ब्रजेश के बसपा से बीजेपी में आने के बाद क्या है माया की नई रणनीति?
लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी का ब्राह्मण चेहरा, पूर्व लोकसभा सांसद और मायावती के विश्वस्त सिपहसालार ब्रजेश पाठक के भारतीय जनता पार्टी में जाने के बाद उत्तर प्रदेश के चुनावी घमासान में एक और ट्विस्ट आया है।
इसे एक तरफ तो ब्राह्मण वोटों को बटोरने की भाजपाई गणित के सफलता के तौर पर आंका जा रहा है, दूसरी तरफ इस बार के यूपी इलेक्शन में बसपा की रणनीति अब क्या होगी, इस पर भी कयास लगाए जा रहे हैं।
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बसपा का नया चुनावी गणित
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि ब्रजेश पाठक का बसपा से निकलना इस बात का संकेत है कि इस बार के चुनाव में मायावती दलित और मुस्लिम वोटों के गणित पर ज्यादा ध्यान देंगी। अब तक के चुनावों में दलित, मुस्लिम, यादव ओबीसी और ऊंची जातियों के वोटों को जोड़ने की रणनीति बसपा अपनाती रही है।
बसपा टिकट के मामले में मुस्लिमों पर मेहरबान
इस बार के चुनाव में मायावती ने 187 टिकट मुस्लिम कैंडिडेट्स को दिए हैं जिससे संकेत मिलता है कि इस बार के चुनाव में मुख्य रूप से दलित और मुस्लिम वोटों को बसपा टारगेट करेगी।
2007 के चुनाव में बसपा ने 139 सीटों पर ऊंची जातियों के कैंडिडेट्स को खड़ा किया था। उस चुनाव में बसपा ने 206 सीटों पर जीत और 30 प्रतिशत वोट हासिल किया था।
इसी तरह 2012 के यूपी इलेक्शन में भी बसपा ने 117 टिकट ऊंची जातियों के कैंडिडेट्स को बांटे थे। लेकिन 2017 के चुनाव में बसपा ने ज्यादा सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट्स को खड़ा किया है।
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गौरक्षकों के दलितों पर हमले को भुनाएगी बसपा
पार्टी की तरफ दलित वोटों के ध्रुवीकरण होने की बात बसपा नेता करते हैं। उनका मानना है कि दलितों पर हुए गौरक्षकों के हमलों ने बसपा के पक्ष में दलित वोटों के ध्रुवीकरण का माहौल तैयार कर दिया है। इस चुनाव में दलित वोटों को पक्ष में करने के लिए बसपा इस मामले को भुनाएगी।
बसपा का वोटबैंक तोड़ने में जुटी है भाजपा
हालांकि भाजपा यूपी इलेक्शन में समाजवादी पार्टी को अपना मुख्य प्रतिद्वंदी बताती रही है लेकिन वह बसपा को कम मानकर नहीं चल रही है। वह बसपा के वोटबैंक का आधार छीनने में लगी है।
इसी कड़ी में बसपा के ब्राह्मण चेहरा रहे ब्रजेश पाठक को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में पार्टी में शामिल किया गया। पार्टी को उम्मीद है कि पाठक के आने से ब्राह्मण वोटों का फायदा मिलेगा।
ब्रजेश पाठक से पहले भाजपा में आए बसपा के धुरंधर
ब्रजेश पाठक से पहले बसपा के दिग्गज नेता और यूपी में ओबीसी का बड़ा चेहरा माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या भाजपा में शामिल हुए। इसके बाद पासी समुदाय के बड़े नेता आर के चौधरी ने भी बसपा को छोड़ भाजपा का दामन थामा।
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बसपा के पक्ष में अतीत में कितने मुस्लिम वोट
सीएसडीएस की रिपोर्ट के अुसार 2007 के यूपी चुनाव में बसपा के पक्ष में 17 प्रतिशत मुस्लिम वोट पड़े थे जब 2012 में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत का रहा। जबकि समाजवादी पार्टी को 2007 के चुनाव में 45 प्रतिशत मुस्लिमों ने वोट दिया और 2012 के चुनाव में यह प्रतिशत घटकर 39 प्रतिशत रह गया।
फिर से दलित, मुस्लिम की तरफ बढ़ती बसपा
मायावती को 2007 के चुनाव में अहसास हो गया था कि दलित वोट उनसे दूर जा रहा है इसलिए उन्होंने उस समय ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़ने की रणनीति पर काम किया था और नारा दिया था कि ,'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा'। लेकिन 2017 के चुनाव में अपने वोटबैंक को टूटने से बचाने लगीं मायावती को भाजपा से कड़ी टक्कर मिल रही है क्योंकि ऊंची जातियों का सपोर्ट कमल को मिलता रहा है।
अब मायावती के हाथ से अगर ब्राह्मण और ओबीसी वोटबैंक फिसल रहे हैं तो दलितों और मुस्लिमों को जोड़ने के लिए वह सारा दम खम लगा सकती हैं।
दलितों के उत्थान की विचारधारा को लेकर ही बहुजन समाज पार्टी खड़ी हुई थी इसलिए वह तो उसका मुख्य आधार है ही, साथ ही मुस्लिमों को ज्यादा टिकट देकर मायावती मुस्लिम वोटबैंक को जोड़ने का दांव भी चल दिया है।