बाबरी विध्वंस: एक कारसेवक का दर्द- वही अपने ना हुए जिनके लिए 'सबकुछ' किया
अयोध्या। अयोध्या कांड को हुए 25 साल हो गए। इस मुद्दे को लेकर आज भी राजनीति जारी है। लेकिन इस कांड से जुड़ा कृष्ण की नगरी वृन्दावन का रहने वाला एक व्यक्ति है जो आज संत का चोला ओढ़कर गुमनामी के अंधेरे में जीवन जी रहा है। हिन्दू आतंकवादी होने का दंश झेल चुके इस शख्स ने विवादित स्थल पर विस्फोटक लगाने के जुर्म में 5 साल की सजा भी काटी है।
वृन्दावन के परिक्रमा मार्ग में गायों के बीच सन्त के स्वरूप में सेवा करता ये शख्स है सुरेश बघेल। सुरेश बघेल जब 23 साल के थे कि तभी अयोध्या में राम मंदिर की लहर चली थी। इस लहर में तमाम कार सेवा करने के लिए युवा देश के कोने कोने से अयोध्या पहुंचे थे। इनमें वृन्दावन का रहने वाला सुरेश बघेल भी था। सुरेश जब अयोध्या पहुंचा तो वहां गोली कांड हो गया। जिसके बाद इसने बाबरी मस्जिद को डायनामाइट लगा कर उड़ाने की ठानी, लेकिन ये मस्जिद के करीब पहुँचते उससे पहले ही पुलिस ने इनको 25 डायनामाइट की छड़ सहित पकड़ लिया और जेल भेज दिया। ये मामला न्यायालय में चल ही रहा था कि तभी सपा सरकार ने इनके ऊपर हिन्दू आतंकवादी होने का आरोप लगा दिया। 5 साल की सजा पूरी होने के बाद राजनीतिक दलों की उपेक्षा के चलते सुरेश गुमनामी की जिंदगी जीने चले गए और संत बन गए।
जिस
वक्त
सुरेश
बघेल
23
वर्ष
के
थे
उस
समय
राम
जन्मभूमि
आंदोलन
चल
रहा
था।
लोगों
के
मुंह
पर
बस
यही
नारा
था
कि
'जिस
हिन्दू
का
खून
न
खौले
खून
नहीं
वो
पानी
है-राम
मंदिर
के
काम
न
आये
वो
बेकार
जवानी
है।'
हिंदुत्व
की
बात
करने
वाले
राजनीतिक
दल
की
दूरियां
बढ़ने
के
कारण
सुरेश
बघेल
ने
सन्त
का
चोला
धारण
कर
लिया
और
गायों
की
सेवा
शुरू
कर
दी।
सुरेश
बघेल
का
कहना
है
कि
उनके
2
प्रण
थे
जिसमें
एक
बाबरी
ढांचा
गिराना
जो
कि
गिर
गया
दूसरा
वहां
राम
मंदिर
बनना
जो
कि
अभी
पूरा
नहीं
हुआ।
गुमनामी
के
अँधेरे
में
जी
रहे
सुरेश
के
मन
मे
कसक
है
कि
उसकी
उसकी
भाजपा
और
हिन्दू
वादी
दलों
ने
उनकी
अपेक्षा
की।
इसीलिए
उनको
भरोशा
नहीं
है
कि
राम
मंदिर
की
बात
करने
वाले
लोग
राम
मंदिर
बनाएंगे।
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