Dussehera 2017: रावण के वंशजों के डर से आज भी नहीं मनाया जाता इस नगरी में दशहरा
हरदोई। आज पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की विजय का त्यौहार दशहरा हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। इस मौके पर रावण दहन अलग-अलग जगहों में अलग अलग तरीकों से किया जाता है। लेकिन विविध परंपराओं और अनेकों भाषाओं वाले हमारे देश में एक जिला ऐसा भी है, जहां पर आज तक दशहरे के मौके पर रावण दहन नहीं किया गया।
यह जिला उस वक़्त अस्तित्व में आया जब यहां भगवान का विरोध हुआ और एक भक्त की प्रार्थना सुन कर ईश्वर को अवतार लेना पड़ा और फिर एक राक्षस का नरसंहार करना पड़ा। जी हां हम बात कर रहे हैं हिरण्यकश्यप की नगरी हरदोई की। जिसे पहले हरिद्रोही के नाम से जाना जाता था, लेकिन उस काल से इस काल तक आते-आते हरिद्रोही हरदोई जिले में परिवर्तित हो गया। लेकिन शायद इस जिले के नाम में ही बदलाव हुआ यहां के कामों में आज भी राक्षसी प्रवत्ति दिखाई पड़ती है और उसका जीता जागता सुबूत इस बात से मिलता है। क्योंकि ईश्वर को मानने वाले यहां के स्थानीय लोगों ने आज भी रावण को दहन न करने की परंपरा को अपना रखा है।
तस्वीरों में नज़र आ रहा ये स्थल श्रवण देवी स्थल के नाम से जाना जाता है जहां प्रह्लाद कुंड भी स्थित है। इगर इसके इतिहास की बात करें तो जिले का पहले नाम हरिद्रोही था। हरि-द्रोही अर्थात जो भगवान से द्रोह करता हो। कहते हैं कि हिरण्यकश्यप ने अपने नगर का नाम हरि-द्रोही रखवा दिया था। उसके पुत्र ने विद्रोह किया। पुत्र को दण्ड देने के लिए हिरण्यकश्यप बहन होलिका अपने भतीजे को ले कर अग्नि में प्रवेश कर गई। लेकिन भगवान की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बाँका ना हुआ और होलिका जल मरी। कहा जाता है कि जिस कुण्ड में होलिका जली थी, वो आज भी श्रवणदेवी नामक स्थल पर हरदोई में स्थित है।
सदियों से चले आ रहे दशहरे पर्व पर रावण का दहन कार्यक्रम में हरदोई के लोग हिस्सा नहीं लेते हैं। लिहाज़ा हरदोई में आज तक दशहरे के पर्व पर रावण दहन नहीं किया गया और न ही इस मौके पर राम लीला का आयोजन होता है। श्रवण देवी मंदिर के पुजारी राम विलास तिवारी का कहना है कि हरदोई जनपद में भगवान विष्णु ने दो बार अवतार लिया। पहला अवतार ब्राह्मण रूप में राजा बलि से 3 पग भूमि मांगने के लिए हुआ तो दूसरा अवतार हुआ हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए और रावण भगवान का द्रोही था इसलिए हरदोई में रावण वध नहीं होता।
हालांकि हरदोई के रहने वाले लोग ईश्वर में आस्था रखते हैं। भगवान को ही पूजते हैं और धर्म की विजय, अधर्म के नाश की प्रार्थना करते हैं। लेकिन पुरानी परम्पराओं के चलते आज भी उन्हीं रस्मो को निभाया जा रहा है। जो पूर्व से चली आ रही है। बाबा मंदिर के पुजारी देव प्रकाश मिश्र का कहना है कि हरिद्रोही होने की वजह से "र" शब्द से यहां लोगो की दूरी रही। अल्फ़ाज़ों में र लफ्ज़ का इस्तेमाल तक नहीं किया जाता था। इसके अलावा रावण, हिरण्यकश्यप के ही वंशज रहे हैं, जिनके भय से शुरू से ही रावण का दहन नहीं किया गया। और आज भी यही परंपरा चली आ रही है।
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