इलाहाबाद नगर निगम चुनाव: हाथी और पंजे के बीच दौड़ेगी साइकिल या खिलेगा कमल?
इलाहाबाद। यूपी नगर निकाय चुनाव के तहत इलाहाबाद का महापौर बनने के लिये 24 लोगों ने दावेदारी की है। सभी ने अपने नामांकन कर दिया हैं और नामांकन प्रक्रिया भी खत्म हो गई है। लेकिन इन 24 दावेदारों में सिर्फ चार पर ही नजर है जो चुनाव के समीकरण को अपनी ओर मोड़ने का मद्दा रखते हैं। यह चारों प्रत्याशी प्रमुख दलों के हैं, जिनमें भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा प्रत्याशी शामिल है। लेकिन चुनावी लड़ाई की बात करें तो अभी तक के समीकरण त्रिकोणीय लड़ाई का संकेत कर रहे हैं। यह त्रिकोणीय लड़ाई कांग्रेस ने आखिरी समय पर बीजेपी के कद्दावर नेता विजय मिश्र को अपना प्रत्याशी बनाकर शुरू कर दी है वर्ना इस बार मेयर का चुनाव भाजपा बनाम सपा होने की पूर्ण संभावना थी। हालांकि अभी भी राजनैतिक समीकरण और मठाधीशों कां दांव भाजपा और सपा प्रत्याशी पर ही है। आइए जानते हैं क्या कहती है यहां की चुनावी गणित ..
बसपा
बीते विधानसभा चुनाव के बाद से बसपा ने इलाहाबाद से अपने सभी बडे नेताओ की छुट्टी कर दी है। बड़े नेताओ के समर्थन में छोटे नेताओ व पूर्व विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी है। बसपा को अपने नाम पर भीड़ जुटाने वाले नेता अब ढूढ़ने पड़ रहे हैं। कार्यकर्ताओ में असंतोष है और जमीनी स्तर पर बसपा की ताकत सिकुड़ कर दलित वोट बैंक तक सिमट गई है। बसपा प्रत्याशी रमेश केसरवानी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वह बसपा की खोई साख को वापस लाये और समर्थकों की भीड़ को वोट में बदलें।
कांग्रेस
इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस ने विजय मिश्रा के तौर पर एक दमदार प्रत्याशी मैदान में उतारा है। विजय के पास व्यापारियों का अच्छा खासा समर्थन है। सवर्ण वोट भी मिलेंगे और बागी भाजपाइयों का कुछ वोट भी खीचेंगे लेकिन दल बदलकर आए विजय मिश्रा को कोई कांग्रेसी पचा नहीं पा रहा है क्योंकि कांग्रेस से दर्जनों दावेदार थे और इनमें से किसी एक का टिकट कन्फर्म था। लेकिन अचानक भाजपा छोड़ विजय कांग्रेस में आए और टिकट ले गए। इस फैसले से आहत जिला अध्यक्ष उपेंद्र सिंह ने इस्तीफा तक दे दिया है। अनुग्रह नरायण जैसे दिग्गज नेता की विधायकी पिछले चुनाव में छिन चुकी है। प्रमोद तिवारी ही अब बची खुची उम्मीद हैं। लेकिन वह भी अभी खामोश हैं। कांग्रेस के बागी नेता अगर सहयोग में आते हैं तो विजय लड़ाई में रहेंगे वर्ना पिछले चुनाव की तरह ही विजय और कांग्रेस दोनों को पराजय मिलेगी।
सपा
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में अपना जलवा दिखाने के बाद आत्मविश्वास से लबरेज सपा नगर निगम चुनाव में पूरी ताकत के साथ कूदी चुकी है। प्रत्याशी के तौर पर विनोद चंद दुबे के रूप में एक ऐसा नाम सामने आया है जिसे कोई भी नकार नहीं सकता है और सबसे खास बात इनके नाम पर असहमति भी नहीं है। दुबे इलाहाबाद के कद्दावर और बहुत पुराने समाजवादी हैं। इनका लिंक सीधे पार्टी मुखिया मुलायम से है और अब वह अखिलेश की भी पसंद हैं । सपा विधान सभा चुनाव में बुरी तरह से इलाहाबाद हार चुकी हैं, ऐसे में एकबार फिर से अपनी ताकत दिखाने का मौका सपा के पास हैं और अखिलेश के नाम पर युवाओ का एक बड़ा जनाधार साथ है। राजनैतिक समीकरण कहते हैं कि सबसे तगडे दावेदारों में दूसरे नंबर पर अभी दुबे ही हैं। अगर विजय मिश्रा भाजपा के बागियों का समर्थन ले गये तो दुबे का मेयर बनना तय है।
भाजपा
सत्तारूढ़ भाजपा इस बार इलाहाबाद में कमल खिलाने की सबसे प्रबल दावेदार है। कैबिनेट मंत्री नंदी और उनकी पत्नी व प्रत्याशी अभिलाषा इलाहाबाद में एक बडा चेहरा हैं, जो अपने नाम काम दोनों से पहचाने जा रहे हैं। इस बार भाजपा के हाथ से सीट फिसलने के कोई राजनैतिक समीकरण अभी तक नहीं बने हैं। लेकिन इलाहाबाद में भाजपा अतिआत्मविश्वास का शिकार हो चुकी है और केवल यही एक कारण उसे हरा सकता है। भाजपा के पास तीन - तीन मंत्री, निवर्तमान मेयर, सांसद, विधायक सबकुछ है। यानी ताकत के मामले में दूसरे दल कहीं नहीं ठहरते। टिकट भी सबसे बेहतर चेहरे को दिया गया हैं और भाजपा में टिकट को लेकर जो बगावती सुर हैं उसे बड़े चेहरे आसानी से दबा सकते हैं, लेकिन ऐसा किया नहीं जा रहा है। भाजपा के अंदर कलह है और वह नुकसानदेह साबित हो सकती है।
नामांकन
पर
एक
नजर
इलाहाबाद
नगर
निगम
में
महापौर
पद
के
लिए
अब
तक
कुल
24
लोग
कर
चुके
हैं।
3
नवंबर
तक
एक
भी
नामांकन
न
होने
के
बावजूद
भी
अंतिम
दिन
की
रिपोर्ट
के
अनुसार
24
नामांकन
हुये।
वहीं
इलाहाबाद
की
9
नगर
पंचायत
के
लिये
108
नामांकन
हुये
हैं।
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