मुस्लिम और दलित बाहुल्य सीटों ने बदली उत्तर प्रदेश में भाजपा की किस्मत!
उत्तर प्रदेश में 59 सीटों पर मुसलमान वोटर निर्णायक माने जाते हैं, जबकि 85 सुरक्षित सीटों पर दलित। इन सभी सीटों पर भाजपा कमजोर मानी जाती थी लेकिन इस बार नतीजे कुछ अलग हैं।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ना सिर्फ राजनीतिक विश्लेषक और एग्जिट पोल के दावे धरे के धरे रह गए है। यहां तक कि भाजपा के नेता भी ये मान रहे हैं कि इतनी बड़ी जीत की उम्मीद तो किसी को भी नहीं थी। भाजपा ने अपने सहयोगियों के साथ 403 में से 325 सीटें जीती हैं। शहरी सीटों पर भाजपा मजबूत मानी जाती रही है लेकिन ग्रामीण सीटों पर भी इस बार भाजपा का झंडा लहराया है। इन सबके बीच सबसे ज्यादा चौंकाने वाले नतीजें उन सीटों के हैं, जिन पर मुसलमान और दलित वोट निर्णायक भूमिका में हैं जिन्हें परंपरागत तौर पर भाजपा का वोटर नहीं माना जाता है।
मुस्लिम
बहुल
सीटों
पर
दोगुना
हो
गया
भाजपा
का
वोट
प्रतिशत
पश्चिम
यूपी
की
ज्यादातर
सीटों
समते
प्रदेश
की
59
सीटों
पर
मुसलमान
वोट
निर्णायक
हैं।
इन
सीटों
पर
जिस
पार्टी
की
तरफ
मुसलमान
वोट
बड़ी
संख्या
में
चले
जाते
हैं
उसकी
जीत
सुनिश्चित
मानी
जाती
है।
इनमें
मेरठ,
सहारनपुर,
बिजनौर,
मुजफ्फरनगर,
संभल,
मुरादाबाद,
संभल,
रामपुर,
आजमगढ़,
मऊ
में
ज्यादातर
सीटों
पर
मुसलमान
निर्णायक
हैं।
इन
सीटों
पर
अमूमन
भाजपा
की
हालत
अच्छी
नहीं
रहती
है।
इसकी
वजह
भाजपा
की
राम
मंदिर,
उग्र
हिन्दुत्व
और
मुसलमानों
से
दूरी
बनाकर
रखने
की
राजनीति
को
माना
जाता
रहा
है।
माना जाता है कि मुसलमान अमूमन भाजपा को हराने वाली पार्टी को वोट करते हैं। 2012 के विधानसभा की बात करें तो मुस्लिम बहुल 59 सीटों पर भाजपा को 22.1 फीसदी वोट और 14 सीटें मिली थीं। वहीं सपा को 25.7 फीसदी वोट के साथ सबसे ज्यादा 28 सीटें मिली थीं। 22.3 प्रतिशत वोट के साथ 10 सीटें बसपा को मिली जबकि 11.8 फीसदी वोट के साथ कांग्रेस को 3 सीट मिलीं। अन्य को 4 सीटें मिलीं। वहीं 2017 में आंकड़े बिल्कुल पलट गए हैं।
2017 के जो नतीजें आए हैं, उनमें मुस्लिम बहुल 59 सीटों पर भाजपा को 39.1 फीसदी वोट मिले हैं। भाजपा को 59 में से 39 सीट हासिल हुई हैं। वहीं इस बार सपा को 28.7 फीसदी वोट मिले हैं जबकि सपा की सीटों की संख्या 17 रह गई है। इसके अलावा कांग्रेस को तीन सीटें इस बार मिली हैं। ऐसे में देखा जाए तो इन 59 सीटों पर भाजपा तीन गुना (14 से 39) पर आ गई है।
2013 में दंगा झेलने वाले मुजफ्फरनगर और इसके पड़ोसी जिले मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, शामली, बागपत में भाजपा ने करीब-करीब क्लीन स्वीप किया है। इसे मुस्लिमों का भाजपा की तरफ झुकाव कहा जा रहा है तो वहीं जिस तरह से सपा का भी वोट प्रतिशत बढ़ा है उससे इन इलाकों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी इसकी वजह माना जा रहा है।
सुरक्षित
सीटों
पर
भाजपा
का
परचम
उत्तर
प्रदेश
में
85
सीटें
अनुसूचित
जाति
(एससी)
के
लिए
रिजर्व
हैं।
इन
सीटों
पर
दलित
निर्णायक
हैं
और
दलितों
को
बसपा
का
वोटबैंक
माना
जाता
रहा
है।
दलित
सीटों
पर
भी
भाजपा
को
कमजोर
माना
जाता
है,
लेकिन
इस
बार
भाजपा
ने
इन
सीटों
पर
कमाल
का
प्रदर्शन
किया
है।
85
सुरक्षित
सीटों
पर
2012
में
सपा
ने
31.5
फीसदी
वोट
लेकर
58
और
बसपा
ने
27.5
प्रतिशत
वोटों
के
साथ
15
सीटें
जीती
थीं।
भाजपा
को
14.4
फीसदी
वोट
के
साथ
महज
3
सीटें
मिली
थीं।
कांग्रेस
सुरक्षित
सीटों
में
से
4
सीट
मिली
थीं।
इस
बार
नतीजें
बिल्कुल
उलट
गए
हैं।
85
सुरक्षित
सीटों
पर
2017
के
नतीजों
में
इस
दफा
69
सीटें
भाजपा
ने
जीती
हैं,
पार्टी
को
39.8
प्रतिशत
वोट
मिले
हैं।
वहीं
सपा
को
19.3
फीसदी
वोट
और
7
सीट
मिली
हैं
जबकि
बसपा
को
इस
दफा
सिर्फ
2
सीटें
मिली
हैं।
दलित
और
मुस्लिम
सीटों
के
नतीजों
ने
सभी
को
चौंकाया
है।
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