सालों बाद चौधरी चरण सिंह सपने में आए और कैराना में कर गए बीजेपी का बंटाधार?
नई दिल्ली। कैराना की बेटी बीजेपी उम्मीदवार मृगांका सिंह को आखिरकार कैराना की बहू आरएलडी प्रत्याशी तबस्सुम हसन के हाथों हार का सामना करना पड़ा। हुकुम सिंह की मौत के बाद पश्चिमी यूपी का कैराना लोकसभा उपचुनाव बीजेपी के लिए नाक का सवाल बन गया था, लेकिन यूपी में योगी आदित्यनाथ एक और बार फेल साबित हुए। कैराना में राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) महागठबंधन के लिए ट्रंप कार्ड साबित हुई। कैराना के नतीजे बताते हैं कि पश्चिमी यूपी में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद हिंदुत्व के रथ पर सवार बीजेपी को हिंदू जाट, मुस्लिम जाट के ब्रह्मास्त्र से रोका जा सकता है। चौधरी चरण सिंह की विरासत गंवा चुके बेटे अजित सिंह और पोते जयंत चौधरी के लिए कई मायनों में कैराना लोकसभा की जीत बहुत बड़ी है। अजित सिंह के पिता, देश के पूर्व प्रधानमंत्री और जाटों के मसीहा चौधरी चरण सिंह ने अपने आकर्षक व्यक्तित्व और समर्पण भाव से जिंदगी भर पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम वोटरों के दिल पर राज किया।
दादा चौधरी चरण सिंह की विरासत पोते ने जयंत ने संभाली
मुजफ्फरनगर दंगों में हुए जाट-मुस्लिम संघर्ष के बाद चौधरी चरण सिंह की धरती पर कभी एक साथ रहने वाले जाट और मुस्लिम समुदाय ने अलग-अलग रास्ते अख्तियार कर लिए। हिंदू जाटों ने बीजेपी का दामन थामा तो मुस्लिम वोट सपा के पास चला गया। दलित कमाबेश मायावती के साथ ही रहे। इस समीकरण के चलते 2014 और 2017 में अजित सिंह को खासा नुकसान उठाना पड़ा, जिनका पारंपरिक वोट ही जाट-मुस्लिम था। लेकिन कैराना लोकसभा उपचुनाव 2018 में बाजी पलटी। यहां अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी ने काफी मेहनत की। खुद चौधरी अजित सिंह भी काफी सक्रिय दिखे। कैराना लोकसभा में आने वाले जाट बहुल गांवों में अजित एक-एक शख्स को विश्वास में लेने के लिए खुद गली-गली घूमे। जाट-मुस्लिमों को उन्हें एकता के सूत्र में पिरोने के लिए भरसक प्रयास किया।
अजित सिंह और जयंत ने कार्यकर्ताओं को दिया ये फार्मूला
अजित और जयंत चौधरी ने पार्टी कार्यकर्ताओं एक फार्मूला दिया, जिसे उन्होंने कैराना के घर-घर तक पहुंचाया। वोटर को बताया गया कि जब तक हिंदू और मूले जाटों ने (मुस्लिम जाट) साथ वोट किया, बिरादरी की ताकत दिल्ली तक दिखी। आरएलडी ने लोगों से कहा कि दंगों के बाद जाटों ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी का साथ दिया, लेकिन बदले में बीजेपी ने उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया।
अखिलेश की वजह से मुस्लिमों में मिली स्वीकार्यता
अजित सिंह के पिता चौधरी चरण सिंह के जाने के बाद मुस्लिमों का रुख काफी हद सपा के साथ हो गया। लेकिन कैराना में अखिलेश के साथ आने से मुस्लिमों ने आरएलडी को महागठबंधन के साथ स्वीकार कर लिया। यही वो फैक्टर रहा, जिसकी वजह से बीजेपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के नाम पर जाटों को अपने साथ लाने में नाकाम रहे। परिणाम यह हुआ कि हुकुम सिंह के जाने के बाद उनकी बेटी मृगांका सिंह पिता की विरासत खो बैठीं और बीजेपी के हाथ से एक और लोकसभा सीट चली गई।
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चौधरी चरण सिंह सपने में भी आ जाएं लोग उनकी पार्टी को सुबह उठकर वोट दे आते हैं
पश्चिमी यूपी के हिंदू और मुस्लिम जाट वोटरों के दिल में चौधरी चरण सिंह के लिए आज भी इतना सम्मान है कि अगर वह सपने में भी आ जाएं तो चुनाव का नतीजा पलट देते हैं। पश्चिमी यूपी में कई बुजुर्ग अक्सर ऐसा कहते सुने जाते हैं कि रात सपने में बड़े चौधरी आए थे, इसलिए उन्होंने आरएलडी को वोट दे दिया। इतना बड़ा कद है चौधरी चरण सिंह का। एक ऐसे किसान नेता, जिनको याद कर आज भी पश्चिमी यूपी के लोग भावुक हो जाते हैं। ऐसी विरासत होने के बाद अजित सिंह अपने पारंपरिक वोट बैंक को खो बैठे थे। पहले 2014 लोकसभा चुनाव, उसके बाद 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में हिंदू कार्ड के आगे चौधरी चरण सिंह का पारंपरिक वोट उनके बेटे अजित सिंह का साथ छोड़ गया। 2014 लोकसभा चुनाव में तो अजित सिंह खुद की सीट तक नहीं बचा पाए थे। खैर, देर से ही सही, लेकिन कैराना लोकसभा चुनाव ने आरएलडी समेत पूरे विपक्ष को एक नई धार दे दी है।
महेंद्र सिंह टिकैत छीन ले गए थे अजित सिंह से चौधरी चरण सिंह की विरासत
आरएलडी सुप्रीमो और चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह का जन्म 1939 में हुआ था। उनसे सिर्फ चार साल पहले एक बच्चा जन्मा था, जो महेंद्र सिंह टिकैत नाम से पश्चिमी यूपी की पहचान बन गया। टिकैत का जब जन्म हुआ था, तब चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति के सबसे बड़े जाट नेता के तौर पर ध्रुव तारे की तरह चमक रहे थे। 5 दशक तक जाट पॉलिटिक्स की धुरी बने रहे चौधरी चरण सिंह के जाट-मुस्लिम वोट बैंक को भले ही उनके बेटे अजित सिंह कायम न रख पाए हों, लेकिन महेंद्र सिंह टिकैत ने इसी के सहारे एकछत्र राज किया। वह ऐसे किसान नेता बनकर उभरे जिसे जाट और मुस्लिम दोनों का प्यार मिला। एक घटना 1989 की है, मुजफ्फरनगर के मुस्लिम किसान की बेटी नईमा का अपहरण के बाद रेप किया गया और उसके बाद हत्या कर दी गई। इसके खिलाफ एक किसान नेता खड़ा हुआ- महेंद्र सिंह टिकैत। वह नईमा का शव लेकर सड़क पर बैठ गए थे। आंदोलन की आग भड़की, जिसमें हिंदू जाट और मुस्लिम जाट दोनों ने टिकैत का साथ दिया और चौधरी चरण के टिकैत ने वो कद हासिल कर दिया, जो अजित सिंह नहीं कर पाए। लेकिन महागठबंधन में अखिलेश-मायावती के साथ आने के बाद अब चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी के सामने संभावनाओं के नए द्वार खुले हैं। देखना रोचक होगा कि अजित सिंह औरर जयंत आगे की राह कैसे तय करते हैं। क्या वे पश्चिमी यूपी में वापस वैसी धाक जमा पाएंगे, जैसी बड़े चौधरी के जमाने में थी। इस सवाल के जवाब के लिए हमें अगले लोकसभा चुनाव का इंतजार करना होगा, जो बताएगा- पश्चिमी यूपी में हिंदुत्व कार्ड में कितनी सांसें बची हैं या जाट-मुस्लिम समीकरण ही अंतिम सत्य है।