क्या सच में बीजेपी यूपी का मुख्यमंत्री तय नहीं कर पा रही है?
उत्तर प्रदेश में 11 मार्च को चुनाव के नतीजे आए थे लेकिन अब तक मुख्यमंत्री कौन होगा इसकी घोषणा नहीं की गई है.
क़रीब एक हफ़्ते बीत जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने आज यानी 18 मार्च को विधायकों की बैठक बुलाई है और अगले दिन यानी 19 मार्च को मुख्यमंत्री की शपथ का दिन तय किया है, लेकिन मुख्यमंत्री का सवाल अब तक रहस्य बना हुआ है.
यही नहीं, शपथ कार्यक्रम के बारे में पार्टी की ओर से नहीं बल्कि राजभवन से सूचना मिली.
स्थिति ये है कि पार्टी के तमाम नेता पत्रकारों को 'ऑफ़ द रिकॉर्ड' भी कुछ नहीं बता रहे हैं या यों कहें कि बता नहीं पा रहे हैं.
मीडिया में जो भी नाम चल रहे हैं, या तो वह नेता ही उसे ख़ारिज कर दे रहा है या फिर उसके न बनने के तमाम कारण भी सामने आते जा रहे हैं.
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यहां दो बातें सामने आ रही हैं. एक ओर ये कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री जिसे बनाना है, पार्टी पहले ही तय कर चुकी है, लोग चाहे जितने क़यास और अंदाज़ लगाएं.
वहीं दूसरी ओर, ये भी कहा जा रहा है कि ये मामला इतना पेचीदा है कि पार्टी को एक नाम, वो भी सर्वसम्मति से तय करने में नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं.
पार्टी दफ़्तर से लेकर चाय-पान की दुकानों तक पर इस समय सिर्फ़ यही चर्चा हो रही है.
यही नहीं, दूसरे राजनीतिक दलों में अपनी हार की बजाय मुख्यमंत्री के नाम पर कहीं ज़्यादा बहस हो रही है.
समाजवादी पार्टी ने तो विधायकों की बैठक करने के बाद विधानसभा में नेता चुनने का काम ये कह कर टाल दिया है कि जब मुख्यमंत्री तय हो जाएगा तब नेता चुना जाएगा.
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लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं, "विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश भले ही पार्टी के लिए सबसे अहम था लेकिन चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का नाम उसकी लिस्ट में सबसे आखिरी है. इसीलिए उत्तराखंड में भी इस मामले को निपटाने के बाद उत्तर प्रदेश की बारी आई है. पार्टी को साल 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री तय करना है, दूसरे तमाम समीकरणों को भी साधना है जो उसने वोट पाने के लिए साधे थे."
जानकारों का कहना है कि पार्टी के लिए ये इसलिए भी मुश्किल काम है क्योंकि सौ से ज़्यादा विधायक ऐसे हैं जो दूसरे दलों से बीजेपी में शामिल हुए और फिर चुनाव जीत गए.
पार्टी के विधायकों के अलावा इन्हें भी संतुष्ट करना किसी चुनौती से कम नहीं है.
यूपी का सीएम कौन होगा, ये मुद्दा अब सोशल मीडिया पर भी सबसे ज्यादा ट्रेंड हो रहा है.
सूत्रों के हवाले से न सिर्फ़ सोशल मीडिया पर बल्कि मुख्य धारा की मीडिया में भी अब तक कई नेता मुख्यमंत्री बना दिए गए हैं.
वहीं ये अनुमान लगाने वालों की भी कमी नहीं है कि मीडिया जिन नामों पर माथापच्ची कर रहा है, उनमें से किसी को न बनाकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह किसी बिल्कुल नए और अनजान चेहरे को ये मौक़ा दे सकते हैं.
लेकिन योगेश मिश्र ऐसा नहीं मानते, "हरियाणा और झारखंड से यूपी की तुलना नहीं की जा सकती. एक तो यूपी राजनीतिक रूप से कहीं ज़्यादा जागरूक है दूसरे बड़ा राज्य भी है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह का आत्मविश्वास इस समय कितना भी ऊंचे स्तर पर हो, लेकिन उन्हें ये भी पता है कि यहां स्थानीय लोगों और समीकरणों की अनदेखी कितनी भारी पड़ सकती है."
इस बीच, बतौर मुख्यमंत्री दो दिन से जिस नाम की सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है, वो हैं केंद्रीय संचार मंत्री मनोज सिन्हा.
हालांकि राजनाथ सिंह की तरह मनोज सिन्हा भी 'रेस में होने' से इनकार कर चुके हैं लेकिन दिल्ली से लेकर ग़ाज़ीपुर तक लोग उन्हें बधाइयां देते मिले और शुक्रवार को देर शाम वो ख़ुद वाराणसी पहुंच गए.
बहरहाल, शनिवार शाम को होने वाली विधायक दल की बैठक में तो मुख्यमंत्री का नाम साफ़ हो ही जाएगा लेकिन जिस तरह से हफ़्ते भर इस पर संशय बना रहा, वो अपने आप में दिलचस्प है.
पार्टी दफ़्तर में एक बीजेपी कार्यकर्ता की ये चुटीली टिप्पणी बेहद सटीक थी, "अब पता चला कि पार्टी चुनाव से पहले कोई मुख्यमंत्री चेहरा क्यों नहीं घोषित कर पाई थी."