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आजादी विशेष: काकोरी की वो घटना जो अंग्रेजी हुकूमत के मुंह पर करारा तमाचा थी

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लखनऊ। काकोरी कांड, वो घटना जिसने लोगों की नजर में क्रांतिकारियों को हीरो बन दिया। काकोरी ट्रेन डकैती के पहले अंग्रेजी हुकूमत जनता के सामने क्रांतिकारियों को लुटेरा और डकैत बनाकर पेश करती थी। पर ट्रेन डकैती के बाद से लोगों का नजरिया क्रांति और क्रांतिकारियों के प्रति पूरी तरह बदल गया। क्रांतिकारी अब देश के हीरो हो गए और इस घटना ने देश में और क्रांतिकारियों को बढ़ाने में योगदान दिया था।

कैसे दिया गया था काकोरी की घटना को अंजाम

कैसे दिया गया था काकोरी की घटना को अंजाम

9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी में सरकारी खजाने को लूटने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल के घर पर एक गुप्त मीटिंग हुई जिसमें सरकारी खजाने को लूटने के लिए रणनीति बनाई गई। योजना के मुताबिक राजेन्द्र लाहिड़ी ने काकोरी स्टेशन से छूटी आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन की चेन खींच कर रोक लिया। राम प्रसाद बिस्मिल की अगुवाई में अशफाक उल्ला खां, पंण्डित चंद्रशेखर आजाद और अन्य 6 साथियों ने मिलकर ट्रेन पर धावा बोल दिया और सरकारी खजाने को लूट लिया। लेकिन गलती से चली गोली ने अहमद अली नाम के युवक की जान ले ली। दरअसल, उस समय अशफाक उल्लाह खां के पास एक जर्मन माउजर पिस्टल थी। घटना के वक़्त जब तिजोरी का बक्सा खोला जा रहा था तब अशफ़ाक़ उल्लाह खां ने अपनी माउजर मन्मथ नाथ गुप्ता को दे दी थी। पर मन्मथ नाथ गुप्ता से गलती से ट्रिगर दब गया जिसकी गोली से अहमद अली की जान चली गई थी। इससे पहले भी 7 मार्च और 24 मई 1925 को दो और डकैतियां डाली गईं लेकिन उन डकैतियों में कुछ खास धन क्रांतिकारियों को नहीं मिला था। काकोरी में लूट की इस वारदात के समय क्रांतिकारियों से एक गलती हुए जिसका खामियाजा उन्हें या तो जेल में रहकर या फिर फांसी चढ़कर चुकानी पड़ी।

ब्रिटिश सरकार हुई थी सख्त

ब्रिटिश सरकार हुई थी सख्त

ब्रिटिश सरकार ने इस डकैती को लेकर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया और जांच के लिए स्कॉटलैंड की तेज तर्रार पुलिस को इसका जिम्मा सौंप दिया। पुलिस ने डकैती में शामिल लोगों की गिरफ्तारी के लिए इनाम घोषित कर दिया और जगह-जगह पर इश्तिहार लगा दिए गए। लेकिन पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली। लेकिन कहते हैं कि घटना के समय कुछ न कुछ सुराग जरुर छूट जाते हैं। बस यही उन क्रांतिकारियों के साथ भी हुआ और घटनास्थल से एक चादर पुलिस के हाथ लग गई जिसपर कपड़े धोने वाले एक धोबी के निशान लगे मिले। इसी से पुलिस ने कड़ी जोड़ना शुरु किया और ये कड़ी जुड़ती हुई शाहजहांपुर तक पहुंच गई। अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस ने शाहजहांपुर पहुंच कर धोबियों से इसके बारे में पड़ताल करनी शुरु कर दी। जिसमें खुलासा हुआ कि ये चादर बनारसीलाल नाम की युवक की है। बनारसीलाल पंण्डित राम प्रसाद बिस्मिल का सहयोगी था। पुलिस ने तुरंत बनारसीलाल को हिरासत में ले लिया और पूछताछ शुरु कर दी। पूछताछ के दौरान बनारसीलाल ने पूरी कहानी अंग्रेजी पुलिस को बता दिया। पुलिस ने पूछताछ में ये भी पता कर लिया कि 9 अगस्त को शाहजहांपुर से राम प्रसाद बिस्मिल की पार्टी से कौन-कौन लोग शहर से बाहर गए हुए थे और कब वापस लौटे? अब पुलिस के लिए इतना सुबूत मिलना क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के लिए काफी था। पुलिस ने 26 सितंबर को देश के कोने-कोने से 40 लोगों को गिरफ्तार कर लिया।

5 साल की कैद से लेकर हुई फांसी तक की सजा

5 साल की कैद से लेकर हुई फांसी तक की सजा

काकोरी-काण्ड में शामिल 10 लोगों में से पांच जिनमें चन्द्रशेखर आजाद, मुरारी शर्मा, केशव चक्रवर्ती, अशफाक उल्ला खां व शचीन्द्र नाथ बख्शी को छोड़कर, जो उस समय तक पुलिस के हाथ नहीं आये, शेष सभी व्यक्तियों पर सरकार बनाम राम प्रसाद बिस्मिल व अन्य के नाम से ऐतिहासिक मुकदमा चला और उन्हें 5 वर्ष की कैद से लेकर फाँसी तक की सजा हुई। जिन-जिन क्रान्तिकारियों को एचआरए का सक्रिय कार्यकर्ता होने के सन्देह में गिरफ्तार किया गया था उनमें से 16 को साक्ष्य न मिलने के कारण रिहा कर दिया गया।

न्यायाधीश ने पूछा कहां से पढ़ी वकालत, तो बिस्मिल ने कहा..

न्यायाधीश ने पूछा कहां से पढ़ी वकालत, तो बिस्मिल ने कहा..

बिस्मिल ने चीफ कोर्ट के सामने जब धाराप्रवाह अंग्रेजी में फैसले के खिलाफ बहस की तो सरकारी वकील जगतनारायण मुल्ला जी के होश खराब हो गए। इस पर चीफ जस्टिस लुइस शर्टस् को बिस्मिल से अंग्रेजी में यह पूछना पड़ा - मिस्टर रामप्रसाड ! फ्रॉम भिच यूनीवर्सिटी यू हैव टेकेन द डिग्री ऑफ ला ?

इस पर बिस्मिल ने हस कर चीफ जस्टिस को उत्तर दिया था -

'एक्सक्यूज मी सर ! ए किंग मेकर डजन्ट रिक्वायर ऐनी डिग्री।'

English summary
independence day special know all about kakori incident which played important role for azadi
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