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UP में कई बार असफल हुई गठबंधन की राजनीति, जानिए क्या कहता है पांच दशकों का रिकॉर्ड

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लखनऊ, 06 दिसंबर: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मियों के बढ़ने के साथ-साथ राजनीतिक गठजोड़ और सियासी समीकरण भी सेट किए जाने लगे हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मुकाबला करने के लिए छोटे दलों को अपने साथ जोड़ते हुए एक बड़ा गठबंधन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अखिलेश के साथ खड़े होने वाले जयंत चौधरी, ओम प्रकाश राजभर सहित कई नेता गठबंधन की राजनीति के पक्ष में बोल रहे हैं, तो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने गठबंधन कर चुनाव लड़ने की संभावनाओं को सिरे से ही खारिज कर दिया है। यूपी के राजनीतिक इतिहास पर यदि नजर डालें तो पता चलता है कि बीते पांच दशक में उत्तर प्रदेश में कई गठबंधन हुए, कुछ चुनाव पूर्व तो कुछ चुनाव बाद, पर इनमें से कोई भी प्रयोग टिकाऊ नहीं रहा है। दूसरे राज्यों के विपरीत उत्तर प्रदेश को गठबंधनों की राजनीति कभी रास नहीं आई।

चौधरी चरण सिंह ने किया था 1967 में पहला प्रयोग

चौधरी चरण सिंह ने किया था 1967 में पहला प्रयोग

यूपी में गठबंधन की राजनीति के इतिहास को देखे तो पता चलता है कि चौधरी चरण सिंह ने पहली बार वर्ष 1967 में अलग-अलग दलों को साथ लेकर सरकार बनाने का प्रयोग किया था। तब चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल (लोकदल) बनाया और सरकार बनाई। उस सरकार में कम्युनिस्ट पार्टी और जनसंघ भी शामिल हुआ। पर, यह सरकार एक साल भी नहीं चली। चरण सिंह के बाद 1970 में कांग्रेस से अलग हुए विधायकों ने त्रिभुवन नारायण सिंह (टीएन सिंह) के नेतृत्व में साझा सरकार बनाने का प्रयोग किया। इसमें कई अन्य दलों के साथ जनसंघ भी शामिल था, पर यह सरकार छह महीने भी नहीं चली।

इंदिरा गांधी की नीतियों के खिलाफ भी एकजुट हुए थे कई दल

इंदिरा गांधी की नीतियों के खिलाफ भी एकजुट हुए थे कई दल

वर्ष 1977 में आपातकाल लगाने से नाराज राजनीतिक दलों ने 1977 में जनता पार्टी के नाम से फिर एक गठबंधन तैयार किया। फिर बाद में जनसंघ तक की आम सहमति से जनता पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा गया। सूबे में रामनरेश यादव के मुख्यमंत्रित्व में जनता पार्टी की सरकार बनी, पर अलग-अलग विचारधारा के नेताओं की इंदिरा की नीतियों के विरुद्ध बनी एकजुटता कुछ ही दिन में बिखर गई। वर्ष 1989 में देश व प्रदेश में फिर गठबंधन राजनीति का प्रयोग किया गया।

गेस्ट हाउस कांड से सपा-बसपा गठबंधन बिखरा

गेस्ट हाउस कांड से सपा-बसपा गठबंधन बिखरा

कांग्रेस के विरोधी दलों ने देश से लेकर प्रदेश तक जनमोर्चा फिर जनता दल के नाम से गठबंधन बनाया। यूपी में मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में 5 दिसंबर 1989 को जनता दल की सरकार बनी, पर यह भी पांच साल नहीं चली। राम मंदिर आंदोलन के चलते टकराव से पहले भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह ने कांग्रेस की मदद से अपनी सरकार बचाई लेकिन यह दोस्ती भी ज्यादा नहीं चली। इसके बाद सपा-बसपा ने चुनाव पूर्व गठबंधन कर चुनाव लड़ा और सरकार बना ली। मुलायम सिंह यादव फिर सीएम बन गये पर गेस्ट हाऊस कांड के चलते बसपा के सपा से नाता टूट गया। मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं, पर यह भी भाजपा व बसपा के बीच टकराव के चलते टिकाऊ नहीं रह पाई।

जब मायावती- भाजपा के बीच हुआ 6-6 महीने का समझौता

जब मायावती- भाजपा के बीच हुआ 6-6 महीने का समझौता

वर्ष 1996 में हुए विधानसभा चुनावों में किसी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिला। ऐसे में भाजपा व बसपा के बीच हुए समझौते के तहत छह-छह महीने के मुख्यमंत्री पर सहमति बनी। पहली बार देश में इस तरह का पहला प्रयोग हुआ, मायावती दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। सरकार में भाजपा भी शामिल हुई, पर छह महीने बाद मायावती ने कल्याण सिंह को सत्ता सौंपने से इंकार कर दिया। वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनावों में किसी दल को बहुमत नहीं मिला। तब भाजपा के सहयोग से मायावती तीसरी बार सीएम बनी। लगभग डेढ़ साल बीतते-बीतते भाजपा व बसपा के बीच मतभेद इतने बढ़ गए। मायावती ने तत्कालीन राज्यपाल से सरकार बर्खास्तगी की सिफारिश कर दी। भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। कई नाटकीय घटनाक्रम हुए और भाजपा के समर्थकों और बसपा के लोगों को तोड़कर मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी।

लगातार असफलता के बाद भी प्रयोग कर रहे अखिलेश

लगातार असफलता के बाद भी प्रयोग कर रहे अखिलेश

वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनावों ने प्रदेश की जनता ने बसपा को पूर्ण बहुमत देकर गठबंधन की राजनीति को समर्थन न देने का संदेश दिया। इसके बाद वर्ष 2012 और वर्ष 2017 में भी जनता ने यही संदेश दिया। अब आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर सपा मुखिया अखिलेश यादव भाजपा से मुकाबला करने के लिए छोटे दलों को अपने साथ जोड़ते हुए एक बड़ा गठबंधन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि यूपी जैसे बड़े राज्य में गठबंधन की राजनीति की संभावना को बिल्कुल सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। इसके सहारे सत्ता पायी जा सकती है। हालांकि बीते लोकसभा चुनावों में उनका यह प्रयास सफल नहीं हुआ था। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनावों में गठबंधन राजनीति के सफल होने की राह आसान नहीं दिखती है।

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English summary
Coalition politics failed many times in uttar pradesh
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