मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट नेता छोड़ रहे सपा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में हुई हिंसा के बाद मुसलमानों और जाटों के बीच पैदा हुई गहरी खाई को भरना सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। इस बीच सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के खास माने जाने वाले क्षेत्र के जाट नेता भी इस मुश्किल घड़ी में उनका दामन छोड़ रहे हैं।
जानकारों के मुताबिक, बदली हुई परिस्थतियों में जाट नेता अब अपने आपको राजनीतिक रूप से सपा के साथ रहने में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं और शायद इसी वजह से वे नए ठौर की तलाश में हैं। कुछ दिनों पहले ही बागपत सीट से सपा के प्रत्याशी सोमपाल शास्त्री ने लोकसभा का टिकट वापस कर दिया था। उसके तुरंत बाद पूर्व विधायक रतनलाल पंवार ने भी सपा से किनारा कर लिया।
इन दो बड़े नामों के बाद बागपत जिले की छपरौली विधानसभा से विधायक रहे महक सिंह एवं अजय सिंह ने भी मुजफ्फरनगर हिंसा मामले में शासन-प्रशासन पर एक पक्षीय कार्रवाई करने का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। पश्चिमी उप्र में अब लोगों की नजरें अनुराधा चौधरी एवं मुकेश चौधरी पर टिकी हुई हैं।
ज्ञात हो कि अनुराधा चौधरी और मुकेश चौधरी को वर्तमान में सपा सरकार ने राज्यमंत्री का दर्जा दे रखा है।
मुजफ्फरनगर के कवाल में तीन युवाओं की हत्या के बाद प्रशासनिक चूक से ऐसा माहौल बना कि पश्चिमी उप्र का पूरा राजनीतिक परिदृश्य ही बदल गया। हिंसा के दौरान प्रशासन पर लगातार एक पक्षीय कार्रवाई के आरोप भी लगे। हिंसा के बाद न केवल इलाके के सामाजिक ताने-बाने को खतरा पैदा हुआ, बल्कि राजनीतिक समीकरण भी पूरी तरह से बदल गए।
सामाजिक चिंतक डा. अशोक कुमार की मानें तो सपा से जाट नेताओं के इस्तीफे मुजफ्फरनगर और शामली में हुई हिंसा की वजह से ही हुए हैं। नेताओं की तरफ से यह तात्कालिक प्रतिक्रिया है। यूं कहें कि जाट नेतृत्व को अब सपा में भविष्य नजर नहीं आ रहा है। सूत्रों की मानें तो सपा का दामन छोड़ चुके कई नेता अब सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़ना चाहते हैं। हिंसा के बाद जाट नेताओं को भाजपा के साथ रहने में ज्यादा फायदा दिख रहा है।
हिंसक वारदातों की वजह से पश्चिमी उप्र में जाटों और मुसलमानों के बीच विभाजन पैदा हो गया है। जाट नेताओं को लगता है कि अब सपा में रहकर भी मुसलमानों के वोट मिलने से रहे। पहले जाट नेताओं को अपना वोट तो मिलता ही था, सपा की वजह से थोड़ा बहुत मुस्लिम वोट भी मिल जाता था लेकिन हिंसा के बाद यह स्थिति न के बराबर रह गई है।
बागपत से जुड़े स्थानीय पत्रकार हरी गौतम कहते हैं, "हिंसा ने जाट और मुसलमानों के बीच गहरी खाई पैदा की है। इसे भरने में अब काफी समय लगेगा। चूंकि लोकसभा चुनाव काफी नजदीक है इसलिए सभी नेताओं को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है और नेताओं के इस्तीफे भी इसी का नतीजा हैं।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।