कैराना में जयंत चौधरी का वो आखिरी दांव, जिसने भाजपा से छीन ली जीत
कैराना की जीत को 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए एक कठिन चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है और इस चुनौती का खड़ा करने में आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने बड़ी भूमिका निभाई।
नई दिल्ली। यूपी की बहुचर्चित लोकसभा सीट कैराना पर विपक्ष ने भाजपा को पटखनी देते हुए बड़ी जीत हासिल की है। कैराना में आरएलडी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी सपा नेत्री तबस्सुम हसन ने भाजपा प्रत्याशी मृगांका सिंह को हरा दिया है। तबस्सुम हसन को जहां कांग्रेस का समर्थन हासिल था, वहीं बसपा ने भी इस सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। कैराना की जीत को 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए एक कठिन चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है और इस चुनौती का खड़ा करने में आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने बड़ी भूमिका निभाई। जयंत ने आखिरी वक्त पर एक ऐसा दांव चला, जिसने भाजपा को जीत से काफी दूर कर दिया।
आखिर क्या था जयंत का वो दांव?
दरअसल, कैराना सीट पर आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन के देवर कुंवर हसन ने भी एक अन्य पार्टी लोकदल से नामांकन किया था। कुंवर हसन 2014 में बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में कुंवर हसन ने 1 लाख 60 हजार वोट हासिल किए थे, जिसका सीधा फायदा भाजपा उम्मीदवार हुकुम सिंह को मिला था। कुंवर हसन के भाई और चेयरमैन अनवर हसन की भी कैराना इलाके में मजबूत पकड़ मानी जाती है। इस बार भी कुंवर हसन के मैदान में उतरने से माना जा रहा था कि वो बड़ी संख्या में मुस्लिम वोट हासिल करेंगे, जिसका फायदा भाजपा उम्मीदवार मृगांका सिंह को मिल सकता है।
और लगभग नामुमकिन हो गई भाजपा की जीत!
ऐसे में आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने अपना आखिरी दांव चला। जयंत चौधरी ने चुनाव के आखिरी दिनों में खुद जाकर कुंवर हसन से मुलाकात कर उन्हें समर्थन देने के लिए राजी किया और आखिरकार कुंवर हसन ने अपनी भाभी तबस्सुम हसन को अपना समर्थन दे दिया। आरएलडी के प्रदेश प्रवक्ता चौधरी अजयवीर सिंह ने बताया कि बातचीत के बाद कुंवर हसन ने राष्ट्रीय लोकदल में शामिल होते हुए चुनाव से हटने का ऐलान किया है। रालोद-सपा-बसपा और कांग्रेस के महागठबंधन के बाद कैराना सीट पर ये सबसे बड़ा सियासी उलटफेर था, जिसने भाजपा की जीत को लगभग नामुमकिन कर दिया।
कैसे हुई कैराना में जीत की तैयारी
आपको बता दें कि कैराना सीट पर पहले खुद आरएलडी नेता जयंत चौधरी महागठबंधन के अंतर्गत चुनाव लड़ना चाहते थे। इसके लिए जयंत चौधरी ने बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी मुलाकात की, लेकिन बात नहीं बन पाई। पहले तय हुआ कि कैराना में सपा उम्मीदवार और नूरपुर में आरएलडी का उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा, लेकिन बाद में चौधरी अजीत सिंह ने अखिलेश यादव से बात कर उन्हें कैराना की सीट आरएलडी को देने के लिए राजी किया। इसके बाद सपा नेत्री तबस्सुम हसन को आरएलडी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा गया।
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