकिन आडवाणी के नाम की विवादित चर्चा के बीच एक दलित चेहरे के रूप में राष्ट्रपति पद के लिए कोविंद का नाम चयनित करके टीम मोदी ने एक बार फिर राजनीतिक पैंतरा चल दिया है।
यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि कानपुर से किसी राजनेता को दूसरी बार राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया है। इसके पहले 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में वामपंथी दलों ने एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ कैप्टन लक्ष्मी सहगल को अपना उम्मीदवार बनाया था। आजद हिन्द फौज की डॉ. सहगल आजादी के बाद से कानपुर में रहने लगी थीं।
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