ज्ञानवापी मस्जिद है या मंदिर इस किताब में बड़ा दावा, 19वीं सदी में ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने लिखी थी
वाराणसी, 26 मई: ज्ञानवापी मस्जिद पिछले कुछ दिनों से काफी चर्चाओं में है। मीडिया की सुर्खियों में भी बनी हुई है। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर राजनीति भी गरमाई हुई है। फिलहाल यह मामला कोर्ट में चल रहा है। लेकिन 19वीं सदी की एक किताब सामने आईं हैं, जिसमें इससे से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी को उसकी तह तक जाकर लिखा गया है। इस किताब में मिली कुछ तस्वीरें ज्ञानवापी के मंदिर होने की बात प्रमाणित करती हैं।

जेम्स प्रिंसेप ने लिखी थी किताब
ब्रिटिश विद्वान और लेखक जेम्स प्रिंसेप ने काशी के इतिहास को अपनी किताब 'बनारस इलस्ट्रेटेड' में बारिकी से लिखा है। 19वीं सदी में लिखी गई इस किताब में लेखक जेम्स प्रिंसेप ने काशी का इतिहास, संस्कृति, काशी के घाट, लोग और सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानवापी परिसर में मौजूद मंदिर के बारे में जानकारी दी है। इतना ही नहीं, 1830 में उनका द्वारा ली गई कुछ तस्वीरें हैं, जिन्हें यहां की लाइब्रेरी में रखा गया है। संस्थान की पदाधिकारी वंदना सिन्हा ने बताया कि इस लाइब्रेरी में यह संकलन 1960 में लाया गया था। इसमें जेम्स प्रिंसेप द्वारा ली गई ज्ञानवापी की फोटो का चित्रंकन पुराने काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से किया गया है।

क्या है बनारस इलस्ट्रेटेड किताब में
जेम्स प्रिंसेप ने किताब में अंकित सर्वेक्षण को लिथोग्राफी के जरिए समझाया है, क्योंकि उस वक्त पेंटिंग और कलाकृतियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। इस तकनीक की मदद से जेम्स प्रिंसेप ने वहां मौजूद हर एक दृश्य को कागज पर उकेरा है। जेम्स द्वारा बनाई गई तस्वीरों में मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने को इंगित किया गया है, जिसे मंदिर का गर्भगृह बताते हुए लिखा है कि बलुआ पत्थरों से बनी यह संरचना 1585 ईस्वी की है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुबेर नाथ सुकुल ने 1974 की पुस्तक 'वाराणसी डाउन द एजेज' में जेम्स प्रिंसेप के इसी चित्र संग्रह का हवाला देते हुए लिखा है कि जेम्स प्रिंसेप की नजर से देखें तो विश्वेश्वर मंदिर राजा टोडरमल ने 1585 में बनवाया था। इसे औरंगजेब द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था।

किताब में किया है इन बातों का जिक्र
'बनारस इलस्ट्रेटेड' किताब में जेम्स प्रिंसेप ने लिखते हैं कि मुगलों ने अपने धर्म की जीत के उत्साह में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए किसी भी मूल संरचना की आधी दीवारों को नष्ट किए बिना एक विशाल मस्जिद में बदलने की ठानी। उन्होंने मूल संरचना को तोडते वक्त उसके आधार को नहीं मिटाया, इसलिए अब भी इसकी मूल संरचना के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है। पुस्तक में लिखा है कि इस हिस्से में पूजा-अर्चना के लिए हिंदू आते थे, लेकिन छिपते-छिपाते। यह क्रम इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर द्वारा 1777 में यहां मंदिर बनाने तक चलता रहा। उसके बाद लोग पूजन के लिए सार्वजनिक रूप से पहुंचने लगे।

ज्ञानवापी को लेकर कही यह बात
इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक, ब्रिटेश लेखक जेम्स प्रिंसेप ने अपनी किताब में लिथेग्राफी से नक्शे के जरिए विश्वेश्वर मंदिर को समझाया है। जहां शिवलिंग रखा गया है, उस मंदिर में चारों तरफ से प्रवेश होता था। उत्तर-दक्षिण में आगंतुकों के लिए दो शिव मंडप थे। पूर्व पश्चिम अक्ष में केंद्र में 'द्वारपालों' से घिरे प्रवेश मंडप थे। कोनों पर और चार कोनों में तारकेश्वर, मनकेश्वर, भैरों और गणेश विराजमान थे। इस प्रकार यह योजना केंद्र में प्रमुख देवता के साथ 3×3 ग्रिड पर आधारित थी। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि योजना में दो रेखाएं है जो मस्जिद द्वारा मंदिर के वर्तमान कब्जे का सीमांकत करती है।
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