काशी में राजकीय सम्मान से होगा 'ठुमरी साम्राज्ञी' गिरिजा देवी का अंतिम संस्कार
'प्राचीन परंपरा की पिछली पीढ़ी की आखिरी स्तंभ थी अप्पा जी। उनके जाने से एक महाशून्य उत्पन्न हो गया। उनके पास काशी की गुरु परंपरा का विशाल भंडार था।'
वाराणसी। प्रख्यात ठुमरी गायिका और पद्म भूषण से सम्मानित गिरिजा देवी का पार्थिव शरीर आज वाराणसी पहुंचेगा जहां मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा। बनारस घराने की ठुमरी गायिका गिरिजा देवी को अंतिम कड़ी माना जा रहा है। गिरिजा देवी का मंगलवार को कोलकाता में निधन हो गया था, वो 88 साल की थी। उनका जन्म 8 मई 1929 को बनारस में हुआ था। वो हार्ट अटैक आने के बाद हॉस्पिटल में भर्ती थीं। गिरिजा देवी को 2016 में पद्म विभूषण और 1989 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उनके शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत और ठुमरी गायन को लोकप्रिय बनाने में बहुत बड़ा योगदान था। इनके अंतिम संस्कार में संगीत जगत के जाने माने लोगों के जुटने के कयास लगाए जा रहे हैं।
ऐसे याद किया इन हस्तियों ने अप्पा जी को
इस वर्ष वाराणसी के अतिप्राचीन संकट मोचन संगीत समारोह में उन्होंने अपना गायन प्रस्तुत किया था और महंत प्रो. विश्वभर नाथ मिश्र से आगे भी गाने का वादा किया था। महंत जी ने उनके निधन पर अपने शोक संवेदना में कहा कि ठुमरी गायन के एक युग का अंत हो गया।
अप्पा जी को नारी संघर्ष का प्रतीक माना जा सकता है: डॉ. राजेश्वर आचार्य
अप्पा जी के निधन पर प्रख्यात शास्त्रीय गायक डॉ. राजेश्वर आचार्य ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहां की हमारी बहन ने कोलकता में उनके निधन की सूचना दी। आचार्य ने बताया कि उनकी और अप्पा जी की आखरी मुलाकात पिछले दिनों वाराणसी के प्रमुख अखबार के पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान हुई थी। इस मुलाकात के दौरान उनके दुर्बल स्वास्थ्य को देखते हुए मैंने उन्हें अधिक प्रोग्राम ना करने की सलाह दी था। यही नहीं उन्होंने कहा की गिरिजा देवी शास्त्रीय से लेकर लोक संगीत तक की यात्रा की मात्र उम्मीद थी। इसलिए कहना पड़ेगा की प्राचीन परंपरा की पिछली पीढ़ी की आखिरी स्तंभ थी अप्पा जी। उनके जाने से एक महाशून्य उत्पन्न हो गया। उनके पास काशी की गुरु परंपरा का विशाल भंडार था। यूं कहा जाए कि शास्त्र से लेकर लोक तक की यात्रा में उनके अनुभव का आलोक पड़ा। वो आलोचक किसी की नहीं थी, समीक्षक थी। उन्हें नारी संघर्ष का प्रतीक माना जा सकता है, क्योंकि पिछली पीढ़ी में सामाजिक प्रताड़नाओं को सहते और देखते हुए वो शिखर पर पहुंची थीं। हर तरह की पीड़ा और दबाव सहते हुए रतन धरती पर पैदा होता है, उसकी ये मूर्ति रहीं। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
अप्पा जी के जाने से काशी सूनी हो गई: मालिनी अवस्थी
स्वर साधिका गिरिजा देवी के प्रमुख शिष्यों में एक पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने अपने शोक संवेदना में कहा कि अप्पा जी के जाने से काशी सूनी हो गई। मैं भाग्यशाली थी कि उनकी छत्रछाया पाई। ऐसे संगीत के साधक अब जन्म नहीं लेंगे, उनका एक एक क्षण संगीत और काशी को समर्पित रहा है। उनके आशीर्वाद में बनारस जुड़ा रहता था। उनकी सबसे बड़ी ताकत उनकी जीवंतता रही, जीवन को जीना और उसके साथ अंतिम समय तक संगीत के लिए समर्पित रहना बड़ी बात रही।
अभी डेढ़ महीने पहले मालिनी अवस्थी की मुलाकात अप्पा जी से दिल्ली में पूनम जी के घर हुई थी। मालिनी अवस्थी उनकी गंडा बंधन शिष्याओं में से हैं, जिनका कहना है कि जिस दिन उन्होंने हमें गंडा बाधा उसी दिन हमारे अंदर गंभीरता आ गई थी और अब उनके जाने के बाद हम लोगों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है।
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