ओवैस और आशा के प्रेम को यूपी के नए क़ानून ने कैसे देखा
2019 में जब आशा, ओवैस के साथ घर से भाग गई थी, तो उनके पिता ने ओवैस के ख़िलाफ़ अपनी बेटी के अपहरण का केस दर्ज कराया था. बाद में पुलिस ने ये केस बंद कर दिया था.
शाम के वक़्त उस महिला ने चाय बनाने के लिए आग जलाई. ओवैस अहमद उस वक़्त घर पर नहीं थे. उनके बुज़ुर्ग पिता, घर के पीछे चारपाई पर बैठे हुए थे. उन्होंने कहा कि 'अगर कोई उनके लिए आवाज़ नहीं भी उठाता, तो क्या फ़र्क़ पड़ता है. सच तो ये है कि उनके बेटे के साथ ज़ुल्म हुआ है.'
अभी उनके दिल में उम्मीद का दिया रौशन तो है, मगर वो संभलकर बात करते हैं.
ओवैस के पिता ने कहा कि, 'हम तो मुसलमान हैं. ये एक हक़ीक़त है. हम कोई ख़ास उम्मीद नहीं रखते.'
उनकी बहू ने कहा कि अब्बा को कई दिनों तक थाने पर बैठाए रखा गया था ताकि ओवैस को डरा-धमकाकर आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया जाए. फिर पुलिस आई और उसे उठाकर ले गई.
महिला ने कहा कि, 'पुलिस वाले उन्हें खाना खाते से ही उठाकर ले गए. उन्हें खाना नहीं खाने दिया.'
ओवैस के अब्बा मोहम्मद रफ़ीक़, उत्तर प्रदेश के शरीफ़ नगर में दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं. उनके पास गाँव में थोड़ी सी ज़मीन भी है.
गिरफ़्तारी से पहले ओवैस छोटे-मोटे काम करके किसी तरह से बसर कर रहे थे. अब उन्हें इंतज़ार है कि पुलिस और अदालत बेगुनाही का एलान करें. अभी वो ज़मानत पर छूटे हुए हैं. पुलिस का कहना है कि वो अब भी मामले की जांच कर रही है.
ओवैस वो पहला इंसान हैं, जिन्हें उत्तर प्रदेश के नए धर्मांतरण निरोधक क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया. ओवैस को उन्हीं के गाँव के रहने वाले और पड़ोसी टीकाराम की शिकायत पर 28 नवंबर को गिरफ़्तार किया गया था. इससे कुछ घंटे पहले ही उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उत्तर प्रदेश अवैध धर्मांतरण निरोधक अध्यादेश 2020 को अपनी मंज़ूरी दी थी. इस क़ानून के लागू होने के बाद, राज्य में धर्म परिवर्तन ग़ैर-ज़मानती अपराध हो गया है और इसका दोषी साबित होने पर दस साल क़ैद तक की सज़ा हो सकती है.
क्या कहती है एफ़आईआर
एफ़आईआर के मुताबिक़, टीकाराम ने ओवैस पर आरोप लगाया था कि 'उन्होंने बहला फुसलाकर और दबाव बनाकर उनकी बेटी आशा को इस्लाम धर्म क़ुबूल कराया था.'
ओवैस पर इल्ज़ाम लगा था कि उन्होंने आशा के परिवार पर इस बात का दबाव बनाया था वो अपनी बेटी को इस्लाम धर्म क़ुबूल करने और उससे शादी करने की इजाज़त दे दें. ओवैस पर इसके लिए आशा के परिवार को धमकाने का भी आरोप है.
ये मामला बरेली के देवरैना पुलिस थाने में दर्ज कराया गया था.
ओवैस और आशा, पास के ही एक स्कूल में साथ-साथ पढ़ते थे और एक-दूसरे को जानते थे. गाँव में क़रीब 1200 मकान हैं और लगभग पाँच हज़ार लोग रहते हैं. गाँव के प्रधान ध्रुव राज के मुताबिक़, गाँव में चार सौ मुसलमान रहते हैं.
आशा की शादी पिछले साल जून में हो गई थी. लेकिन, उनके पिता का कहना था कि ओवैस उन्हें अब भी परेशान कर रहा था.
पुलिस ने ओवैस को IPC की धारा 504 (किसी व्यक्ति को अपमानित करने), 506 (डराने-धमकाने) और नए क़ानून की धाराओं तीन और पाँच के तहत गिरफ़्तार किया था. उत्तर प्रदेश के नए धर्मांतरण निरोधक क़ानून की धारा 12 के मुताबिक़, ख़ुद को बेगुनाह साबित करने की ज़िम्मेदारी अभियुक्त पर है.
वर्ष 2019 में जब आशा, ओवैस के साथ घर से भाग गई थी, तो उनके पिता ने ओवैस के ख़िलाफ़ अपनी बेटी के अपहरण का केस दर्ज कराया था. बाद में पुलिस ने ये केस बंद कर दिया था. लेकिन, इस बार जब पुलिस ने ओवैस को नए अध्यादेश के तहत गिरफ़्तार किया, तो नई FIR में पुराने केस को भी जोड़ दिया.
तालीम का मसला
ओवैस के चार बड़े भाई हैं. उनमें से किसी ने भी छठी कक्षा से आगे पढ़ाई नहीं की. सरकारी स्कूल होने और मुफ़्त शिक्षा के वादे के बावजूद उनके लिए पढ़ाई जारी रख पाना बेहद मुश्किल था. इसके बाद उन्होंने घर चलाने के लिए कबाड़ का काम शुरू कर दिया. भाइयों में से एक ने अपने पिता की तरह राजमिस्त्री का काम शुरू कर दिया था.
उन्होंने कहा कि तालीम के साथ मसला ये है कि वो आपको ख़्वाब देखना सिखा देती है. मगर, वो ये नहीं बताती कि आप मुश्किलों से पार कैसे पाएं.
आशा, अक्टूबर 2019 अपना घर छोड़कर चली गई थी. परिवार ने ओवैस के ख़िलाफ़ शिकायत की और पुलिस ने FIR दर्ज कर ली. बाद में पुलिस ने आशा को बरेली पुलिस स्टेशन से पकड़ा और उसे घर ले आई.
उसने मैजिस्ट्रेट के सामने गवाही दी और कहा कि उसने लड़ाई के चलते अपना घर छोड़ दिया था और ट्रेन पकड़कर दिल्ली चली गई थी. आशा ने कहा कि उसने कई रातें बरेली और दिल्ली के रेलवे स्टेशनों पर बिताई थीं. उसने ये भी कहा कि उसके घर छोड़ने के पीछे ओवैस का कोई रोल नहीं था. आशा के बयान के बाद पुलिस ने मामला बंद कर दिया था.
गाँव के प्रधान कहते हैं कि, जून 2020 में आशा की शादी अपने ही समुदाय के एक व्यक्ति से कर दी गई थी.
जब मैंने टीकाराम के घर के बाहर उनका नाम लेकर पुकारा, तो एक महिला घर से निकलकर बाहर आई. उसने कहा कि टीकाराम घर पर नहीं हैं. उसने ये भी कहा कि वो इस घर में मेहमान है और उसे इस केस के बारे में कुछ भी नहीं पता.
उसे ये भी नहीं पता कि टीकाराम घर कब लौटेंगे या वो कहाँ मिलेंगे. उसके पास टीकाराम का कोई फ़ोन नंबर भी नहीं था. ये कोई अचरज वाली बात नहीं थी. मुझे बताया गया था कि टीकाराम का परिवार, मीडिया से बात नहीं कर रहा है. वो पूरी तरह ख़ामोश हो गए थे.
ओवैस के पिता, टीकाराम को दोष नहीं देते. उनका कहना है कि पुलिस ने तो टीकाराम पर दबाव बनाया था कि वो ओवैस के ख़िलाफ़ केस दर्ज कराएं. ऐसा करना आसान भी था क्योंकि ओवैस के ख़िलाफ़ वो पहले भी एक शिकायत दर्ज करा चुके थे. ये बात और थी कि पुलिस ने उस मामले की जांच बंद कर दी थी.
हैरानी की बात ये है कि पुलिस ने ओवैस के ख़िलाफ़ जो नई तहरीर दर्ज की है, उसमें आशा के बयानों का ज़िक्र भी नहीं है. टीकाराम का कहना है कि ओवैस और आशा ने बारहवीं कक्षा तक साथ पढ़ाई की थी. वहीं, ओवैस का कहना है कि उन दोनों ने आठवीं तक ही साथ पढ़ाई की थी. दोनों दोस्त भी रहे थे.
ओवैस ने कहा कि, 'शायद हमारी दोस्ती के चलते ही उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ केस दर्ज करा दिया.'
हालांकि, ओवैस अभी भी इस बात पर हैरान था कि पहले आशा के परिवार वालों ने उसके ख़िलाफ़ अपहरण का केस क्यों दर्ज कराया था. उस मामले में भी पुलिस ने ओवैस को चार-पांच दिनों तक थाने में बिठाए रखा था.
ओवैस ने कहा कि, 'मैं बेकसूर हूं.'
इस बार पुलिस ने ओवैस को नए अध्यादेश के तहत गिरफ़्तार किया है. मगर ओवैस को इसका बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था. उन्हें तो उनके वकील मोहम्मद आरिफ़ ने थाने जाकर सरेंडर करने के लिए कहा था. इसके बाद ओवैस को 21 दिन तक जेल में रहना पड़ा था.
ओवैस का कहना है कि, 'मुझे नहीं पता कि उन्होंने मुझ पर ये केस क्यों लगा दिया. उनके पास इसका बेहतर जवाब होगा. पर मुझे पता है कि मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं. मुझे किसी बात का डर नहीं है.'
ओवैस ने बहेरी में विज्ञान की पढ़ाई के लिए कॉलेज में दाख़िला लिया था. मगर उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी थी.
उनके पिता, जिनकी उम्र 70 बरस है, हँसते हुए तंज़ में कहते हैं कि, 'ये सब तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ साज़िश है. FIR में लड़की का बयान नहीं है. उसे अब बयान देने के लिए लाया भी नहीं जा सकता. वो लोग तो पूरी तरह से ख़ामोश हो गए हैं.'
उन्होंने कहा कि, 'मैं नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने से नहीं डरता.'
जब आप गाँव में इस बात की चर्चा करते हैं, तो अजीब सा सन्नाटा छा जाता है. कोई भी इस बारे में कुछ नहीं बोलना चाहता. मोहम्मद रफ़ीक़ ने सलाह दी कि हम गाँव के प्रधान के पास जाएं और उनसे पूछें.
लेकिन, प्रधान ध्रुव राज का कहना है कि वो इस बारे में बात नहीं करेंगे क्योंकि पंचायत के चुनाव होने वाले हैं. ध्रुव राज का परिवार 1952 से ये चुनाव जीतता आया है. वो बस 2015 में एक उम्मीदवार से चुनाव हारे थे. ध्रुव राज का कहना है कि वो बीजेपी से ताल्लुक़ रखते हैं.
उनका कहना है कि, 'ओवैस अच्छा लड़का है. सबको पता है कि क्या हुआ है. ऊपर से बहुत दबाव था.'
पिछले कई दशकों के दौरान, शरीफ़ नगर में दो धर्मों के लोगों के बीच सिर्फ़ एक शादी हुई थी, जब एक हिंदू लड़के ने एक मुस्लिम लड़की से शादी की थी. ध्रुव राज कहते हैं कि, उस मुस्लिम युवती ने हिंदू धर्म अपना लिया था.
इत्तेफ़ाक़ से वो लड़की भी मोहम्मद रफ़ीक़ की पोती थी. रफ़ीक़ का कहना है कि ये कोई तीन चार बरस पहले की बात है. पहले इस शादी का कुछ विरोध हुआ था. पर अब दोनों शादी-शुदा हैं.
देवरैना पुलिस थाने में पुलिसवाले धूप सेंक रहे थे. उन्होंने बताया कि इस मामले की जांच करने वाले पुलिसकर्मी का तो पहले ही दूसरे ज़िले में तबादला कर दिया गया था.
बाक़ी के पुलिसवालों ने इस बारे में कोई जानकारी होने से इनकार कर दिया. हालांकि, वो राज्य के नए क़ानून के बारे में बात करने के लिए राज़ी हो गए. उन पुलिसवालों का कहना था कि उन्हें इस बारे में अध्यादेश जारी होने से पहले ही कई शिकायतें मिल रही थीं कि शादियों के ज़रिए धर्म परिवर्तन कराए जा रहे हैं.
पुलिस तब ऐसे मामलों की शिकायत मिलने पर, अपहरण की धाराओं में केस दर्ज किया करती थी.
पुलिस थाने के इंचार्ज आर के सिंह ने कहा कि पुलिस की भूमिका तो सबूत जुटाने और उसे अदालत में पेश करने तक सीमित है.
ये देवरैना थाना ही था, जहां मोहम्मद रफ़ीक़ को पुलिस उठाकर ले गई थी, जिससे कि ओवैस पर दबाव बनाया जा सके. बाद में ओवैस ने बहेरी थाने में जाकर समर्पण कर दिया था. लेकिन, उसे बाद में देवरैना थाने लाया गया था. उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया. बाद में ओवैस को ज़मानत मिल गई.
आर के सिंह कहते हैं कि, 'IPC के दायरे में तो हर जुर्म आता है. इस नए आदेश के आने से इस अपराध के लिए ख़ास प्रावधान किए गए हैं. ये क़ानून अच्छा है क्योंकि इससे पुलिस पर काम का बोझ कम होगा. अब जब भी धर्म परिवर्तन के मामले होंगे, तो पुलिस नए क़ानून का इस्तेमाल कर सकेगी. हम तो क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करते हैं.'
आर के सिंह ने आगे कहा कि उन्हें बजरंग दल या ऐसे किसी और दक्षिणपंथी संगठन से इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती. जब उन्हें लगता है कि कोई शिकायत वाजिब है, तो वो ज़रूरी कार्रवाई करते हैं.
आर के सिंह ने कहा कि, 'पुलिस पर तो हर बात का इल्ज़ाम लगा दिया जाता है. हम कोई मुसलमानों के ख़िलाफ़ थोड़ी हैं.
अध्यादेश आने के बाद क्या बदला?
जब हमने उनसे ये पूछा कि क्या उन्हें ऐसी और भी शिकायतें अध्यादेश आने के बाद मिलने लगी हैं तो एसएसआई निर्मोध ने कहा कि IPC की धारा 153 के तहत केस दर्ज करने से ही सख़्त संदेश चला जाता है कि कोई शादी या किसी और ज़रिए से धर्म परिवर्तन न कराए.
बरेली का ये अनजान सा थाना अचानक से उत्तर प्रदेश के नक़्शे पर अहम मालूम होने लगा था. क्योंकि, इस थाने ने नए क़ानून के तहत पहली गिरफ़्तारी की थी.
ओवैस के वकील मोहम्मद आरिफ कहते हैं कि उन्हें मुक़दमा शुरू होने का इंतज़ार है. आरिफ़ कहते हैं कि, 'जब आशा ने 2019 में ही मैजिस्ट्रेट के सामने ये गवाही दी थी कि उसने अपनी मर्ज़ी से घर छोड़ा था. उस वक़्त उसकी उम्र 18 बरस छह महीने थी. जहां तक क़ानून की बात है तो आशा उस वक़्त भी क़ानून की नज़र में बालिग थी. बाद में उसके पिता ने भी उसकी शादी कहीं और कर दी थी.'
वो केस बंद कर दिया गया था. अब ये नया अध्यादेश तो 28 नवंबर 2020 को लागू हुआ. बरेली पुलिस ने सोचा कि पहला केस वही दायर कर दें. यहां कोई धर्म परिवर्तन हुआ ही नहीं. वो लड़की के पिता को थाने लिवा ले गए. उसके परिवार को टॉर्चर किया. वो आशा के पिता को 28 नवंबर को ही थाने ले गए थे.
आरिफ ने कहा कि, 'हम लड़की के पिता को कोर्ट के ज़रिए तलब करेंगे.'
ओवैस का कहना है कि उसे नहीं पता कि वो आगे क्या करेगा. उसने कहा कि, 'अगर पुलिस चाहे, तो मैं अपने सारे फ़ोन नंबर और अपने परिवार के नंबर भी पुलिस को देने को तैयार हूं.'
जेल में गुज़ारे हुए दिन बेहद बुरे ख़्वाब सरीखे थे.
ओवैस ने कहा कि, 'मुझे नहीं पता कि वो मेरे ऊपर कोई और केस लगा देंगे. उन्होंने तो मेरा करियर चौपट कर ही दिया. मैंने 2019 में तभी पढ़ाई छोड़ दी थी, जब उन्होंने पहली बार मेरे ऊपर केस दर्ज किया था. कॉलेज में लोग मुझे चिढ़ाया करते थे. मुझे ग़ुस्सा तो बहुत आता था. मगर मैं करता भी तो क्या. ये सब तो सियासत है. मैंने किसी हिंदू लड़के के ख़िलाफ़ केस दर्ज होने की बात तो अब तक नहीं सुनी. आख़िर क्यों?'