गंदे तालाब के बीच भीमराव अंबेडकर की मूर्ति, देखिए कैसे मनाई जयंती
कानपुर। देश का संविधान लिखने वाले डॉ भीमराव अंबेडकर की आज जयंती है। कानपुर के जूही इलाके में तालाब के बीच लगी भीमराव अंबेडकर की मूर्ति की सुधि लेने वाला कोई नहीं। राजनैतिक दल दलितों के वोट को पाने के लिए डॉ अंबेडकर के नाम में रामजी लगाकर उनको अपने तरीके से सम्मानित कर रहे हैं लेकिन बदहाली की इस तस्वीर पर किसी की नजर नहीं पड़ती है।
गंदे तालाब में अंबेडकर की मूर्ति
गंदे पानी से भरा हुआ तालाब के बीचों-बीच खड़े बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर यह तस्वीरें हैं, औद्योगिक नगरी कानपुर की। 14 अप्रैल के दिन सभी राजनैतिक दल बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती मना रहे हैं। तस्वीरो में साफ-साफ देख सकते हैं कि किस तरह लोग अपने हाथो में फूल-माला लेकर तालाब के गंदे पानी से होते हुए बाबा साहेब की मूर्ति की तरफ बढ़ रहे हैं। एक युवक के कंधे पर माला है तो दूसरा अपने हाथों में मिष्ठान लिए हुए है। महापुरुषों के देश को दिए गए अहम योगदान को बताते हुए सभी राजनैतिक दल दावे तो बढ़-चढ़कर करते हैं, महापुरुषों को अपना मसीहा तक बताते हैं लेकिन कानपुर की यह तस्वीर उनके दावों की पोल खोल रही है।
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25 सालों से यहीं मना रहे जयंती
काफी जद्दोजहद के बाद सभी लोग बाबा साहेब की मूर्ति के पास पहुंचकर उन्हें माला पहनकर उनकी जयंती मनाई। क्षेत्रीय पार्षद सुनील कनौजिया विगत 25 सालों से बाबा साहेब की जयंती मना रहे हैं। पार्षद का कहना है कि कई सालों से प्रयास कर रहे हैं कि तालाब को साफ किया जाय, इसको लेकर सभी जिम्मेदार अधिकारियों से कई बार शिकायत की जा चुकी है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुयी जिसकी वजह से बाबा साहेब की मूर्ति की यह दशा बनी हुयी है।
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कैसे बना गंदा तालाब?
दरअसल 1956 में जूही के इस इलाके में धोबी घाट हुआ करता था और घाट में पनकी कैनाल नहर से पानी आया करता था | तत्कालीन श्रमायुक्त की तरफ से यह जमीन धोबी घाट के लिए दे दी गयी लेकिन वक्त बीतता गया और धोबी घाट के लिए दी गयी जमीन पर लोगों ने कब्जा करके उसको पूरी बस्ती का रूप दे दिया। पानी की निकासी ना होने के कारण लोगों के घरो से निकला गंदा पानी बाबा साहेब की मूर्ति के पास जमा होने लगा और धीरे धीरे तालाब में तब्दील हो गया।
मूर्ति की दुर्दशा
बाबा साहेब की मूर्ति की दुर्दशा देखकर इलाके के लोगों ने कई बार जिलाधिकारी और नगर आयुक्त से शिकायत की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। महापुरुषों के देश को दिए गए अहम योगदान को बताते हुए सभी राजनैतिक दल दावे तो बढ़-चढ़कर करते हैं, महापुरुषों को अपना मसीहा तक बताते हैं लेकिन कानपुर की यह तस्वीर उनके दावों की पोल खोल रही है।
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