सपा की 'तरकश' में वापस लौटे दारा सिंह चौहान, 15 साल बाद अखिलेश यादव की मौजूदगी में हुई घर वापसी
लखनऊ, 16 जनवरी। समाजवादी पार्टी (सपा) की तरकश में उसका तीर आखिरकार 15 साल बाद वापस लौट आया है। स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद बीजेपी को बड़ा झटका देने वाले पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान की रविवार को घर वापसी हुई। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री और सपा चीफ अखिलेश यादव की मौजूदगी में फिर से समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। जानकारी के लिए बता दें कि 2006 में सपा छोड़ मयावती की बीएसपी ज्वाइन करने वाले दारा सिंह साल 2017 में बीजेपी में शामिल हो गए थे। अब 15 साल बाद उनकी फिर से सपा में घर वापसी हुई है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान ने लखनऊ स्थित समाजवादी पार्टी कार्यालय में पार्टी की सदस्यता ली। दारा सिंह की घर वापसी कराने के लिए खुद सपा चीफ अखिलेश यादव भी कार्यक्रम में पहुंचे थे। इससे पहले स्वामी प्रसाद मौर्य समेत बीजेपी के कई विधायकों ने सपा की सदस्यता ली। दारा सिंह की वापसी पर अखिलेश यादव ने कहा, 'मैं दारा सिंह चौहान और उनके समर्थकों का स्वागत करता हूं जो बड़ी संख्या में आए हैं।' बता दें कि दारा सिंह चौहान ने कई दिनों पहले ही इस्तीफा दे दिया था जिसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी में जाने के संकेत दिए थे।
Former UP minister Dara Singh Chauhan joins Samajwadi Party in the presence of SP chief Akhilesh Yadav, in Lucknow pic.twitter.com/MMtZxdJacF
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) January 16, 2022
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स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद अब बीजेपी को दारा सिंह चौहान ने बड़ा झटका दिया था। 12 जनवरी को उन्होंने अपना इस्तीफा यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को सौंपा था। बता दें, दारा सिंह चौहान योगी सरकार में पर्यावरण एवं जंतु उद्यान मंत्री थे। स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद से ही इस बात की अटकलें तेज हो गई थीं कि दारा सिंह चौहान भी इस्तीफा दे कर सपा में शामिल हो सकते हैं। दारा सिंह चौहान मऊ जिले की मधुबन विधानसभा सीट से विधायक हैं। उन्होंने राज्यपाल को भेजी चिट्ठी में योगी सरकार पर दलितों, पिछड़ों और युवाओं की अनदेखी का आरोप लगाया है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव पूर्व आईपीएस अधिकारी असीम अरुण के भाजपा में शामिल होने पर बोले, मैं चुनाव आयोग से शिकायत करूंगा कि आसिम अरुण के साथ बीजेपी में शामिल हुए सभी अधिकारियों को हटाया जाए... मामले की जांच नहीं करने पर चुनाव आयोग पर सवाल उठेंगे, हमें विश्वास नहीं होगा कि चुनाव आयोग निष्पक्ष रूप से काम कर रहा है।