मथुरा: बीजेपी ने चेहरा नहीं सीट देखकर किया उम्मीदवारों का ऐलान, जानिए क्या है रणनीति ?
बीजेपी उम्मीदवारों के चुनावी अनुभव से ज्यादा यह देख रही है कि उनकी जमीनी स्तर पर कितनी लोकप्रियता है। क्षेत्र में पहचान बनाने वाला नेता ही बीजेपी की पसंद है फिर चाहे चुनाव का उसे कम अनुभव क्यों न हो।
मथुरा। यूपी चुनाव के मद्देनजर सभी पार्टियां विचार-विमर्श के दौर से गुजर रही हैं। ऐसे में बीजेपी अपने नेताओं के जमीनी काम-काज पर नजर बनाए हुए है। बीजेपी उम्मीदवारों के चुनावी अनुभव से ज्यादा यह देख रही है कि उनकी जमीनी स्तर पर कितनी लोकप्रियता है। यूं तो मथुरा में बीजेपी के पास कई चेहरे हैं लेकिन विधानसभा क्षेत्र पर उनकी कितनी पकड़ है, इस आधार पर पार्टी ने अपने उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है।
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जानिए, बीजेपी का जागा किस-किस पर भरोसा ?
वृंदावन सीट से बीजेपी ने अपना बड़ा चेहरा उतारा है
बीजेपी ने वृंदावन विधानसभा सीट से श्रीकांत शर्मा को मैदान में उतारा है। इसकी मुख्य वजह है मथुरा वृंदावन सीट पर जिला स्तर पर भाजपा में गुटबाजी हावी होना। इस गुटबाजी को खत्म करने के लिए भाजपा ने राष्ट्र स्तर के नेता को यहां से अपना प्रत्याशी बनाया है। श्रीकान्त शर्मा मथुरा जिले की गोवर्धन विधानसभा के गांव गठौली के रहने वाले हैं। श्रीकान्त शर्मा का राजनैतिक जीवन छात्र राजनीति से शुरू हुआ। श्रीकांत 1992 में DAV कॉलेज, दिल्ली छात्र संघ के अध्यक्ष बनें। जिसके बाद वह भा.ज.यु.मो में आए। इसके बाद श्रीकांत कई प्रदेशों के प्रभारी भी रह चुके हैं। श्रीकांत वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता, सचिव और हिमाचल प्रदेश में पार्टी प्रभारी हैं।
खूबियां- श्रीकांत बीजेपी के प्रभावशाली प्रवक्ता हैं।
कमियां-
बतौर
नया
चेहरा
उन्हें
चुनाव
का
कम
अनुभव
है।
बीजेपी ने छाता विधानसभा सीट से चौधरी लक्ष्मी नारायण पर दांव खेला है
लक्ष्मी नारायण मथुरा की राजनीति में एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं। साथ ही शायद ऐसी कोई राजनैतिक पार्टी हो जिसमे लक्ष्मी नारायण न रहे हों। लक्ष्मी नारायण लगभग 65 वर्ष के हैं और इनका राजनैतिक जीवन 1980 से शरू हुआ। 1980 में वह सबसे पहले मंडी परिषद् के चेयरमैन बने। जिसके बाद वह 1985 में चौधरी चरण सिंह की पार्टी जनता दल से छाता विधानसभा सीट पर चुनाव जीते। अब तक लक्ष्मी नारायण 6 बार MLA का चुनाव लड़ चुके हैं। जिसमें से 3 बार विजयी भी हुए हैं। इस दौरान लक्ष्मी नारायण कई बार मंत्री भी रहे हैं। लक्ष्मी नारायण कृषि मंत्री, शिक्षा मंत्री तो रह ही चुके हैं साथ ही उन्होंने कारागार और उद्यान एवं संस्कृति मंत्रालय भी संभाला है। इसके अलावा 3 बार वह लोक सभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। लेकिन हर बार उन्हें पराजय ही हाथ लगी।
खूबियां- लक्ष्मी नारायण 3 बार विधायक रह चुके हैं, उनकी पत्नी भी जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।
कमियां-
लक्ष्मी
नारायण
पर
दल
बदलू
होने
की
छाप
है।
बीजेपी ने मांट विधानसभा से एसके शर्मा को दिया है टिकट
एसके शर्मा मांट विधानसभा के लमतौरी गांव के रहने वाले हैं। एसके शर्मा पहले राष्ट्रीय लोक दल के सजग नेता थे लेकिन 2005 में भाजपा में शामिल हो गए। एसके शर्मा भाजपा के कई पदों पर रह चुके हैं। वर्तमान में शर्मा भाजपा की प्रदेश कार्य समिति में सदस्य हैं। यह इस बार का इनका पहला चुनाव है।
खूबियां-
एसके
शर्मा
बेदाग
छवि
के
नेता
हैं।
कमियां-
राजनैतिक
अनुभव
की
कमी
है।
गोवर्धन विधानसभा सीट से कारिंदा सिंह दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं
कारिंदा सिंह गोवर्धन विधानसभा के छड़ गांव के रहने वाले हैं। इनका राजनैतिक जीवन सन् 2000 में शुरू हुआ। सबसे पहले सन् 2000 में ही यह जिला पंचायत सदस्य चुने गए। उसके बाद कारिंदा सिंह भाजपा से 2012 में भी गोवर्धन विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। तो अब एक बार फिर से भाजपा ने इन पर दांव खेला है।
खूबियां- मतदाताओं का जातीय समीकरण इनके पक्ष में है।
कमियां-
अपराधी
छवि
के
नेता
हैं।
बलदेव विधानसभा सीट से बीजेपी के पूरन प्रकाश चुनौती देंगे
पूरन प्रकाश वर्तमान में मौजूदा विधायक हैं और हाल ही में राष्ट्रीय दल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। पूरन प्रकाश के पिता भी विधायक रह चुके हैं। पूरन प्रकाश राजनीति से पहले LIC में ब्रांच मैनेजर थे। वह 1991 में पहली बार विधायक चुने गए। यह अब तक तीन बार विधायक रहे हैं।
खूबियां- अनुभव के आधार पर इनकी चुनौती मजबूत है।
कमियां-
दल
बदलू
और
विवादित
नेता
होने
का
ठप्पा
लगा
है।
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