कैराना से तबस्सुम हसन ने जीतकर यूपी के लिए बना दिया एक और अनोखा रिकॉर्ड
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कैराना। उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकदल की उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने बीजेपी प्रत्याशी मृगांका सिंह को 50,000 से ज्यादा वोटों से हरा दिया है। बसपा, सपा, कांग्रेस का समर्थन लेकर कैराना उपचुनाव में उतरीं तबस्सुम हसन अब उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाली इकलौती मुस्लिम सांसद बन गई हैं। 2014 लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में बीजेपी प्लस के पास 73 सीटें थीं। वहीं, सपा 5 सीटें जीतने में सफल रही थी और दो सीट- अमेठी व रायबरेली पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने जीत दर्ज की थी। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं उतारा था और अन्य दलों ने जिन मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, उन्हें जीत नसीब नहीं हो पाई थी। यूपी में करीब 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी होने के बाद भी इस राज्य से एक भी मुसलमान संसद नहीं पहुंच पाया था।
- 2014 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 13 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन इनमें से एक भी जीत दर्ज नहीं कर पाया।
- राजनीतिक विश्लेषकों को सबसे ज्यादा हैरानी तब जब 49 प्रतिशत मुसलमानों की आबादी वाले रामपुर में भी सपा उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था। 2014 में सपा को रामपुर की हार बहुत सालती रही है। इसकी एक वजह यह भी है सपा के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे के तौर पहचान रखने वाले
- आजम खान इसी क्षेत्र से आते हैं।
- मायावती ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर 2014 लोकसभा चुनाव में 19 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन एक भी जीत नहीं सका।
- 2014 में बसपा, सपा और कांग्रेस में मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की होड़ थी, इसी वजह से कांग्रेस ने भी एक-दो नहीं पूरे 11 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, लेकिन उसका भी कोई मुस्लिम उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर सका था।
कौन हैं तबस्सुम हसन
कैराना लोकसभा सीट पर आरएलडी के टिकट से लड़ीं तबस्सुम हसन 2009 में भी सांसद रह चुकी हैं। वह महागठबंधन के समर्थन से जीतकर यूपी की इकलौती मुस्लिम सांसद बन गई हैं। तबस्सुम हसन और मृगांका सिंह के परिवार लंबे समय से राजनीतिक प्रतिद्वंदी हैं और खास बात ये हैं कि तबस्सुम ने दो बार इस लोकसभा का चुनाव लड़ा है और दोनों बार जीती हैं।
तबस्सुम के ससुर अख्तर हसन 1984 में कैराना से सांसद रहे तो उनके पति मुनव्वर हसन 1990 से 2003 तक चारों सदनों के सदस्य रह चुके थे। इसके बावजूद तबस्सुम की जिंदगी घर तक ही ज्यादा रही। तबस्सुम पहली बार 2007 में राजनीति में आईं, जब लोकदल के टिकट पर वो सरधना से चुनाव लड़ीं। हालांकि, चुनाव में कागजों पर ही उनका नाम था, चुनाव उनके पति मुनव्वर ही लड़ रहे थे। ये वो चुनाव हार गईं। 2007 के विधानसभा के बाद मुनव्वर बसपा में आ गए और एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई। 2009 में बसपा ने तबस्सुम को कैंडिडेट बनाया और वो जीतीं।