फौजी ने किया सुकमा जाने से मना, CRPF को कोर्ट में घसीटा
ट्रांसफर पॉलिसी के तहत एक स्थान पर कम से कम तीन साल की तैनाती के बाद ही तबादला किया जाना चाहिए।
इलाहाबाद। नक्सलियों के गढ़ छत्तीसगढ़ के सुकमा में सीआरपीएफ पर बार-बार हमला और बढ़ती शहीदों की संख्या चिंता का विषय है। क्योंकि सुकमा में फौजी अधिकारी जाने को ही तैयार नहीं है। नया मामला हैं एक सीआरपीएफ कमांडेंट का, जिन्होंने खुद को सुकमा भेजे जाने पर अपत्ति व्यक्त की। लेकिन जब सीआरपीएफ के अधिकारियों ने कमांडेंट की बात नहीं सुनी तो कमांडेंट ने फोर्स के इस फैसले को हाईकोर्ट में चैलेंज कर दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए कमांडेंट का ट्रांसफर रोक दिया है। मामले में न्यायालय ने भारत सरकार से याचिका पर 6 हफ्ते में जवाब मांगा है।
क्या है मामला?
यूं तो फौजियों की बहादुरी की मिसाल दी जाती है और आए दिन फौजियों के साहसिक कारनामों पर देश गर्व महसूस करता है। लेकिन सीआरपीएफ 148 बटालियन, साहूपुरी चंदौली में तैनात कमांडेंट वेदप्रकाश त्रिपाठी का ट्रांसफर सुकमा होने पर उन्होंने पोस्टिंग पर जाने से इंकार कर दिया है। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपने ट्रांसफर के खिलाफ याचिका दायर की और दलील दी कि इससे पहले वो चरारे शरीफ, बड़गाम, कश्मीर घाटी से चंदौली ट्रांसफर होकर डेढ़ साल पहले ही आए हैं। लेकिन 20 मई 2017 को उनका सुकमा तबादला कर दिया गया। जबकि ट्रांसफर पॉलिसी के तहत एक स्थान पर कम से कम तीन साल की तैनाती के बाद ही तबादला किया जाना चाहिए।
ट्रांसफर पर रोक
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति एसके अग्रवाल की खंडपीठ ने शुरू की तो वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल भूषण और भारत सरकार के अपर सॉलिसिटर जनरल अशोक मेहता व सीनियर पैनल अधिवक्ता एसके राय ने अपनी दलीले दी। कोर्ट में ये बात स्पष्ट हुई कि सीआरपीएफ निदेशालय से 24 नवंबर 2014 को तबादला नीति जारी हुई है। कोर्ट ने पाया कि तबादला आदेश में कोई कारण स्पष्ट नहीं किया गया है। जिसके तहत कमांडेंट वेदप्रकाश त्रिपाठी के ट्रांसफर पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी और भारत सरकार से याचिका पर 6 हफ्ते में जवाब मांगा है।