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तीन तलाक पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, पति पर होगी कार्रवाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि तीन तलाक के बाद भी पति के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है। तीन तलाक की कानूनी मान्यता से कोर्ट ने इनकार किया।

By Rajeevkumar Singh
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इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन तलाक और फतवे पर बड़ी टिप्पणी को सार्वजनिक किया है जिसमें अपने पुराने आदेश (संविधान से ऊपर नहीं पर्सनल लॉ) को दोहराते हुये कुछ नये दिशा निर्देश भी जारी कर दिये हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पति द्वारा पत्नी को तीन तलाक दिए जाने के बाद दर्ज दहेज उत्पीड़न के मुकदमे को निस्तारित करते हुये तलाक के बाद भी मुकदमा दर्ज कराना सही माना है जबकि इसी मामले फतवे के अस्तित्व को नहीं माना है।

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तीन तलाक को कानूनी मान्यता नहीं

तीन तलाक को कानूनी मान्यता नहीं

अब भविष्य में तीन तलाक के बाद भी शौहर पर कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी। यहां तक फतवे का भी कानूनी मापदंडो पर असर शून्य सरीखा होगा। कानूनी शब्दों में कहा जाये तो ऐसे में तीन तलाक का कोई कानूनी वजूद नहीं होगा क्योंकि अपनी व्यक्तिगत व सामाजिक संरचना के हिसाब से शौहर तीन बार तलाक बोलकर पत्नी को छोड़ सकता है लेकिन जब कानूनी प्रक्रिया की बात आयेगी तो इण्डियन पीनल कोड की धाराओं में वह जकड़ा जा सकेगा।

कोर्ट से क्या कहा गया?

कोर्ट से क्या कहा गया?

दरअसल यह मामला वाराणसी के अकील जमील का है जिन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। उनके वकील की दलील थी कि अकील ने अपनी पत्नी सुमालिया को तलाक दे दिया है। तलाक के बाद अब सुमालिया ने अकील के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करा दिया। ऐसे में जब सुमालिया तलाक के बाद अकील की पत्नी नहीं तो दहेज उत्पीड़न का कोई औचित्य नहीं बनता। अकील की ओर से दलील दी गई कि उसने दारुल इफ्ता जामा मस्जिद आगरा से फतवा भी ले लिया है। इस आधार पर उस पर दहेज उत्पीड़न का केस वैध नहीं है। अकील की ओर से मांग की गई कि उस पर दर्ज मुकदमा व एसीजेएम वाराणसी के समन आदेश को रद्द किया जाये।

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने क्या कहा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट में 19 अप्रैल को ही यह केस निस्तारित हुआ और मंगलवार इसका फैसला सार्वजनिक किया गया। इस मामले की सुनवाई जस्टिस एसपी केसरवानी की एकल पीठ ने की है जिसमें उन्होंने एसीजेएम वाराणसी के समन आदेश को सही करार देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया आपराधिक केस बनता है इसलिये मुकदमा चलेगा। कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता है, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो। यानी कि एकतरफा तौर पर तलाक सही नहीं है क्योंकि मुस्लिम महिलाओं को भी संविधान ने मूल अधिकार दिये हैं। ऐसे में कोई भी पर्सनल लॉ मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकारो का हनन नहीं कर सकता। रही बात फतवे की तो ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो क्योंकि फतवे का कोई वैधानिक आधार नहीं है। फतवे को कानूनी बल प्राप्त नहीं है इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है। यदि इसे कोई लागू करता है तो वह अवैध है।

संविधान से ऊपर नहीं पर्सनल लॉ

संविधान से ऊपर नहीं पर्सनल लॉ

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला अपने पुराने आदेश को ही दोहराते हुये दिया। जिसमे कोर्ट ने कहा था कि कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं हो सकता। अपने विस्तृत आदेश को स्पष्ट करते हुये हाईकोर्ट ने कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकार नहीं छीने जा सकते। मुस्लिम महिलाओं समेत भारत के नागरिकों को अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत मूल अधिकार प्राप्त है। न्याय व्यवस्था इस अधिकार के उल्लंघन की इजाजत किसी को नहीं देती।

पर्सनल लॉ लागू होगा तो संविधान के दायरे में

पर्सनल लॉ लागू होगा तो संविधान के दायरे में

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि यदि कोई भी पर्सनल लॉ लागू किया जाये तो वह संविधान के दायरे में ही होगा। कोर्ट ने महिला अधिकारों के प्रति गंभीरता दिखाते हुये कहा कि जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है, उसे सामाजिक नहीं कहा जा सकता। लिंग के आधार पर मूल व मानवाधिकार को नहीं छीना जा सकता।

11 मई के लिये बहुत कुछ
ऐसे में जब पूरे देश में तीन तलाक का मुद्दा छाया हुआ है उसे हल करने के लिये सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ में तीन तलाक के मामले पर 11 मई से सुनवाई होनी है। लेकिन आज इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस सार्वजनिक हुये फैसले ने दलीलों के लिये एक दिशा भी तय कर दी है।

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English summary
Major decision of Allahabad High Court on Teen Talaq issue.
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