कांग्रेस में शामिल होंगे बसपा के पूर्व दिग्गज नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी, कभी थे मायावती का दाहिना हाथ
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इलाहाबाद। बहुजन समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता रहे और बसपा में मायावती के राइट हैंड कहे जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने अपने नए घर की तलाश कर ली है। वह अब कांग्रेस का हाथ थाम लेंगे और अपनी नई राजनीतिक पारी का आगाज करेंगे। नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पिछले 10 मई को मायावती ने पैसे के लेनदेन में गड़बड़ी और लोकसभा चुनाव में हार का आरोप लगाकर उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया था। जिसके बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी खुलकर मायावती के विरोध में आ गए थे और कई वायस रिकार्डिंग को वायरल कर मायावती की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। अपने लंबे सुरक्षित भविष्य का ठिकाना ना देखकर नसीमुद्दीन ने कांग्रेस की ओर अपने कदम बढ़ाए और अब यह तय हो गया है कि गुरुवार को नसीमुद्दीन सिद्दीकी अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस का दामन थाम लेंगे।
जमकर हुआ था हंगामा
बसपा के प्रथम पंक्ति के नेताओं में शामिल नसीमुद्दीन सिद्दीकी का कद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखने लायक होता था। नसीमुद्दीन ही बसपा की सारी गुणा-गणित और रणनीति को तय किया करते थे। विधानसभा चुनाव के दौरान वेस्ट यूपी की सिवालखास और गाजियाबाद सीट के प्रत्याशियों की सदस्यता शुल्क को लेकर मामला गर्माया था और मायावती के साथ उनकी खींचतान शुरू हो गई थी। अधिक संख्या में मुस्लिमों को टिकट देने पर भी नसीमुद्दीन घिर गये और इसी दौरान सिद्दीकी ने मायावती और खुद के बीच हुई बातचीत का वीडियो ऑडियो वायरल कर दिया और जमकर हंगामा मच गया। जिसके बाद सिद्दीकी को बाहर का रास्ता देखना पड़ा।
मुस्लिम वोटों को बटोरने में सक्षम
नसीमुद्दीन सिद्दीकी का कद बसपा में मुस्लिम वोटरों को एकत्रित करने के लिए बड़ा माना जाता था। अब वही काम वह कांग्रेस के लिए करेंगे। कांग्रेस नसीमुद्दीन के लिए रास्ता इसीलिए खोल रही है ताकि वह आगे आने वाले लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं को कांग्रेस की ओर ले आ सके। नसीमुद्दीन सिद्दीकी के साथ कई पूर्व विधायक और बड़े नेता भी शामिल होंगे। जिससे कांग्रेस को फायदा मिलेगा।
तीन दशक और बढ़ता गया कद
नसीमुद्दीन सिद्दीकी के राजनीतिक करियर और उनके कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह बहुजन समाज पार्टी में लगभग तीन दशक तक सक्रिय रहे। वह बसपा की रीड की हड्डी बने रहे और बसपा की दिशा और दशा तय करते रहे। 1991 में बसपा के टिकट पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी बांदा से पहली बार विधायक बने थे। फिर 1995 में जब मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनी तो नसीमुद्दीन सिद्दीकी मंडी परिषद के अध्यक्ष बना दिए गए थे। इसी क्रम में 1997 में नसीमुद्दीन सिद्दीकी पहली बार मंत्री बने और यह क्रम 2002 और 2007 की मायावती सरकार में बना रहा। 2012 में बसपा विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनने के साथ इनकी संगठन में तूती बोलने लगी। 2014 में लोकसभा चुनाव में नसीमुद्दीन ने अपने बड़े बेटे अफजल को बसपा का टिकट दिया लेकिन वह हार गए। बीते विधानसभा चुनाव में अपने कद का इस्तेमाल कर नसीमुद्दीन ने सर्वाधिक मुसलमानों को टिकट दिया, लेकिन पार्टी बुरी तरह से हारी। इससे नसीमुद्दीन हाशिए पर चले गए और आखिरकार उन्हें पार्टी से बाहर जाना पड़ा।
खुला है भाजपा का भी रास्ता
पिछले दिनों नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने भाजपा के प्रति अपने सुर बदल दिए हैं। कई ऐसे मौके आए जब उनसे भाजपा को लेकर सवाल किया गया वह हमला करने से बचते रहे और स्वाति सिंह पर भी उन्होंने राजनीति में घुमावदार बयान देकर यह साफ कर दिया कि वह भाजपा में भी जाने की तरकीब ढूंढ रहे हैं। राजनीति यही कहती है कि नसीमुद्दीन उसी दल में जाना चाहते हैं जो सीधे सीधे बसपा का को टक्कर दे सके।
गुजरात चुनाव के दौरान तय हुई थी दिशा
गुजरात में जब विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही थी उसी दौरान 28 दिसंबर को राहुल गांधी से नसीमुद्दीन सिद्दीकी की मुलाकात हुई थी। उस वक्त राहुल गांधी और नसीमुद्दीन सिद्दीकी का मिलन यह साफ कर गया था कि आने वाले समय में कांग्रेस की ओर से नसीमुद्दीन के लिए दरवाजे खोले जाएंगे। कुछ दिन बाद जब विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस के दिग्गज नेता राज बब्बर नसीमुद्दीन ने उन्हे पार्टी में लाने की कवायद शुरू की और उस पर अब अंतिम फैसला आ गया है। नसीमुद्दीन सिद्दीकी 3 पूर्व मंत्री 4 पूर्व सांसद लगभग 3 दर्जन पूर्व विधायक और कई चुनाव लड़ चुके नेताओं के साथ कांग्रेस में कल आएंगे।
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