एक शहीद जिसने तिरंगे के लिए सीने पर खाई थी गोली पर नहीं गिरने दिया था तिरंगा
इलाहाबाद। 12 अगस्त 1942 को इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र लाल पद्मधर अंग्रेजों की गोली का सामना करते हुए शहीद हो गए थे। उनकी शहादत की दास्तान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कोने-कोने से लेकर यहां के रहने वाले लोगों के जेहन में हर 12 अगस्त को जीवंत हो उठती है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ भवन परिसर में शहीद लाल पद्मधर की मूर्ति स्थापित है, जो खुद ही उनकी शहादत और आजादी की दास्तान सुनाती हैं।
10 अगस्त 1924 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के यूनियन हाल के पास छात्रों के ग्रुप आपस में बातचीत कर रहे थे। उनकी बातचीत का विषय तत्कालीन भारत छोड़ो आंदोलन था। महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा का असर मुंबई से शुरू होकर दिल्ली, पटना, वाराणसी और अब इलाहाबाद पहुंच चुके थे। अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र इस आंदोलन को इलाहाबाद में फैलाने की रणनीति बना रहे थे। छात्र संघ भवन पर यूनिवर्सिटी के सभी छात्रों की बैठक बुलाई गई। क्योंकि असहयोग आंदोलन में नेहरू परिवार के लोगों को पकड़ लिया गया था। इसलिए छात्रों ने आजादी की आवाज बुलंद करने का निर्णय लिया।
12 अगस्त की सुबह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सामने छात्रों की भीड़ एकत्रित होना शुरू हो गई। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्रों की टोली का नेतृत्व नयन तारा सहगल और छात्रों की टोली का नेतृत्व लाल पद्मधर कर रहे थे। यूनिवर्सिटी के सामने से इंकलाब जिंदाबाद, अंग्रेजों भारत छोड़ो जैसे नारों के साथ जुलूस निकल पड़ा और देशभक्ति की हिलोर मारती युवाओं की टोली इलाहाबाद की कचहरी की ओर बढ़ चली। कचहरी की ओर जाने वाली गलियां एक साथ नारों से गूंजने लगी तो ब्रितानिया सरकार ने तत्काल अलर्ट जारी कर दिया।
बरसायी
गयी
लाठी
इलाहाबाद
के
तत्कालीन
कलेक्टर
डिक्सन
और
पुलिस
SP
आगा
ने
जुलूस
को
बल
प्रयोग
करके
तितर-बितर
करने
का
प्लान
बनाया
और
कचहरी
से
पहले
ही
छात्रों
के
जुलूस
को
अंग्रेजी
पुलिस
टुकड़ी
ने
रोक
दिया।
सभी
को
वापस
लौट
जाने
की
चेतावनी
दी
गई।
चेतावनियों
के
बाद
जब
जुलूस
नहीं
रुका
तो
लाठी
चार्ज
का
आदेश
दिया
गया।
छात्रों
के
जुलूस
पर
लाठी
बरसाई
जाने
लगी।
लेकिन,
उसका
असर
भी
जब
देश
प्रेम
में
मतवाले
युवाओं
पर
नहीं
पड़ा।
तो
प्रदर्शन
को
रोकने
के
लिए
कलेक्टर
डिक्शन
ने
फायर
करने
का
आदेश
दे
दिया।
नहीं
गिरने
दिया
तिरंगा
हवाई
फायर
का
असर
जब
जुलूस
पर
नहीं
हुआ
तो
डिक्शन
गुस्से
से
बौखला
गया।
उसने
छात्राओं
के
जुलूस
की
ओर
इशारा
किया
और
फायरिंग
करने
का
आदेश
दिया।
गोली
से
बचने
के
लिए
छात्राएं
जमीन
पर
लेट
गई
लेकिन
हाथ
में
तिरंगा
लिए
नयनतारा
सहगल
अपनी
जगह
पर
ही
खड़ी
रही।
उनके
हाथ
में
देश
का
राष्ट्रीय
ध्वज
तिरंगा
था
और
उसके
सम्मान
में
वह
जमीन
पर
नहीं
झुकी।
यह
सब
कुछ
लाल
पद्मधर
देख
रहे
थे
और
जब
लगा
कि
अंग्रेज
नयनतारा
पर
गोली
चला
देंगे।
तब
उन्होंने
दौड़कर
तिरंगा
अपने
हाथ
में
ले
लिया
और
अंग्रेजों
के
सामने
पत्थर
की
चट्टान
की
तरह
खड़े
हो
गए।
अकेले
बढ़े
आगे
लाल
पद्मधर
ने
तिरंगा
हाथ
में
थामा
और
कचहरी
की
ओर
कदम
बढ़ा
दिए।
घोड़े
पर
सवार
कलेक्टर
डिक्शन
अब
बिल्कुल
ही
तिलमिला
उठा
और
लाल
पद्मधर
को
तिरंगा
हाथ
में
लेकर
कचहरी
की
ओर
आगे
कदम
बढ़ता
देख
उसने
फिर
से
आदेश
दिया।
"शूट
हिम
अलोन"
यानी
इसे
अकेले
मार
दो।
कलेक्टर
के
इस
आदेश
के
बाद
लाल
पद्मधर
फिर
से
नारे
लगाने
लगे
और
इंकलाब
जिंदाबाद,
भारत
मां
को
आजाद
करो
के
नारे
उनकी
सिंह
गर्जना
से
गूंज
उठे।
तब
तक
एसपी
आगा
ने
अपनी
पिस्तौल
निकाली
और
लाल
पद्मधर
की
छाती
पर
दो
गोलियां
दाग
दी।
इस
तरह
देश
का
एक
और
वीर
सपूत
अमर
हो
गया।