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कैराना के वो 5 चक्रव्यूह, जिन्हें नहीं भेद पाई मोदी और शाह की जोड़ी

कैराना में ऐसे पांच चक्रव्यूह थे, जिनका तोड़ ना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास था और ना ही भाजपा के 'चाणक्य' अमित शाह के पास।

By Dharmender Kumar
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Kairana By Poll Results : Akhilesh Yadav के इस चक्रव्यूह में फंसकर BJP को मिली करारी हार

नई दिल्ली। यूपी की कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा पर हुए उपचुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त मिली है। 2019 में केंद्र की सियासत में वापसी का सपना संजोए भाजपा के लिए गोरखपुर-फूलपर से शुरू हुआ 'विपक्षी झटके' का दौर कर्नाटक से होता हुआ दोबारा यूपी आ पहुंचा है। हर हाल में कैराना की सीट बचाने की कोशिश में जुटी भाजपा ने यहां मंत्रियों से लेकर विधायकों और सांसदों तक की फौज चुनाव प्रचार के लिए उतारी थी, लेकिन जीत नहीं मिली। दरअसल कैराना में ऐसे पांच चक्रव्यूह थे, जिनका तोड़ ना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास था और ना ही भाजपा के 'चाणक्य' अमित शाह के पास।

1:- अखिलेश का मास्टर स्ट्रोक- 'जाट मुस्लिम समीकरण'

1:- अखिलेश का मास्टर स्ट्रोक- 'जाट मुस्लिम समीकरण'

सियासत के गहरे जानकार यह बखूबी जानते हैं कि पश्चिम यूपी में जीत का एक अचूक मंत्र रहा है, जाट-मुस्लिम समीकरण। इस समीकरण को साधकर ही आरएलडी अभी तक वेस्ट यूपी में जीत का परचम लहराते रही है। अखिलेश यादव ने पश्चिम यूपी की इस सीट के लिए विशेष योजना बनाई और अपनी पार्टी की पूर्व सांसद तबस्सुम हसन को आरएलडी के टिकट पर उतारा। कैराना सीट पर 17 लाख वोटर हैं, जिनमें करीब 5.5 लाख मुसलमान और 1.7 लाख जाट वोट हैं। अखिलेश की इस प्लानिंग को अंजाम तक पहुंचाया आरएलडी के नेता जयंत चौधरी ने, जो लगातार जाट बाहुल्य इलाकों में कैंपेन करते रहे। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसी समीकरण की थी।

2:- आरएलडी ने पकड़ी गन्ना किसानों की नब्ज

2:- आरएलडी ने पकड़ी गन्ना किसानों की नब्ज

लंबे समय से पश्चिम यूपी के किसानों की एक बड़ी समस्या रही है, गन्ने की कीमतों का भुगतान। कैराना जिले में 6 बड़ी सुगर मिल हैं, जिनमें से 4 निजी और दो कॉ-ऑपरेटिव हैं। साल 2017-18 में 18 मई तक सुगर मिल मालिकों ने कुल 1778.49 करोड़ रुपए के गन्ने की खरीद की। यूपी सरकार के स्टेट एडवाइज्ड प्राइस 315-325 रुपए प्रति कुंटल की दर से खरीदे गए गन्ने के लिए किसानों को कुल 1695.25 करोड़ रुपए का भुगतान होना था, लेकिन भुगतान हुआ केवल 888.03 रुपए का। किसानों की इस नब्ज को पकड़ते हुए आरएलडी ने जोर-शोर से इस मुद्दे को उठाया और 'उठ गया गन्ना, दब गया जिन्ना' का नारा दिया। राष्ट्रीय लोकदल के प्रवक्ता अजयवीर चौधरी बताते हैं, 'गन्ने का भुगतान ना होने से नाराज किसानों का कहना था कि भाजपा के घोषणा पत्र में यह कहा गया था कि हम 14 दिन के भीतर गन्ने की कीमत का भुगतान कराएंगे। एएमयू में जिन्ना की फोटो है या नहीं, इससे हमें क्या लेना, हमारा एक ही मुद्दा है कि गन्ने का भुगतान हो।'

3:- भारी पड़ी दलितों की नाराजगी

3:- भारी पड़ी दलितों की नाराजगी

नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री की कुर्सी और योगी आदित्यनाथ को 2017 के यूपी चुनाव में सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में दलित वोटों का एक बड़ा योगदान रहा, लेकिन कैराना उपचुनाव तक हालात बदल चुके थे। कैराना सीट पर दलितों के करीब 2 लाख वोटर हैं, जिनमें से 1.5 लाख जाटव हैं। सियासी जानकारों की मानें, तो दलितों के खिलाफ सहारनपुर और गुजरात में हिंसा की खबरों से लेकर एससी-एसटी एक्ट में संसोधन के मुद्दे ने मोदी सरकार के खिलाफ दलितों में एक असंतोष को जन्म दिया। हाल ही में सहारनपुर में भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष के भाई की हत्या ने इस असंतोष को और भड़का दिया। दलितों में भाजपा के प्रति बढ़ते असंतोष से खुद पीएम मोदी और अमित शाह भी परेशान थे।

4:- रालोद के पुराने गढ़ की चुनौती

4:- रालोद के पुराने गढ़ की चुनौती

अगर आप 2014 से पहले के चुनाव देखें, तो बागपत के बाद राष्ट्रीय लोकदल का सबसे मजबूत गढ़ अगर कोई है तो वो कैराना है। 2014 के चुनाव में मोदी लहर के बल पर इस सीट पर भाजपा के बाबू हुकुम सिंह ने जीत दर्ज की और इससे पहले 2009 में बसपा के टिकट पर तबस्सुम हसन कैराना की सांसद बनी। लेकिन...इन दो चुनावों से पहले कैराना पर लगातार दस साल आरएलडी का ही कब्जा रहा। 2004 के लोकसभा चुनाव में हैडपंप के निशान पर अनुराधा चौधरी कैराना सीट से सांसद बनीं। उससे पहले 1999 के चुनाव में आरएलडी के ही अमीर आलम यहां से सांसद बने। कैराना सीट इसलिए भी लोकदल के लिए खास थी क्योंकि यहां से चौधरी चरण की पत्नी गायत्री देवी सांसद रह चुकी हैं। इस बार भी अजीत चौधरी के बेटे जयंत चौधरी इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन जब बात नहीं बन पाई तो सपा नेत्री तबस्सुम हसन को आरएलडी की सदस्यता दिलाकर उम्मीदवार बनाया गया।

5:- मुस्लिम वोटों ने एकतरफा कर दिया मुकाबला

5:- मुस्लिम वोटों ने एकतरफा कर दिया मुकाबला

करीब 5.5 लाख की मुस्लिम आबादी वाली कैराना सीट पश्चिम यूपी की मुस्लिम बाहुल्य सीटों में गिनी जाती है। महागठबंधन की ओर से मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने के बाद भाजपा के लिए इस सीट पर चुनौती बेहद कठिन हो गई थी। अमूमन यह माना जाता रहा है कि किसी भी चुनाव में मुस्लिम समुदाय हमेशा अंतिम वक्त पर फैसला करता है और भाजपा को हराने में सक्षम उम्मीदवार को वोट देता है। इस गफलत में अक्सर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो जाता था। इस बार कांग्रेस, सपा, बसपा और आरएलडी ने मिलकर एक ही प्रत्याशी उतारा, जिससे मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं हो सका। कैराना की विधानसभा सीट भी इस समय सपा के कब्जे में है, जहां से नाहिद हसन विधायक हैं। तबस्सुम हसन के बेटे नाहिद ने 2014 में कैराना विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव और 2017 के यूपी चुनाव में यहां से जीत हासिल की थी।

ये भी पढ़ें- कैराना में जयंत चौधरी का वो आखिरी दांव, जिसने भाजपा से छीन ली जीतये भी पढ़ें- कैराना में जयंत चौधरी का वो आखिरी दांव, जिसने भाजपा से छीन ली जीत

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English summary
Kairana Bypoll Results 2018: Five Reasons of BJP Defeat.
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