कानपुर नगर निगम में भाजपा पहली बैठक में ही राष्ट्रीय गीत को भूली!
कानपुर। उत्तर प्रदेश में मेरठ के बाद कानपुर नगर निगम में भी राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम का विवाद गूंजा लेकिन इस बार वजह कुछ और रही। मेरठ में कुछ गैर भाजपा पार्षद राष्ट्रगीत को गाने के पक्ष में नहीं थे तो इसके उलट कानपुर नगर निगम की सदन की पहली बैठक राष्ट्रीय गीत को ही भूल गयी। सदन की कार्रवाई कुछ देर चलने के बाद पार्षदों के हंगामे पर वन्दे मातरम का गायन कराया गया।
वंदे मातरम का गान कराना भूली
उत्तर प्रदेश के सभी नगर निगमों की तरह कानपुर नगर निगम में भी परम्परा है कि सदन की शुरुआत वन्दे मातरम गान के साथ होती है। जिन्हें राष्ट्रीय गीत अच्छी तरह याद न हो, उनकी सहूलियत के लिये सदन की सभी चार दीवारों पर बड़े-बड़े अक्षरों में राष्ट्रीय गीत लिखे बोर्ड लगाये गये हैं। प्रचंड बहुमत से नगर निगम पर काबिज हुई भाजपा सदन की प्रथम बैठक में वन्दे मातरम का गान कराना भूल गयी। दरअसल यह चूक राजनैतिक कारणों से हुई।
चर्चा छोड़कर हुआ राष्ट्रीय गीत
मंगलवार को पहली बैठक में नगर निगम की एक्जीक्यूटिव कमेटी का चुनाव होना था। 12 सदस्यों वाली कमिटी में भाजपा की कोशिश तीन-चौथाई सीटों पर कब्जा जमाने की थी। इसी हड़बड़ में सदन शुरू होते ही चुनावी जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू हो गयी और वन्दे मातरम गायन की परम्परा पीछे छूट गयी। बाद में भाजपा, कांग्रेस और यहां तक कि कुछ मुस्लिम पार्षदों ने हंगामा किया तो कार्यकारिणी के चुनावी चर्चा रोककर राष्ट्रीय गीत गाया गया।
नगर आयुक्त ने दी सफाई
नगर निगम में कई पार्षद पहली बार जीतकर पहुंचे होते हैं इसलिये परम्पराओं के निर्वहन की जिम्मेदारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी की होती है। निर्वाचित सदन में यह पद नगर आयुक्त के पास होता है लेकिन इस गलती को वे अपने शब्दों से रफू करते नजर आये। कानपुर नगर निगम की कार्यकारिणी में दबदबा बनाये रखने के लिये भाजपा के लिये ये जरूरी होगा कि वो उन बागियों पर अनुशासन का डंडा न चलाये जो पार्षद का चुनाव जीत चुके हैं और उन्हें पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने के लिये राजी कर ले। महापौर का कहना है कि बागियों को मनाने का काम पार्टी संगठन ने सम्भाला हुआ है लेकिन बागियों की समस्या केवल भाजपा नहीं बल्कि कांग्रेस और सपा के सामने भी है।
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