यूपी: ऐसा मंदिर जिसकी बनावट है मस्जिद जैसी, औरंगजेब ने कटवा दिए थे मूर्तियों के सिर
प्रतापगढ़। उत्तर प्रदेश में यू तो कई प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है, लेकिन प्रतापगढ़ के गोंडे गांव में बने 900 साल पुराने अष्टभुजा धाम मंदिर दीवारों, नक्काशियां व विभिन्न प्रकार की आकृतियों के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि अष्टभुजा धाम मंदिर की मूर्तियों के सिर औरंगजेब ने कटवा दिए थे। शीर्ष खंडित ये मूर्तियां आज भी उसी स्थिति में इस मंदिर में संरक्षित की गई हैं।
11वीं सदी का है ये मंदिर
गजेटियर के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी क्षत्रिय घराने के राजा ने करवाया था। मंदिर की दीवारों, नक्काशियां व विभिन्न प्रकार की आकृतियों को देखने के बाद इतिहासकार व पुरातत्वविद इसे 11वीं शताब्दी का बना हुआ मानते हैं। मंदिर के गेट पर बनीं आकृतियां मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध खजुराहो मंदिर से काफी मिलती-जुलती हैं। इस मंदिर में आठ हाथों वाली अष्टभुजा देवी की मूर्ति है। गांव वाले बताते हैं कि पहले इस मंदिर में अष्टभुजा देवी की अष्टधातु की प्राचीन मूर्ति थी। 15 साल पहले वह चोरी हो गई। इसके बाद सामूहिक सहयोग से ग्रामीणों ने यहां अष्टभुजा देवी की पत्थर की मूर्ति स्थापित करवाई।
औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ने का दिया था आदेश
लोगों की मानें को मंदिर को तोड़ने का आदेश मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1699 ई. दिया था। उस समय इसे बचाने के लिए यहां के पुजारी ने मंदिर का मुख्य द्वार मस्जिद के आकार में बनवा दिया था, जिससे भ्रम पैदा हो और यह मंदिर टूटने से बच जाए। मुगल सेना इसके सामने से लगभग पूरी निकल गई थी, लेकिन एक सेनापति की नजर मंदिर में टंगे घंटे पर पड़ गई। उसने सेना को मंदिर के अंदर जाने के लिए कहा और यहां स्थापित सभी मूर्तियों के सिर काट दिए गए। आज भी इस मंदिर की मूर्तियां वैसी ही हाल में देखने को मिलती हैं।
कोई नही पढ़ सका मंदिर में लिखा रहस्य
इस मंदिर के मेन गेट पर एक विशेष भाषा में कुछ लिखा है। यह कौन-सी भाषा है, यह समझने में कई पुरातत्वविद और इतिहासकार फेल हो चुके हैं। कुछ इतिहासकार इसे ब्राह्मी लिपि का बताते हैं तो कुछ उससे भी पुरानी भाषा का, लेकिन यहां क्या लिखा है, यह अब तक कोई नहीं समझ सका। मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मंदिर की दीवारों में की गई नक्काशियां सिन्धु घाटी सभ्यता में मिली पत्थर की मूर्तियों व नक्काशियों से बिलकुल मिलती है। 2007 में दिल्ली से आये कुछ पुरातत्वविदों ने इसे 11वीं शताब्दी का मंदिर बताया था। मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि मंदिर में मुख्य मार्ग के बाद प्रांगण में मां का मंदिर व मूर्ति स्थापित है। इतिहास में दर्ज उल्लेखों के अनुसार ऐसे मंदिर सिन्धु घाटी सभ्यता में होते थे।
क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी?
मंदिर के पुजारी रामसजीवन गिरि ने बताया कि इस मंदिर की प्राचीनता का अंदाजा लगा पाना काफी मुश्किल है। इतिहास में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा से इस मंदिर की हालत बेहद दयनीय हो गई है। इसके जीर्णोद्धार में ग्रामीण काफी मदद करते हैं, लेकिन इस ऐतहासिक धरोहर को बचने के लिए प्रशासनिक मदद बहुत जरूरी है।