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विशेषज्ञों ने माना नोटबंदी का राजनीतिक दलों पर नहीं पड़ा असर

विशेषज्ञों ने माना नोटबंदी का राजनीतिक दलों की फंडिंग पर नहीं पड़ा कोई असर, राजनीतिक दल ताकत और पैसे के दम पर कुछ भी करने में सक्षम।

By Ankur
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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपए के नोट पर पाबंदी लगा दी थी और माना जा रहा था कि इस नोटबंदी का असर प्रदेश के पांच राज्यों में होने वाले चुनावों पर भी पड़ेगा। लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का कहना है कि अधिकारियों और नेताओं के बीच संबंधों के चलते इसका कोई असर नहीं होगा। कुरैशी ने एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि राजनीतिक दल इस बात पर राजी नहीं हो सकती हैं कि उन्हें निश्चित सीमा के भीतर ही पैसा खर्च करने दिया जाए।

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प्राइवेट फंडिग बंद होनी चाहिए
कुरैशी ने कहा कि राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार के लिए राज्य से पैसा मिलना चाहिए, यह पैसा पार्टी के प्रदर्शन के आधार पर होना चाहिए ना कि चुनाव के लिए होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे में सीएजी राजनीतिक दलों के खर्च का भी ऑडिट कर सकता है, पार्टियों पर प्राइवेट फंडिंग पर पूरी तरह से पाबंदी लगा देनी चाहिए। राजनीतिक पार्टियां अपने खिलाफ किसी भी तरह का कानून पास नहीं होने देती है, आजतक जो भी चुनाव सुधार हुए हैं वह सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से हुए हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति में सुधार सिविल सोसाइटी और मीडिया के सहयोग से मुमकिन है, इसके साथ ही राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र भी होना चाहिए।

पार्टियों पर भी निकासी सीमा तय हो
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रम्हा ने कहा कि नोटबंदी का पार्टियों की फंडिंग पर कोई असर नहीं हुआ है, पार्टियां कितना भी पैसा कितना भी पैसा जमा कर सकती हैं और उनपर किसी भी तरह के खर्च पर पाबंदी नहीं है, इस लिहाज से राजनीतिक दलों के लिए कालाधन सफेद करना काफी आसाना है। ब्रह्मा ने कहा कि पार्टियों के लिए एक निश्चित सीमा होनी चाहिए कि वह इतना ही पैसा निकाल सकते हैं, जैसे तमाम लोगों के लिए नोटबंदी के दौरान 2000 रुपए की सीमा तय की गई थी। राजनीतिक दल जिन उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं उनके व्यवहार के लिए पार्टियों को ही जिम्मेदार ठहराना चाहिए।

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ताकत और पैसे के दम पर चुनाव होता है दूषित
जस्टिस जीसी भरूका ने कहा कि राजनीतिक दल दो तरह से चुनाव प्रक्रिया को दूषित करते हैं, पहला अपनी ताकत और दूसरा पैसे से। उन्होंने कहा कि आयकर विभाग की धारा 13 ए जिसमें राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपए तक के चंदे पर किसी भी तरह का ब्योरा नहीं देना होता है, उसमें बदलाव की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस चंदे का पार्टियों को हिसाब नहीं देना होता है लेकिन उन्हें बैलेंस शीट पर इसकी जानकारी देनी होती है। चुनाव आयोग और आयकर विभाग के बीच समन्वय की कमी के चलते पार्टियां इस धारा का दुरउपयोग करती हैं।

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English summary
Justice GC Bharuka said that election process is contaminated by two means, muscle power and money power.
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