यूपी को उत्तम प्रदेश बनाने के लिए ये पांच फैसले हैं जरूरी
उत्तर प्रदेश की कमान अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ में है और उत्तर प्रदेश का भविष्य अगले पांच सालों में किन-किन रास्तों से होकर तैयार होगा, इसका फैसला भी उन्हीं को करना है।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की कमान अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ में है और उत्तर प्रदेश का भविष्य अगले पांच सालों में किन-किन रास्तों से होकर तैयार होगा, इसका फैसला भी उन्हीं को करना है। कहने को उत्तर प्रदेश एक राज्य है, पर अगर दुनिया के सामने उत्तर प्रदेश को रखा जाए तो ये पांचवां सबसे बड़े देश जितना दिखता है और आंकड़ों की इसकी असलियत भी यही बताती है। इसलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी उत्तर प्रदेश को एक प्रदेश की तरह नहीं बल्कि एक देश की विकसित करने के बारे में सोचना चाहिए। अगर वो ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो वास्तव में कई चीजों में अभी भी नंबर वन प्रदेश हर बात में नंबर वन बन सकता है। ऐसे ही कुछ प्रमुख विषयों को एक आंकलन के जरिए रख रहे हैं जिसमें सबसे पहले योगी को एक्शन लेना होगा जिससे उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाया जा सके।
प्राइवेट शिक्षा के कारोबार पर रोक
शिक्षा का अधिकार कानून को वर्ष 2009 में ही संसद ने पास कर दिया था। पर आज भी सबको मुफ्त और गुणवत्ता वाली शिक्षा पाना एक ख्वाब सा ही दिखता है। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर गरीबों के बच्चों को एडमिशन दिया जाना था। पर प्राइवेट स्कूलों ने इन नियमों की खूब धज्जियां उड़ाई और गरीब बच्चों को एडमिशन तक नहीं दिया। उत्तर प्रदेश की सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं मौजूद है जिसमें यह बताया जा सके कि शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद प्राइवेट स्कूलों की 25 फीसदी सीटों पर कितने गरीब बच्चों को एडमिशन दिया गया। उन 25 फीसदी सीटों पर किसका एडमिशन हुआ, यह भी नहीं पता चल पाया। सरकारों के नियमों को प्राइवेट स्कूलों ने मानने से मना कर दिया।
वहीं दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा तंत्र की बदहाली से परेशान जिन अभिभावकों ने अपने बच्चों का एडमिशन निजी स्कूलों में करवाया वो भी आज स्कूलों की तरफ से ली जाने वाली मनमानी फीस से परेशान हैं। एक तरफ जहां सरकारी स्कूलों में कम फीस होने के बावजूद अभिभावक अपने बच्चों का एडमिशन करवाने से कतराते हैं वहीं प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा दिलाने के लिए मजबूरन सिर्फ कक्षा आठ तक के बच्चों की फीस के रूप में सालाना लाखों रुपए जमा कर देते हैं। यह दबाव क्लास दर क्लास बढ़ता जाता है। इसके अलावा निजी कोचिंग, स्कूल ड्रेस, किताबों, कॉपियों, ट्रांसपोर्ट समेत कई खर्चे अलग से अभिभावकों को वहन करने पड़ते हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई दूसरे राज्यों से उदाहरण लेकर इस बात को लागू कर सकते हैं कि किस तरह से सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों से ज्यादा अच्छी तरह से विकसित किया जाए। अगर उत्तर प्रदेश के शिक्षा तंत्र में प्राइमरी से लेकर माध्यामिक और माध्यामिक से उच्चतर शिक्षा तक के ढांचे को लाभ कमाने से ज्यादा बच्चों के भविष्य को संवारने के रूप में विकसित किया जाए तो बात सकती है। सरकार को एक तरफ ऐसे सरकारी शिक्षा संस्थानों का ढांचा तैयार करना होगा जहां निजी शैक्षिक संस्थानों से भी ज्यादा अच्छी शिक्षा कम पैसे में मुहैया कराई जाए। ऐसे में सरकारी संस्थानों के विकसित होने से अपने आप विकल्प तैयार होंगे और एक नई प्रतियोगिता सरकारी और निजी संस्थानों के बीच पैदा होगी। साथ ही दोनों ही क्षेत्र के संस्थानों को खुद को बेहतर साबित करने का दबाव भी होगा। इसका सीधा फायदा बडी संख्या में गरीब, वंचित वर्गो और होनहार छात्रों को मिलेगा जो आर्थिक तंगी की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते हैं।
वहीं दूसरी तरफ निजी स्कूलों की मनमानी फीस पर नियंत्रण के लिए नियामक का गठन किया जाए जो सही रूप से बता सके कि वास्तव में निजी स्कूलों की फीस बढ़नी चाहिए या नहीं। क्योंकि हर साल ही निजी स्कूल बेवजह फीस में बढ़ोतरी कर अपने लाभ को बढ़ाने का रास्ता खोजते रहते हैं और सरकार से मुफ्त में जमीन मिलने के बावजूद गरीब बच्चों के शैक्षिक विकास पर ध्यान न देकर बच्चों को अपना ग्राहक मानकर उन्हें शिक्षा उपलब्ध कराते रहते हैं।
किसानों को फसल के बेहतर दाम
उत्तर प्रदेश की सरकार ने 36,359 करोड़ की कर्ज माफी की घोषणा की है। इससे 2.15 लाख छोटे और सीमांत किसानों का एक लाख तक कर्ज माफ करने की घोषणा की गई है। किसानों कर्ज माफ करना कोई बुरी बात नहीं है, जब कॉरपोरेट घरानों का लाखों करोडों रुपयों का कर्ज माफ किया जा सकता है तो किसानों का क्यों नहीं। पर सवाल यह है कि क्या किसानों के लिए कुछ कर्ज करने का मतलब सिर्फ कर्ज माफी ही है। क्या किसानों को उद्यमी के रूप में विकसित नहीं किया जा सकता है। क्या कोई ऐसी व्यवस्था की जा सकती है जिसमें किसानों को कर्ज न लेना पड़े और वो फिर भी खेती कर सकें।
किसान मामलों के जानकार सर्वोदय अभियान से जुड़े कुमार प्रशांत ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि इस वक्त क्या सबसे जरूरी है जिसकी तरफ सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है। उन्होंने कहा कि एक तो यह है कि जो समर्थन मूल्य अनाजों का आप तय करते हैं, वो आप न तय करें और जगह-जगह किसानों की को-ऑपरेटिव को तय करने दें। वहीं दूसरा ये कि जो भी बाजार भाव तय होता है, उस भाव पर फसल बाजार में बिके। इसकी देखरेख की व्यवस्था सरकार करे। इसके अलावा सरकार दूसरा कोई रोल न निभाएं।
उन्होंने कहा कि अगर किसानों की परिस्थिति को बदलना तो बातों पर तुरंत अमल करना होगा। पहली यह की किसानों की मदद के लिए जितनी भी व्यवस्थाएं बनाई गई हैं, उन सब पर विचार करना होगा। साथ ही फसलों के समर्थन मूल्य का सवाल किसान समितियों के पास जाएं जिससे फसलों का समर्थन मूल्य तय करने में मदद मिल सकती है। वहीं बाजार का व्यापारी किसान की लाचारी का फायदा उठाकर फसल को कम दाम पर बेचने के लिए बेबस न करें। योगी आदित्यनाथ सरकार को इस बावत कुछ नई व्यवस्था करनी होगी।
कानून व्यवस्था सुधारने के लिए बहुत काम जरूरी
उत्तर प्रदेश में पुलिस कर्मियों की कमी एक बहुत बड़ा मुद्दा है। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा पुलिस कर्मियों के 1.51 लाख पद खाली हैं। खाली पदों पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर ने उत्तर प्रदेश से पूछा है कि आप उत्तर प्रदेश में लोगों को रोजगार क्यों नहीं मुहैया कराते हैं? आखिर इतने पद खाली क्यों हैं? इस पर यूपी सरकार की तरफ से जवाब देते हुए कहा गया है कि रोजगार देने के लिए हमारी तरफ से प्रयास लगातार जारी हैं।
पर सवाल यहां उठता है कि क्या सिर्फ भर्तियां कर लेने भर से ही कानून व्यवस्था को ठीक किया जा सकता है। पर ऐसा नहीं है। भर्ती करने के साथ-साथ यूपी पुलिस को विदेशों की पुलिस की तरह प्रोफेशनल ट्रेनिंग की भी जरूरत है। यूपी पुलिस के ड्रेस, हेल्थ, सैलरी, काम करने के घंटे और प्रमोशन तक को नए सिरे से परिभाषित किए जाने की जरूरत है। यूपी पुलिस में आज भी लाखों की संख्या में भर्ती पुलिस कर्मी अपने नियमों का पालन नहीं करते हैं। एक तरफ जहां पुलिस वालों को फिट रहना चाहिए, वहीं पुलिस वाले उलटा ही ओवरवेट होते जा रहे हैं। अगर नियमों का कड़ाई से पालन किया जाए तो अपने इन रवैयों को यूपी पुलिस के जवान पीछे छोड़ सकते हैं। पर इन नियमों को उनकी नौकरी से जोड़ना होगा।
यूपी पुलिस में भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर है और यहां पर कुछ रुपयों के लिए ही पुलिस वाले अपना ईमान बेच देते हैं या फिर लोगों को तंग करते हैं। ऐसे में यूपी पुलिस के पुराने पर वेतन व्यवस्था और ढांचे को बदलकर आज के समय के हिसाब से वेतन तय किया जाना चाहिए। अगर पद और समय के हिसाब से वेतन सही मिलेगा तो पुलिस वाले अपना काम ज्यादा ईमानदारी से कर सकेंगे।
पुलिस वालों के लिए खुद को मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए छुट्टी की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे वो अपने परिवार को भी वक्त दे सकें। साथ ही प्रमोशन में पुलिस कर्मियों का असली काम देखा जाए नाकि राजनीतिक दबाव। पुलिस तंत्र और व्यवस्था को सुधारने के लिए इसे राजनीतिक, जाति, धर्म और समुदाय से अलग हटकर काम करना होगा। इस आधार पर काम करने वाले पुलिस कर्मियों को ही प्रमोशन का फायदा दिया जाए।
निवेश के लिए बेहतर माहौल, वाइब्रेंट गुजरात से भी बड़े आयोजन
उत्तर प्रदेश में निवेश की संभावनाएं किसी भी अन्य राज्य की तुलना में कहीं ज्यादा हैं। उत्तर प्रदेश में व्यापारियों को निवेश के लिए जो चीज सबसे ज्यादा आकर्षित करती है वो है यहां की भूमि और दूसरी जनसंख्या। क्योंकि उन्हें मैन्युफैक्चरिंग करने के साथ-साथ ही किसे सर्विस देनी है, इस बात की परवाह नहीं करनी पड़ती है।
पर राजनीतिक और कानूनी व्यवस्था सहीं न होने के कारण भी निवेशक थोड़ा बचते हैं। वैसे तो उत्तर प्रदेश के हर जिले की कुछ न कुछ खासियत है। पर उत्तर प्रदेश को आगे बढ़ाने के लिए पूरे प्रदेश को एक साथ विकसित करना होगा। क्योंकि अगर देखा जाए तो लखनऊ से नोएडा की तरफ उत्तर प्रदेश जितना विकसित हुआ है तो वहीं लखनऊ से गोरखपुर या फिर आजमगढ़ की तरफ उत्तर प्रदेश का विकास उतना ही पिछड़ा भी है। उत्तर प्रदेश में नोएडा और लखनऊ में निवेश की वजह से लाखों नौकरियां आई हैं तो वहीं दूसरे जिलों में निवेश न मिल पाने के कारण पलायन बढ़ा भी है। इसलिए नोएडा की तर्ज पर कम से कम यूपी के 10 जिलों को विकसित करने का लक्ष्य तय करना होगा जिससे उत्तर प्रदेश में नौकरियां बड़े पैमाने पर आ सके।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद कहा है कि उनका ध्यान पलायन रोकने पर ज्यादा होगा। पर इस पलायन को रोकने के लिए उन्हें पांच साल में ही 25 वाली नीति बनानी होगी। उत्तर प्रदेश को मैन्युफैक्चरिंग के सेक्टर के साथ-साथ सर्विस सेक्टर के रूप में विकसित करना होगा। गोरखपुर, आजमगढ, फैजाबाद समेत अन्य पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में निवेश बढ़ाने पर जोर देना होगा। साथ ही ऐसा माहौल तैयार करना होगा जिससे लोग वापस यूपी लौटने के लिए लालियत हो जाएं। यूपी के हर जिले में कोई न कोई विशेष कारोबार होता है, उसकी यूएसपी को बाजार के सामने बेहतर ढंग से पेश किया जा सकता है। आगरा का चमड़ा उद्योग, भदोही का कालीन, कन्नौज का इत्र, फिरोजाबाद की चूडियां, कानपुर का वस्त्र उद्योग समेत हर जिले को नए ढंग से एक विशेष रूप में दुनिया के सामने रखा जा सकता है।
केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार होने का फायदा सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मिल सकता है और उत्तर प्रदेश में निवेश के बड़े निर्णय वो बिना किसी रोकटोक के ले सकते हैं। योगी के पास मौका है कि वो वाइब्रेंट गुजरात से भी बड़े स्तर के आयोजन को यूपी में करवा सकते हैं। अगर योगी ऐसा करने में सफल होते हैं तो पहला परिणाम यह होगा कि यूपी में नौकरियों को बहार होगी दूसरा दूसरे राज्यों के लोगों का रूख भी यूपी क तरफ होगा जोकि किसी भी राज्य को समृद्ध बनाने के लिए बहुत जरूरी है।
बेलगाम सरकारी तंत्र की पूरी सर्जरी जरूरी
यूपी में योगी आदित्यानाथ सरकार आने के बाद नौकरशाही ने थोड़ा झुकना शुरु कर दिया है। पर इस नौकरशाही से लेकर पूरे सरकारी तंत्र को अपने तरीके से चलाने के लिए पूरी मशक्कत योगी आदित्यनाथ को करनी पड़ेगी। क्योंकि ये वहीं नौकरीशाही जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस निर्णय को लागू होने में रूचि नहीं लेती जिसमें कहा गया था कि अधिकारियों के बच्चों को भी सरकारी स्कूलों में पढ़ना चाहिए। साथ ही अखिलेश सरकार को इस बावत फैसला नहीं लेने देती तो वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के अन्य बच्चों के इतर अपने बच्चों के लिए अलग संस्कृति स्कूल तुरंत चंक गजरिया लखनऊ में बनवा लेती है।
योगी आदित्यनाथ सरकार ने यूपी के सभी अधिकारियों से उनकी संपत्ति का ब्यौरा मांगा था। पर आज 15 दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक न तो मंत्रियों ने और न हीं अधिकारियों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा उपलब्ध करवाया है। ये तो अभी लखनऊ में बैठे हुए अधिकारियों का हाल है। पूरे प्रदेश भर में अधिकारियों से निपटने के लिए योगी सरकार को दिन-रात मेहनत करनी होगी। क्योंकि यही रवैया ऊपर से नीचे तक फैला हुआ है। कर्मचारियों के ऑफिस आने-जाने के समय को तय करने से ज्यादा यह सुनिश्चित करना होगा कि सारे कर्मचारियों का आउटपुट बढ़े और वो बेहतर परिणाम दे सकें।
बेहतर परिणाम देने वाले कर्मचारियों का प्रोत्साहन करते हुए सम्मान करना होगा जिससे उन्हें यह न लगे कि वो बस एक सरकारी नौकरी कर रहे हैं। बल्कि अपने विभाग को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। सरकारी विभागों में बेहतर रिजल्ट देने वाले विभागों को ईनाम देकर भी इस प्रतियोगिता को आगे बढ़ाया जा सकता है।