गोरखनाथ का खिचड़ी मेला: सियासत से अलग हिन्दू-मुसलमानों की एक नायाब दुनिया
गोरखनाथ का खिचड़ी मेला: भारत की हिन्दू- मुस्लिम राजनीति में चाहे जितने भी उबाल आते रहे हों लेकिन सांस्कृतिक समन्वय की एक मजबूत डोर ऐसी भी है जो दोनों को जोड़े रखती है। गोरखपुर का खिचड़ी मेला इस समन्वय का सबसे बड़ा प्रतीक है। गोरखनाथ मंदिर में हर साल मकर संक्रांति पर खिचड़ी चढ़ायी जाती है। इस इस मौके पर मंदिर परिसर में एक महीने तक मेला लगता है जिसें कई मुसलमान दुकानदार अपनी दुकान सजाते हैं। इस मेला में मुसलमानों की अच्छी खासी भीड़ जुटती है। हिन्दुओं की तरह मुसलमानों को भी इस मेले का इंतजार रहता है। राजनीति का मसला अपनी जगह पर है। लेकिन एक महीने का खिचड़ी मेला दोनों समुदायों के लिए 'प्रेम नगर’ से कम नहीं होता। इसमें सियासत के लिए कोई जगह नहीं होती। जिस योगी आदित्यनाथ की छवि पर सवाल उठाया जाता है वही मुसलमान दुकानदारों और ग्राहकों के संरक्षक होते हैं। मकर संक्राति पर नेपाल के राजपरिवार की तरफ से बाबा गोरखनाथ का खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा रही है। बाबा गोरखनाथ को शिव का अवतार माना जाता है। मान्यता है कि त्रेता युग से उन्हें खिचड़ी चढ़ायी जा रही है। इस बार कोरोना गाइड लाइंस के मुताबिक खिचड़ी मेला का आयोजन किया जा रहा है।
सियासत से अलहदा एक नयी दुनिया
बाबा गोरखनाथ मंदिर से मुसलमानों के जुड़ाव को समझना है तो यहां के एक दुकानदार इंताफ हुसैन का बयान काबिलेगौर है। इंताफ हुसैन ने तीन साल पहले कहा था, "बाहर कौन क्या कहता है, क्या सोचता है ? ये तो वो जानें। लेकिन हमको कभी परेशानी नहीं हुई।" गोरखनाथ मंदिर परिसर में निर्माण कार्य की देखरेख करने वाले मोहम्मद यासीन ने कुछ साल पहले कहा था, यहां के दस मंदिर मेरी देखरेख में बने हैं। चालीस साल से सब कुछ कर रहा हूं। छोटे महाराज जी (योगी आदित्यनाथ) ने कभी ऐसी कोई बात नहीं कही जिससे दिल को ठेस लगे। अगर कभी जमीर पर आंच आती तो क्या मैं यहां रहता ? बाबा गोरखनाथ मंदिर परिसर करीब 60 एकड़ में फैला हुआ है। यसीन पहले मंदिर परिसर में रहते थे। जब उन्होंने अपना घर बना लिया तो वे यहं से चले गये। गोरखपुर के पढ़े लिखे मुसलमानों का कहना है, योगी आदित्यनाथ के कई भाषण तो डराने वाले जरूर हैं। लेकिन इस डर के बीच गोरखनाथ मंदिर का माहौल उम्मीदों का जलता हुआ चिराग है। हम यही दुआ करते हैं कि वे सबको साथ लेकर चलें।
मेला में खूब आते हैं मुस्लिम दुकानदार
गोरखनाथ मंदिर के आसपास मुसलमानों की घनी आबादी है। मंदिर परिसर में कई स्थायी दुकाने हैं। इनमें छह दुकानें मुसलिम समुदाय की है। ये मुस्लिम दुकानदार पूजा में इस्तेमाल होने वाली चूडियां और सिंदूर बेचते हैं। खिचड़ी मेला में तीस से चालीस फीसदी दुकानें मुसलमानों की होती हैं। यहां बड़ी संख्या में मुसलमान आते हैं। मंदिर परिसर में वे हिन्दुओं की तरह ही खरीदारी करते हैं और घूमते-फिरते हैं। कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं होता। यहां सामुदायिक रिश्तों की अलग ही दुनिया आबाद रहती है। ऐसा नहीं है कि इस मेले में केवल गोरखपुर के मुसलमान ही शिरकत करते हैं। बाहर से मुस्लिम दुकानदार भी आते हैं। एक महीने तक चलने वाले इस मेले में इतनी बिक्री होती है कि उनकी साल भर की कमाई हो जाती है। सीतापुर, फैजाबाद, मुरादाबाद से यहां दुकानदार आते हैं। कोई पीतल के बर्तन की दुकानें लगाता है तो कोई क्रॉकरी की।
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ऐसी सुरक्षा किसी और मेले में नहीं
कई मुसलमानों की मान्यता है कि जब से उन्होंने खिचड़ी मेले में दुकान लगायी तब से उनकी बरकत होने लगी। इसलिए वे बाबा गोरखनाथ के प्रति श्रद्धा रखते हैं। इस मेले में दूर-दूर से दुकानादारों के आने का एक और बड़ा कारण ये है कि ऐसी सुरक्षा व्यवस्था कहीं और देखने को नहीं मिलती। इस मेले में किसी की भी हिम्मत नहीं कि वह गुंडागर्दी कर दे। दुकानदार बिना किसी भय के अपना कारोबार करते हैं। महिलाएं बेखौफ मेला में घूमती हैं। किसी मजाल नहीं कि कोई बदतमीजी कर दे। मंदिर के स्वयंसेवक दिन-रात सुरक्षा में लगे रहते हैं। पुलिस का भी पुख्ता इंतजाम रहता है। लेकिन इस बार मेला थोड़ा अलग होगा। सबको मास्क लगा कर आना पड़ेगा। कोरना गाइडलाइंस के तहत दुकानों को दूर-दूर लगाया गया है। सरकार ने आम लोगों से गुजारिश की है कि इसबार वे कम संख्या में मेला देखने आएं। बड़े-बड़े झूले लग चुके हैं। दुकानें भी सज गयी हैं। खिचड़ी मेला केवल खेल-तमाशा या नुमाइश भर नहीं यह तो दिलों को दिलों से जोड़ने का जलसा है।
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